खबर लहरिया Hindi Bihar: मक्के की फसल पकते ही खेतों में जुटा किसान

Bihar: मक्के की फसल पकते ही खेतों में जुटा किसान

सरिता देवी बताती हैं कि खेतों में काम करते समय चप्पल पहनना मुश्किल होता है, क्योंकि जमीन में जगह-जगह नुकीली खूंटियां लगी होती हैं।

It is difficult to wear slippers while working in the field

खेत में काम के समय चप्पल पहनना मुश्किल (फोटो साभार:सुमन)

रिपोर्ट-सुमन, लेखन-कुमकुम

बिहार के पटना जिले के दानापुर ब्लॉक के कासिम चक गांव की है जहां किसान मकई की तुड़ाई में लगे हुए हैं। बिहार खासकर खगड़िया जिला मकई की खेती के लिए मशहूर है। इन दिनों कई इलाकों में मकई की तुड़ाई चल रही है। फोटो में दिख रहा है कि खेतों से मकई काटकर ढेर में इकट्ठा किया गया है ताकि धूप में सूख सके। इसके बाद भुट्टों को निकालकर अलग-अलग कामों में इस्तेमाल किया जाएगा।

खेत में काम के समय चप्पल पहनना मुश्किल

नीचे दी गई फोटो में चप्पलें उतारी हुई हैं, पानी की बोतलें और झूले रखे हुए हैं जो लोग अपने घर से लाए हैं। सरिता देवी बताती हैं कि खेतों में काम करते समय चप्पल पहनना मुश्किल होता है, क्योंकि जमीन में जगह-जगह नुकीली खूंटियां लगी होती हैं। चप्पल पहनने से पैर में चोट लग सकती है, इसलिए सभी किसान चप्पल उतारकर एक जगह रख देते हैं।

लोग अपने घर से  चटाई या बैठने का सामान भी लाते हैं और उन्हें एक कोने में जमा कर देते हैं। इन्हीं पर बैठकर सुबह-सुबह चाय पी जाती है। फोटो में एक बोतल भी दिख रही है, जिसमें चाय लाई गई थी। तेज धूप में काम करते हुए लोगों को बार-बार प्यास लगती है। इसलिए वे अपने साथ पानी की बोतल भी लाते हैं। दिनभर नंगे पैर धूप में बैठकर किसान भुट्टे की छिलाई करते हैं ताकि काम जल्दी पूरा हो और उन्हें मेहनताना मिल सके।

हाथ की जगह हसिया से जल्दी होता है काम 

नीचे फोटो में विनोद राय नाम के व्यक्ति दिख रहे हैं, जो हाथ में हसिया लिए मकई के बोझ से भुट्टे निकालने का काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि अगर हाथ से छिलाई करें तो बहुत समय लगता है इसलिए वे हसिया का इस्तेमाल करते हैं ताकि काम जल्दी हो सके।

हम रोज़ सुबह 6 बजे खेतों में पहुंच जाते हैं और दोपहर तक काम करते हैं। तेज धूप होने के बावजूद  दोपहर 12 बजे तक काम करना पड़ता है।  इस गर्मी की आदत हो गई है क्योंकि हर साल जब मकई का सीजन आता है तब यही काम करके थोड़ी आमदनी होती है।

अगर मजदूरी नहीं करेंगे तो घर कैसे चलेगा। पैसा कमाने के लिए मेहनत करनी ही पड़ेगी चाहे धूप हो या बरसात। धूप से बचने के लिए वे सुबह सत्तू पीकर आते हैं ताकि शरीर को ताकत मिले और गर्मी सह सकें।

विनोद राय की काम करते हुए तस्वीर (फोटो साभार: सुमन)

इस फोटो में जो महिला को आप देख रहे हैं उनका नाम लक्ष्मी है। जो खेत में धूप से बचने के लिए सिर पर पल्लू रखती हैं और कभी-कभी हाथों को भी ढक लेती हैं ताकि तेज धूप से थोड़ा आराम मिल सके लेकिन फिर भी धूप लग ही जाती है। उनके हाथ धूप में लगातार काम करने से सूख और मुरझा गए हैं।

लक्ष्मी की उम्र 65 साल है फिर भी वे खेतों में काम करती हैं। फोटो में जो मकई दिख रही है वह उन्होंने ही काटी है और अब उसकी छिलाई कर रही हैं। हर 20 दलिया में से सिर्फ एक दलिया उन्हें मेहनताना के तौर पर मिलता है बाकी का मालिक को चला जाता है।

यह मकई बाढ़ के समय बहुत काम आता है। इससे चावल की तरह भात बनाकर खाते हैं, भुजा भी बनाते हैं और अगर कुछ बच जाए तो बाजार में बेच देते हैं, जिससे कुछ पैसे मिल जाते हैं।  

लक्ष्मी की तस्वीर (फोटो साभार: सुमन)

इस फोटो में एक महिला पीली साड़ी पहने खेत में काम करती दिख रही हैं। उनकी बेटी उनके लिए खाना लेकर आ रही है। महिला ने बताया कि उनकी बेटी अब बड़ी हो गई है और उसकी शादी करनी है। इसी के लिए वे खेतों में काम कर रही हैं, ताकि थोड़ा अनाज हो जाए और उसे बेचकर कुछ पैसे मिल जाए। बेटी साथ होती है तो थोड़ी राहत मिल जाती है सुबह जल्दी खेत पर आ जाती हैं और खाना बना-बनाया मिल जाता है।

इस फोटो में राजकुमारी, ज्योति कुमारी और गुड़िया देवी सड़क किनारे बैठकर मकई से दाने निकालने का काम कर रही हैं। वे हँसते हुए बताती हैं कि मैडम, आप बैठिए, मैं आपको समझाती हूं कि हम क्या कर रहे हैं और इसका क्या-क्या उपयोग होता है।

मकई से दाना निकालने के लिए लोहे की छड़ का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे भुट्टे से दाने झड़ जाते हैं। फिर इन दानों को फैलाकर धूप में सुखाया जाता है। जब ये सूख जाते हैं, तो इन्हें घर ले जाकर भुजा बनाया जाता है, जिसे कभी भी खाया जा सकता है।

अगर चावल बनाने का मन न हो, तो ये दाने पानी और नमक के साथ पकाए जा सकते हैं, जो चावल जैसे ही स्वादिष्ट लगते हैं और सब्जी के साथ खाए जा सकते हैं। यह हमारे लिए एक तरह का पूरा भोजन बन जाता है।

इसके अलावा, मकई की बची हुई लकड़ी को भी फेंका नहीं जाता। उसे सुखाकर चूल्हे में जलावन के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। यानी एक ही काम से कई फायदे हो जाते हैं।

जब दाने अच्छे से सूख जाते हैं, तो उन्हें बोरी में भरकर रखा जाता है। फिर व्यापारी खुद घर आकर इन्हें खरीद लेता है और पैसे दे जाता है।

राजकुमारी, ज्योति कुमारी और गुड़िया देवी की तस्वीर (फोटो साभार: सुमन)

मकई खाने में मजेदार लगती है लेकिन इसके पीछे कितनी मेहनत है इसे शायद ही आप समझ पाए। खेतों से बाजार तक का सफर ये किसानों के लिए बहुत कठिन होता है। 

 

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