एक तरफ सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को आदेश दिया था कि एसआईआर में शामिल 65 लाख वोटरों की लिस्ट सार्वजनिक की जाए, जिसके बाद चुनाव आयोग ने यह लिस्ट जारी भी कर दी। वहीं दूसरी तरफ़ राहुल गांधी और विपक्षी दल लगातार ‘वोट चोरी’ के मुद्दे को लेकर सड़क पर उतर आए हैं और यात्राएँ निकाल रहे हैं।
अब ये बात तो जगज़ाहिर है ही कि बिहार में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने वाला है। बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीति और गहमागहमी तेज हो गई है। एक तरफ सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को आदेश दिया था कि एसआईआर में शामिल 65 लाख वोटरों की लिस्ट सार्वजनिक की जाए, जिसके बाद चुनाव आयोग ने यह लिस्ट जारी भी कर दी। वहीं दूसरी तरफ़ राहुल गांधी और विपक्षी दल लगातार ‘वोट चोरी’ के मुद्दे को लेकर सड़क पर उतर आए हैं और यात्राएँ निकाल रहे हैं। इसी बीच चुनाव आयोग ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपनी बात रखी और चुनाव की तैयारियों की जानकारी दी। ऐसे में बिहार का चुनाव सिर्फ़ नेताओं के भाषण और वादों तक सीमित नहीं है बल्कि अब यह पारदर्शिता, विश्वास और मतदाताओं की भागीदारी का बड़ा सवाल भी बन गया है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग को लेकर दो दिन यानी 13 और 14 अगस्त तक सवाल-जवाब चलता रहा। इसमें चुनाव आयोग और विपक्षी दल के साथ सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश भी थे जिन्होंने दोनों पक्षों की बातें सुनी। सारे सवाल-जवाब के बाद बीते 14 अगस्त 2025 को सुप्रीम ने चुनाव आयोग के लिए एक आदेश जारी किया। इस आदेश में यह कहा गया है कि चुनाव आयोग बिहार की मतदाता सूची से हटाए गए 65 लाख मतदाताओं का विवरण प्रकाशित करें यानी सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग बिहार की वोटर लिस्ट से हटाए गए 65 लाख लोगों की जानकारी सबके सामने रखे। साथ ही उन्हें शामिल न करने का कारण भी बताएं। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया था कि वह जिला-वार सूची प्रकाशित करे और नाम कटने के कारण स्पष्ट रूप से बताए। चाहे वह मृत्यु, प्रवासन या डबल रजिस्ट्रेशन के कारण हो। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को यह भी कहा कि हटाए गए मतदाताओं की बूथ-वार सूची जिला चुनाव अधिकारी के कार्यालय में लगाई जाए और जिला चुनाव अधिकारी इसे अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी साझा करें। बता दें बिहार चुनाव से पहले विपक्षी दलों द्वारा चुनाव आयोग पर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि बड़ी संख्या में वोटरों के नाम मतदाता सूची से हटा दिए गए हैं और यह “वोट चोरी” की कोशिश है। इसी को लेकर विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी जिसके ही अनुसार चुनाव आयोग को आदेश देय गया।
चुनाव आयोग द्वारा जारी किया गया लिंक
इसी के साथ चुनाव आयोग ने बिहार वेबसाइट पर नया लिंक भी सक्रिय कर दिया है जिससे सभी लोग आसानी से अपनी सूची जांच सकते हैं।
बिहार की वोटर लिस्ट देखने या यह पता करने के लिए कि आपका नाम लिस्ट से हटा है या नहीं, आपको मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO Bihar) की वेबसाइट पर जाना होगा। वहां पर “Search in Electoral Roll” (सर्च इन इलेक्टोरल रोल) का विकल्प मिलेगा। आप अपना EPIC नंबर (मतदाता पहचान पत्र का नंबर) डालकर खोज सकते हैं। अगर आपका नाम हटाया गया है तो कारण भी लिखा होगा। अगर आपको लगता है कि आपका नाम गलत तरीके से हटाया गया है तो आप Form-7 (फ़ॉर्म – 7) भरकर ऑनलाइन या बूथ स्तर अधिकारी (BLO) को देकर अपना नाम वापस जुड़वाने की मांग कर सकते हैं।
