खबर लहरिया Blog Bihar Election: चुनाव आयोग का फिर से नया आदेश, बिना दस्तावेज के जमा कर सकेंगे गणना फॉर्म

Bihar Election: चुनाव आयोग का फिर से नया आदेश, बिना दस्तावेज के जमा कर सकेंगे गणना फॉर्म

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मतदान सूची मुद्दा लगातार चर्चा में है। चुनाव आयोग द्वारा एक बार फिर से आदेश आया है जिसमें चुनाव आयोग ने गणना फॉर्म जमा कराए जाने वाले नियमों में बदलाव किया है।

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सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव हैं। इससे पहले बिहार में मतदाता सूची (Voter List) को लेकर विवाद बेहद गरमाया नजर आ रहा है। वोटर लिस्ट के गहन पुनरीक्षण को लेकर चल रहे विवाद के बीच चुनाव आयोग ने नियमों में कुछ छूट दी है जिससे बिहार के लोगों को थोड़ी राहत मिल सकती है।

बिना दस्तावेज जमा कर सकेंगे गणना फॉर्म

चुनाव आयोग का आदेश है कि अब बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के दौरान बिना दस्तावेज के भी गणना फॉर्म जमा हो सकेगा। ऐसा करनेवाले मतदाताओं का नाम भी मतदाता सूची के प्रारूप (ड्रॉफ्ट रोल) में शामिल कर लिया जाएगा। हालांकि सत्यापन के दौरान जरूरी दस्तावेज बीएलओ के माध्यम से प्राप्त किया जाएगा। 26 जुलाई तक ऑनलाइन या ऑफलाइन ये गणना फॉर्म हर हाल में मतदाताओं को भरकर जमा करना होगा। चुनाव आयोग के इस ताजा फैसले से मतदाता सूची के पुनरीक्षण के दौरान मतदाताओं को थोड़ी राहत तो मिली है।

इसके अलावा चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि 1 जनवरी 2003 के तारीख तक मतदाता सूची में दर्ज मतदाताओं को फॉर्म के साथ दस्तावेज देने की जरूरत नहीं है। 2003 की मतदाता सूची चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध है। यदि मतदाता के पास आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध है तो निर्वाचक पंजीकरण पदाधिकारी को आवेदन को प्रोसेस करन में आसानी रहेगी। आयोग ने कहा है कि यदि मतदाता के पास आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध नहीं है तो निर्वाचक पंजीकरण पदाधिकारी द्वारा स्थानीय जांच या अन्य दस्तावेज के साक्ष्य के आधार पर निर्णय लिया जा सकेगा।

चुनाव आयोग ने तारीख का भी जिक्र किया है जिसमें कहा गया है कि, गणना पत्र भरने की अवधि 25 जून से 26 जुलाई है। मतदाता सूची का प्रारूप प्रकाशन 1 अगस्त 2025 को होगा। दावे और आपत्तियों की तारीख 1 अगस्त से 1 सितंबर 2025 है और अंतिम मतदाता सूची का प्रकाशन 30 सितंबर 2025 को किया जाएगा।

वो 11 दस्तावेज जो विवाद पर है

– सरकारी कर्मचारियों का पहचान पत्र या पेंशन आदेश

– 1 जुलाई 1987 से पहले जारी सरकारी दस्तावेज

– जन्म प्रमाणपत्र

– पासपोर्ट 

– शैक्षणिक प्रमाणपत्र

– स्थायी निवास प्रमाणपत्र

– वन अधिकार प्रमाणपत्र

– जाति प्रमाणपत्र (SC/ST/OBC

– राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC)

– पारिवारिक रजिस्टर

– सरकारी जमीन या मकान आवंटन प्रमाणपत्र

नियमों में बदलाव के कारण 

इस मुद्दे पर लगातार हो रहे राजनीतिक विरोध का चुनाव आयोग पर असर पड़ा है। आज बिहार के बड़े अखबारों में विज्ञापन देकर चुनाव आयोग ने नियमों में ढील की बात बताई है। कहा गया है कि अगर कोई बिना फोटो और बिना दस्तावेज के फॉर्म जमा करता है तो उसका फॉर्म भी स्वीकार किया जाएगा। जरूरी दस्तावेज वो 25 जुलाई के बाद भी अपलोड कर सकते है।

