बिहार में प्रचलित ‘ताड़ी’ के पेड़ ‘ताड़’ का यह फल होता है। यह फल गहरे हरे रंग का होता है और देखने में डाभ (कच्चे नारियल) जैसा लगता है।
रिपोर्ट – सुमन, लेखन – सुचित्रा
बिहार का एक मौसमी फल है जिसे ताड़गोला (Tadgola), नोनकू (Nannku) या नुंगु (Nungu) कहते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में इसे फेदा या फिर कोवा कहा जाता है। अंग्रेजी में इसे आइस एप्पल (Ice Apple) कहते हैं। बिहार में प्रचलित ‘ताड़ी’ के पेड़ ‘ताड़’ का यह फल होता है। यह फल गहरे हरे रंग का होता है और देखने में डाभ (कच्चे नारियल) जैसा लगता है। यह फल केवल जून के महीने में ही मिलता है और बाजार में लगभग एक महीने तक ही दिखाई देता है। इसके बाद यह न तो बाजार में दिखता है और न ही बिकता है।
हर साल जब गर्मी का मौसम आता है और जून शुरू होता है, तो पटना के लगभग हर बाजार में यह फल बिकता हुआ नजर आता है। लेकिन यह जितनी जल्दी बाजार में आता है, उतनी ही तेजी से बिक भी जाता है, क्योंकि लोग इसे खरीदने के लिए काफी उत्साहित रहते हैं। कई लोग दूर-दराज़ से आकर इसे खरीदते हैं।
ताड़ के पेड़ का फल कोवा
एक व्यक्ति हाथ में हाशिया को लिए हुए फल को काट रहा है। इनका नाम नीरज कुमार है। वे बताते हैं कि पिछले कई सालों से इस फल का व्यापार कर रहे हैं। यह फल वे गांव में लगे ताड़ के पेड़ों पर चढ़कर हासिये (दरांती जैसे औज़ार) की मदद से फलों को तोड़ते हैं। इसके बाद फलों को इकट्ठा करके उन्हें बांधते हैं और ऑटो रिक्शा से पटना शहर के चितकोहरा मार्केट में लाते हैं। बाजार पहुंचने के बाद वे एक-एक फल को साफ करके काटते हैं और अपनी मां को पकड़ा देते हैं। इसके बाद आगे का सारा काम उनकी मां करती हैं, जैसे बेचने का, ग्राहकों से बात करने का आदि। फिर शहर के बाजारों में बेचते हैं। वह पटना जिले के गर्दनीबाग इलाके के रहने वाले हैं और यह काम वे अपनी मां के साथ मिलकर करते हैं।
ताड़ के फल का व्यापार
इस काम से उन्हें अच्छी कमाई हो जाती है, हालांकि मेहनत भी बहुत करनी पड़ती है—गांव से फल तोड़कर लाना, पैक करना, शहर लाना और फिर बाजार में बेचना। गांव में इस फल की कोई खास कीमत नहीं मिलती, क्योंकि वहां यह फल आम होता है और लगभग हर जगह पेड़ों पर लगा मिलता है। गांव के लोग इसे ज्यादा नहीं खरीदते, लेकिन शहर में इसकी अच्छी कीमत मिल जाती है, इसलिए वे इसे खास तौर पर शहर में बेचते हैं। इस फल का व्यापार करने वाले व्यापारियों को भी यह काम जल्दी निपट जाता है, जिससे वे बाकी अन्य कामों को आराम से कर पाते हैं।
बुजुर्ग महिला बेच रही ताड़ का फल
एक लगभग 55-60 साल की महिला हाथ में चाकू लिए हुए फलों से गूदा (पाल) निकाल रही हैं। लोग उन्हें पैसे देकर जल्दी-जल्दी फल देने को कह रहे हैं। जब मैंने उनसे उनका नाम पूछा तो वे मुस्कुराईं और बोलीं, “क्या करोगी बेटा मेरा नाम जानकर?”