राहुल गांधी और विपक्षी दलों की ‘वोट चोरी’ के खिलाफ यात्राएं
एक ओर कोर्ट का आदेश आया और चुनाव आयोग मतदाता सूची से संबंधित लिंक भी जारी कर दी। दूसरी ओर इसी मुद्दे को लेकर राहुल गांधी और कई विपक्षी नेता लगातार यात्राएं निकाल रहे हैं। यह यात्रा 17अगस्त 2025 को शुरू की गई है। इन यात्राओं के जरिए विपक्ष जनता से सीधे संवाद कर रहा है और बता रहा है कि मतदाता सूची में गड़बड़ी लोकतंत्र के लिए खतरा है। विपक्ष का कहना है कि जब तक हर वोटर को उसका अधिकार नहीं मिलेगा तब तक वे सड़कों पर आवाज़ उठाते रहेंगे। इस यात्रा का मकसद मतदाता सूची में कथित अनियमितताओं और विशेष गहन पुनरीक्षण के जरिए मतदाताओं के अधिकारों पर हमले को उजागर करना था। सासाराम की इस सभा में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव, तेजस्वी यादव, भाकपा माले के दीपंकर भट्टाचार्य और वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी जैसे ‘इंडिया गठबंधन’ के कई दिग्गज नेता मंच पर मौजूद थे।
चुनाव आयोग का प्रेस कॉन्फ्रेंस
देश में विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा और जिस राज्य में चुनाव होने वाला है उसके तमाम नेता एक वोटर अधिकार यात्रा और वोट चोरी के खिलाफ यात्रा निकाल रहे हैं। ठीक उसके शुरुआत होने के पहले यानी रविवार 17 अगस्त को चुनाव आयोग द्वारा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस किया गया। बिहार के सासाराम में राहुल गांधी ने ‘वोट अधिकार यात्रा’ के तहत आयोजित एक रैली में जो आरोप लगाया था उसका जवाब देने के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस की।
दरअसल राहुल गांधी ने 7 अगस्त को वोटर लिस्ट में गड़बड़ी को लेकर लंबा प्रेज़ेंटेशन दिया और आरोप लगाया कि लोकसभा, महाराष्ट्र और हरियाणा चुनावों में बड़े पैमाने पर धांधली हुई है। उन्होंने बिहार के चुनाव से पहले हुए एसआईआर पर भी सवाल उठाए और दावा किया कि बेंगलुरु की एक सीट पर एक लाख से ज़्यादा फ़र्ज़ी वोटर जोड़े गए थे। इस मुद्दे पर काफी बहस हुई और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। इसके बाद रविवार 17 अगस्त को मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर कहा कि राहुल गांधी के आरोप बेबुनियाद हैं। उन्होंने चुनौती दी कि राहुल या तो हलफ़नामा दाख़िल करें या फिर देश से माफ़ी मांगें वरना माना जाएगा कि आरोप सही नहीं हैं। हालांकि कुछ जानकारों का कहना है कि आयोग ने उठे सवालों के सीधे जवाब नहीं दिए।
राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर “वोट चोरी” का आरोप लगाते हुए पांच बड़े सवाल उठाए। उन्होंने पूछा कि आखिर वोटर लिस्ट में इतनी बड़ी गड़बड़ी क्यों हो रही है? और चुनाव आयोग बीजेपी की तरह काम क्यों कर रहा है? उन्होंने यह भी सवाल किया कि वोटिंग के वीडियो सबूत क्यों मिटाए जा रहे हैं लोगों को मशीन से पढ़े जाने वाले डिजिटल फ़ॉर्मेट में वोटर लिस्ट क्यों नहीं दी जा रही और विपक्ष के सवालों का जवाब देने के बजाय उन्हें धमकाया क्यों जा रहा है? इसके साथ ही उन्होंने बिहार में चल रही वोटर लिस्ट की विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया पर भी गंभीर सवाल उठाए। ज्ञानेश कुमार ने कहा कि चुनाव आयोग को राजनीतिक मक़सद से मतदाताओं को निशाना बनाने के लिए लॉन्चपैड की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। आयोग मज़बूती से मतदाताओं के साथ खड़ा है। उन्होंने इन आरोपों को “निराधार” और “ग़ैर-ज़िम्मेदाराना” बताया। उन्होंने कहा कि “वोट चोरी” जैसे शब्दों का इस्तेमाल करोड़ों मतदाताओं और लाखों चुनाव कर्मचारियों की ईमानदारी पर हमला है।
मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) ज्ञानेश कुमार ने क्या कहा