मामला सुप्रीम कोर्ट तक 

बता दें कि बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिविजन यानी मतदाता गहन परीक्षण को लेकर विवाद थम नहीं रहा था। चुनाव आयोग के मुताबिक, 25 जुलाई तक सारे गणना फॉर्म जमा होने हैं। ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। इस बीच इसमें विपक्षी दलों की मांग ये है कि आम घरों में पाए जाने वाले दस्तावेजों को चुनाव आयोग मान ले। इनमें आधार कार्ड, राशन कार्ड, मनरेगा और जॉब कार्ड शामिल हैं। चुनाव आयोग जो 11 प्रमाण पत्र मांग रहा है, वो आम तौर पर हर घर में नहीं होते हैं।

पीटीआई (PTI) के अनुसार राजद सांसद मनोज झा ने बिहार में मतदाता सूची के “विशेष गहन संशोधन” के भारतीय चुनाव आयोग (ECI) के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर की। जिसमें उन्होंने तर्क दिया कि यह प्रक्रिया “न केवल जल्दबाजी और गलत समय पर की गई बल्कि इससे करोड़ों मतदाताओं को मताधिकार से वंचित करने का प्रभाव पड़ेगा जिससे उन्हें मतदान करने का उनका संवैधानिक अधिकार छीना जाएगा।” उन्होंने अपनी याचिका में कहा है कि निर्वाचन आयोग के 24 जून के आदेश को संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 325 और 326 का उल्लंघन होने के कारण रद्द किया जाना चाहिए।

मनोज झा ने आगे कहा कि बिना किसी राजनीतिक दल से सलाह लिए सरकार ने जो नया नियम लागू किया है उसका इस्तेमाल मतदान सूची लिस्ट से कुछ खास समुदायों जैसे मुस्लिम, दलित और गरीब प्रवासी मजदूरों को हटाने के लिए किया जा रहा है। वे कहते हैं कि यह गलती से नहीं हो रहा बल्कि जानबूझकर किया जा रहा है ताकि इन लोगों को चुनाव में वोट देने से रोका जा सके।

उन्होंने आगे यह भी बताया कि कानून के हिसाब से किसी की नागरिकता साबित करने की ज़िम्मेदारी सरकार की होती है ना कि उस व्यक्ति की लेकिन अब जो प्रक्रिया शुरू की गई है उसमें करोड़ों लोगों को अपने जन्म की तारीख और जगह के सबूत खूद देने होंगे जो कि बेहद मुश्किल काम है। खासकर गरीब और अशिक्षित लोगों के लिए। यह फैसला ऐसे राज्य में लिया गया है जहां बहुत सारे प्रवासी मजदूर रहते हैं और चुनाव भी जल्द होने वाले हैं। चुनाव आयोग ने जिन 11 दस्तावेजों को नागरिकता साबित करने के लिए मान्य माना है वे आमतौर पर गरीब लोगों के पास नहीं होते। यहां तक कि आधार कार्ड मनरेगा कार्ड या राशन कार्ड भी नहीं चलेंगे। झा ने इसे गलत और गरीब विरोधी कदम बताया।

अब तक कितने लोगों ने फॉर्म जमा किया 

बिहार में जारी मतदाता सूची के विशेष गहर पुनरीक्षण के तहत रविवार 6 जुलाई 2025 की शाम 6 बजे तक 1,69,49,208 गणना फॉर्म एकत्र किए गए हैं जो कुल 7,89,69,844 (लगभग 7.90 करोड़) मतदाताओं का 21.46 प्रतिशत 

है। पिछले 24 घंटे में 65,32,663 गणना फॉर्म एकत्र किए गए हैं। 7.25 प्रतिशत गणना फॉर्म को इसीआई नेट पर अपलोड किया गया है।

 

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