जब मैंने बताया कि मैं उनके बारे में लिखना चाहती हूं, तो वे हँसते हुए बोलीं, “अच्छा बेटा, इसको भी लिखोगी?” और फिर हँसते-हँसते ही काम करते-करते रुक गईं।
मेरी तरफ देखकर वे बोलीं, “बेटा, इस काम को करने में बहुत मेहनत लगती है। लोग समझते हैं कि हमें ये फल मुफ्त में मिल जाते हैं, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है।”
उन्होंने बताया कि उनका नाम कौशल्या देवी है। वे कहने लगीं, “ये जो फल आप देख रही हैं, इन्हें हम पुनपुन के अलग-अलग गांवों से लाते हैं। हम पहले पेड़ के मालिक से बात करते हैं और कहते हैं कि हमें यह फल चाहिए। इसके बदले में हमें पूरे पेड़ का फल लेने के लिए 200 रुपए देने होते हैं।”
“पेड़ का पूरा फल जब हमारा हो जाता है, तब हम उसे तोड़कर इकट्ठा करते हैं, फिर उन्हें बांधकर एक ऑटो में रखते हैं। ऑटो का भी किराया देना होता है।”
लोगों को पसंद आता है ताड़ का फल
राजीव कुमार मिश्रा जो पटना के बेऊर इलाके के रहने वाले हैं। वे बताते हैं कि यह फल अपने बच्चों के लिए लेने आए हैं। उन्होंने कहा, “जब भी मैं इस फल को बाजार में देखता हूँ, तो खुद को रोक नहीं पाता। लगता है कि टेस्ट किया जाए।”
जैसे ही उन्होंने सड़क किनारे यह फल बिकता देखा, उन्होंने तुरंत अपनी मोटरसाइकिल रोक दी और महिला से कहा, “200 का पैक कर दीजिए।”
महिला ने जवाब दिया, “थोड़ा रुकना पड़ेगा।” तो वे वहीं खड़े हो गए और अपनी गाड़ी साइड में लगाकर इंतज़ार करने लगे।
आप तस्वीर में देख सकते हैं कि उनके हाथ में काली पानी है। उनका एक दोस्त भी उनके साथ था, जिसने पहले यह फल लेकर उन्हें चखने के लिए दिया। दोनों दोस्तों ने पहले टेस्ट किया और फिर एक पैक खरीद लिया।
राजीव जी ने मुझसे बातचीत में बताया,”गांव में आपने ताड़ का पेड़ तो देखा ही होगा, जिससे लोग ताड़ी निकालते हैं। उसी पेड़ पर ये फल भी लगते हैं। जब ये फल पूरी तरह पक जाते हैं, तो इन्हें तोड़कर बेचा जाता है। इन्हें हम ‘कौवा’ कहते हैं।”
उन्होंने आगे बताया “अगर फल बड़ा होता है तो उसमें तीन बीज (गूदा) निकलते हैं, और अगर फल छोटा है तो उसमें एक ही बीज होता है। ये फल स्वाद में बहुत अच्छा होता है, लेकिन इसे खरीदकर 24 घंटे के भीतर ही खाना चाहिए। अगर इसे फ्रिज में रखा जाए तो थोड़ी देर टिक सकता है, लेकिन जैसे ही फ्रिज से बाहर निकालोगे, यह जल्दी खराब हो जाता है।”
ताड़ के फल के कोवे को निकालना मुश्किल
एक व्यक्ति ने अपने हाथों में कोवा फल लिए हुए उसे बड़े चाव से खा रहे हैं। उनके चेहरे की मुस्कान और संतोष से ऐसा लग रहा था जैसे उन्होंने कोई अमृत पा लिया हो। जब मैंने उनकी फोटो ली, तो वे और भी खुश हो गए और बोले, “मैडम, ऐसे भी फोटो ले लीजिए!”
इसके बाद मैं उनके पास गई, तो उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, “आपको भी एक बार जरूर इसे चखना चाहिए। ये बहुत ही स्वादिष्ट होता है। जब हम इसे खाते हैं तो बहुत अच्छा लगता है। आपने देखा ही होगा, मैं तो खुद को रोक नहीं पाया कि घर जाकर खाऊं।”
उन्होंने बताया, “आप देखिए, ये फल कितना नरम और रसीला होता है। जब आप इसके ऊपर की पतली चमड़ी को निकालते हैं, तो ये अक्सर फट जाता है और अंदर का रस बाहर निकलने लगता है। उस रस को तुरंत पी लेना चाहिए, क्योंकि वही सबसे ज़्यादा ताकत देता है।”
“इस फल को हाथ से खाना आसान नहीं होता, इसलिए लोग इसे चाकू से किनारे-किनारे काटकर निकालते हैं ताकि उसका रस और गूदा खराब न हो। अगर आप इसे सही तरह से नहीं काटेंगे तो पूरा रस बाहर गिर जाएगा।”
उन्होंने यह भी कहा, “अगर आप धूप में घूम रहे हों और ये फल कहीं मिल जाए, तो उसे छोड़िए मत। उसका रस तुरंत पी लीजिए, ये शरीर को ठंडक देता है और भूख को भी कुछ समय के लिए शांत कर देता है। ये गर्मी के मौसम के लिए बहुत फायदेमंद है।”
बिहार का कल्चर है ताड़ का फल
बाजार में आई एक महिला ने बताया कि आजकल की जो पीढ़ी है वह इस चीज को जानना पसंद नहीं करती। उन्हें नहीं पता है कि यह फल क्या होता है? वह इस फल को इसलिए खरीदती है ताकि अपनी बहू को और अपने पोता पोती को इसकी अहमियत बता सके।
उन्होंने बड़े गर्व से कहा, “अगर आप इस बारे में लिख रही हैं, तो ज़रूर लिखिए कि जो भी लोग बिहार आते हैं, उन्हें एक बार ये मौसमी फल जरूर खाना चाहिए।”
“मैं बाहर भी गया हूँ,” वे बोले, “लेकिन वहां के लोगों को इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती। लेकिन बिहार में, ये हमारी पहचान है। यह फल हमारे मौसम, हमारी मिट्टी, और हमारी संस्कृति का हिस्सा है।”
ताड़ के फल को खरीदने के लिए लम्बी लाइन लग जाती है। लोग गर्मी में देर तक खड़े रहते हैं पर फल को पाकर खुश हो जाते हैं।
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