प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) ज्ञानेश कुमार ने कहा कि “सभी राजनीतिक दल चुनाव आयोग में पंजीकरण के ज़रिए ही अस्तित्व में आते हैं। फिर चुनाव आयोग उनमें भेदभाव कैसे कर सकता है? आयोग के लिए सभी बराबर हैं..चाहे कोई किसी भी पार्टी का हो हम अपने संवैधानिक कर्तव्य से पीछे नहीं हटेंगे।”
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने बताया कि एसआईआर के दौरान मतदाताओं राजनीतिक दलों और बूथ स्तर के अधिकारियों (बीएलओ) ने दस्तावेज़ों का सत्यापन किया था उन पर हस्ताक्षर भी किए थे और वीडियो सबूत भी दिए थे। लेकिन कुछ नेता जानबूझकर भ्रम फैलाने के लिए इन्हें नज़रअंदाज़ कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब बिहार के सात करोड़ से ज़्यादा मतदाता चुनाव आयोग के साथ हैं तो आयोग या मतदाताओं की विश्वसनीयता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। ज्ञानेश कुमार ने मतदाताओं की तस्वीरें बिना सहमति के मीडिया में दिखाए जाने पर भी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा, “क्या चुनाव आयोग को किसी भी मतदाता, चाहे वह उनकी माँ, बहुएँ या बेटियाँ हों, के सीसीटीवी वीडियो सार्वजनिक करने चाहिए?” यह बयान राहुल गांधी द्वारा अपने “वोट चोरी” आरोपों के समर्थन में मतदाता दस्तावेज़ जारी करने के कुछ दिनों बाद आया। चुनावी प्रक्रिया का बचाव करते हुए कुमार ने कहा कि एक करोड़ से ज़्यादा कर्मचारी, 10 लाख बूथ एजेंट और 20 लाख पोलिंग एजेंट चुनावों में शामिल होते हैं। इतनी बड़ी और पारदर्शी प्रक्रिया में वोट चोरी संभव ही नहीं है। उन्होंने दोहरे मतदान के आरोपों को भी खारिज करते हुए कहा कि इसके लिए कोई सबूत नहीं दिया गया। कुमार ने यह भी याद दिलाया कि चुनाव परिणामों को 45 दिनों के भीतर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि उसके बाद लगाए गए आरोप बेबुनियाद हैं और जनता ऐसे आरोपों के पीछे की मंशा समझती है।
सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्गणना करवाई
देखा जाए तो बिहार विधानसभा चुनाव केवल नेताओं के भाषणों और वादों तक सीमित नहीं रह गया है बल्कि यह चुनाव आयोग की पारदर्शिता और लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों की बड़ी परीक्षा भी बन गया है। सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह 65 लाख वोटरों की लिस्ट सार्वजनिक करने का आदेश दिया। उससे साफ है कि मतदाताओं का भरोसा सबसे अहम है। हालांकि, कई बार चुनाव आयोग के तरफ से लापरवाही देखने को मिली है। हाल ही में हरियाणा के पानीपत ज़िले के बुआना लाखू गांव के सरपंच चुनाव में सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्गणना करवाई और नतीजा पूरी तरह बदल गया। यह उदाहरण दिखाता है कि यदि पारदर्शिता न हो तो लोकतंत्र में गड़बड़ी की गुंजाइश हमेशा रहती है। बिहार चुनाव में पारदर्शिता इसलिए ज़रूरी है क्योंकि आयोग अपनी हर कदम पूरी ईमानदारी और स्पष्टता से उठाए ताकि लोकतंत्र पर जनता का विश्वास मज़बूत हो।
असल में बिहार विधानसभा चुनाव का महत्व सिर्फ़ एक राज्य की सरकार चुनने तक सीमित नहीं है बल्कि इसका असर पूरे देश की राजनीति पर पड़ता है। बिहार को हमेशा से राजनीतिक रूप से जागरूक राज्य माना जाता है जहां की जनता हर चुनाव में सक्रिय भूमिका निभाती है और कई बार सत्ता परिवर्तन की लहर भी पैदा करती है। यही कारण है कि यहां होने वाला चुनाव राष्ट्रीय स्तर पर भी काफ़ी चर्चा में रहता है। इस बार चुनाव और भी अहम है क्योंकि इसमें केवल विकास के वादे ही नहीं बल्कि वोटरों की सूची, पारदर्शिता और लोकतंत्र पर जनता का भरोसा जैसे बड़े मुद्दे भी जुड़े हुए हैं।
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