खबर लहरिया Blog भूरागढ़ किले की दीवारें हैं प्रेम का प्रमाण 

भूरागढ़ किले की दीवारें हैं प्रेम का प्रमाण 

उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में भूरागढ़ किला जो कि केन नदी के किनारे स्थित है। इस किले को 17 वीं शताब्दी में राजा गुमान सिंह द्वारा भूरे पत्थरों से बनाया गया था। आजादी की लड़ाई के समय का यह बेहद महत्वपूर्ण स्थान था। यहां पर हर साल मेला भी लगता है जिसे ‘नटबली का मेला’ कहा जाता है।

                                भूरागढ़ किले के प्रवेश मार्ग पर लगे बोर्ड की तस्वीर  (फोटो  साभार – खबर लहरिया)

लेखन व फोटो – सुचित्रा 

यहां की दीवारें और किले पर की गई नकासी इतिहास को बयान करती हैं। किले से सटी केन नदी बहुत सुन्दर और आकर्षक लगती है। यहां के सुन्दर दृश्य आपको यहां आने को मजबूर कर देते हैं। इस किले में एक तरह की शांति है, सुकून है जो आपके तनाव को कम करने में मदद करेगा।  

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Bhuragarh fort walls are the proof of love

                                                          किले से दिखाई देती केन नदी की तस्वीर

किले की बनावट बहुत ही खूबसूरत है और इसे देखने बाहर से भी पर्यटक आते हैं। यह दिखने में भले बहुत पुरानी लगे पर इसे देख कर अलग ही खुशी का एहसास होता है।

Bhuragarh fort walls are the proof of love

                                                                   पुरानी हो चुकीं किले की दीवारें

यहां की सबसे अनोखी और खास बात है यहां की दीवारें। इन दीवारों का अपना एक इतिहास है। इन दीवारों पर आपको कई प्रेमी जोड़ों के नाम लिखे हुए मिलेंगे। ऐसा करने के पीछे एक कहानी है। लोक कथा के अनुसार माना जाता है कि जो इस किले में अपना नाम लिखता है उनका प्रेम कभी अधूरा नहीं होता और उनका प्रेम अमर हो जाता है। ये दीवारें प्रमाण हैं उन प्रेमी जोड़ों का, जिनके ह्रदय में आज भी प्रेम के प्रति उम्मीद है। एक ऐसी उम्मीद कि उनका प्रेम संरक्षित हो और ये दीवारें उन उम्मीदों को पूरा कर देगी।

Bhuragarh fort walls are the proof of love

                                                 दीवारों पर प्रेमियों के लिखे गए नामों की तस्वीर

भूरागढ़ किले से जुड़े प्रेम की कहानी का इतिहास 

Bhuragarh fort walls are the proof of love

                                                                भूरागढ़ में रानी महल की तस्वीर

माना जाता है कि तकरीबन 600 साल पहले महोबा जिले के सुगिरा के रहने वाले नोने अर्जुन सिंह भूरागढ़ दुर्ग के किलेदार थे। किले से कुछ दूर मध्यप्रदेश के सरबई गाँव में रहने वाला नट जाति का 21 साल का युवक किले में नौकर था। किलेदार की बेटी को नट बीरन से प्यार हो गया। जिसके बाद वह अपने पिता यानी किलेदार से नट से शादी करवाने के लिए ज़िद्द करने लगी। नोने अर्जुन सिंह ने अपनी बेटी के सामने शर्त रखी कि अगर बीरन नदी के उस पार  बांबेश्वर पर्वत से किले तक नदी, सूत की रस्सी ( कच्चे धागे की रस्सी ) पर चढ़कर किले तक आएगा तभी उसकी शादी राजकुमारी के साथ करायी जाएगी।

बीरन ने नोने अर्जुन सिंह की शर्त मान ली। ख़ास मकर सक्रांति के दिन वह सूत पर चढ़कर किले तक आने लगा। चलते–चलते उसने नदी पार कर ली। लेकिन जैसे ही वह किले के पास पहुंचा, नोने अर्जुन सिंह ने किले से बंधे सूत के धागे को काट दिया। बीरन ऊंचाई से चट्टानों पर आ गिरा और उसकी मौत हो गयी। जब नोने अर्जुन सिंह की बेटी ने किले की खिड़की से बीरन की मौत देखी तो वह भी किले से कूद गयी और उसी चट्टान पर उसकी भी मौत हो गयी। दोनों प्रेमियों की मौत के बाद, किले के नीचे ही दोनों की समाधि बना दी गयी। जिसे की बाद में मंदिर के रूप में  बदल दिया गया।

Bhuragarh fort walls are the proof of love

           दोनों प्रेमियों की बनाई गई समाधि जिसे मंदिर के रूप में बदल दिया गया है

मकर संक्रांति के दिन लगता है ‘आशिकों का मेला‘

भूरागढ़ किले में हर साल मकर संक्रांति के दिन ‘आशिकों का मेला‘ लगता है। अपने प्रेम को पाने के लिए हज़ारो जोड़े इस दिन यहाँ आकर विधिवत पूजा करते हैं और मन्नत मांगते हैं। मेले में दूर–दूर से लोग आते हैं।

 

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