खबर लहरिया Blog Madhya Pradesh: छुआछूत के शिकार हुए बासुर समाज, पानी के लिए भी करना पड़ता है इंतजार

Madhya Pradesh: छुआछूत के शिकार हुए बासुर समाज, पानी के लिए भी करना पड़ता है इंतजार

यहां की सबसे बड़ी समस्या पानी की है,  गांव में सिर्फ एक कुआं और एक ही हैडपंप है जिसमें दोनों ही सूखे पड़े हुए हैं।

The dried up well of Dhubela

धुबेला का सूखा हुआ कुआं (फोटो साभार: आलीमा)

रिपोर्ट – आलीमा, लेखन – रचना 

एक ओर देश को आजाद हुए 77 साल हो चुके हैं। दूसरी ओर संविधान में हर नागरिक को समानता, सम्मान और अधिकार भी दिए गए हैं लेकिन हकीकत आज भी देश के कई जगहों पर बेहद दुखद और दर्दनाक नजर आता है। जात-पात, भेदभाव और छुआछूत जैसे क्रूर सच आज आजादी के 77 बाद भी कुछ समाजों की जिंदगी का हिस्सा और सच्चाई हैं। आज भी कई दलित वर्ग के लोग और समाज जातिवाद और छुआछूत जैसे गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं। इसी बीमारी से छुटकारा पाने के लिए दलित समाज लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे में आजाद और स्वतंत्र भारत आसानी से नहीं कहा जा सकता।

एक ऐसा ही मामला मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के नौगांव ब्लॉक के महू सहानिया ग्राम पंचायत के धूबेला मोहल्ले से सामने आया है जहां बासुर (बसोरा) समाज के लोगों को पानी जैसी बुनियादी जरुरत के लिए भी अपमान सहना पड़ रहा है।

पानी के लिए दूरी और भेदभाव 

धुबेला मोहल्ला में लगभग 250 लोगों की आबादी है जिसमें यादव, ठाकुर, अल्पसंख्यक और बासुर समाज के लोग रहते हैं इसी में ही बासुर समाज के लगभग 60 से 70 घर के लोग रहते हैं। दरअसल यहां की सबसे बड़ी समस्या पानी की है। गांव में सिर्फ एक कुआं और एक ही हैडपंप है जिसमें दोनों ही सूखे पड़े हुए हैं। अब एकमात्र पानी का स्त्रोत गांव से काफी दूर लगा एक हैडपंप है और उसी से पूरे धुबेला को पानी की पूर्ति हो पा रही है।

अब उस हैडपंप में सभी जाति के लोग पानी लेने जाते हैं और जब बासुर समाज के लोग वहां पानी भरने जाते हैं तो बाकी जातियों के द्वारा उनके साथ छुआछूत जैसा व्यवहार किया जाता है। पहले बाकी जाति के लोग पानी ले जाते हैं तब बासुर समाज के लोगों को पानी भरने दिया जाता है।

गांव के रहने वाले कल्लू बसोर का कहना है कि “जब हम लोग पानी भरने जाते हैं तो पहले ऊंची जाति के लोग पानी भरते हैं। चाहे हमें कितनी भी ज़रूरत हो हमें इंतजार करना पड़ता है। हमसे कहा जाता है कि तुम लोग दूर रहो, हमारे बर्तन मत छूना।” 

औरतों को भी नहीं मिलती है इज्जत 

बासुर समाज के महिलाओं को भी यही अपमान का सामना करना पड़ता है। 53 साल की सोमवती धुबेला की निवासी है वे बतलाती हैं कि “हम जैसे ही पानी भरने जाते हैं तो उंची जाति के लोग डांटने लगते हैं और कहते हैं हम पहले पानी भरेंगे फिर तुम लोग भरते रहना।” 

इसी तरह 29 साल की छोटी बसोर की बातें और भी दुखी कर देती है। उन्होंने बात करते हुए बताया कि “पहले जब वे हैडपंप से पानी भरते थे तो उंची जाति के लोग बाद में आकर पूरा हैडपंप धोते थे जैसे हमने उसे गंदा कर दिया हो। हमें पानी की बहुत जरुरत होती है लेकिन हमें हमेशा बाद में ही भरने दिया जाता है। कई बार इस बात पर झगड़ा भी हुआ लेकिन हमारी बात कोई नहीं सुनता। 

सरपंच ने क्या कहा 

बासुर समाज के लोगों द्वारा इस बात को लेकर सरपंच से भी शिकायत की गई थी लेकिन उनके पक्ष से किसी भी तरह की सुनवाई नहीं हुई। उन्होंने पानी की भी मांग की थी कि पानी की समस्या लगातार बढ़ रही है लेकिन इस पर भी कोई खास सुनवाई नहीं की जाती। 

ग्राम पंचायत की सरपंच साक्षी का कहना था कि “हमें पता है कि पानी की समस्या है और हम चाहते हैं कि इसका समाधान हो। हमने जनपद स्तर पर बात रखी है और जल्द ही यहां पानी की सप्लाई शुरू कराने का प्रयास किया जा रहा है। रही बात छुआछूत की तो ऐसा कुछ नहीं है। सभी को पानी भरने दिया जाता है।”

हालांकि जमीनी हकीकत इससे उलट दिखाई देती है। बासुर समाज के लोगों कि पीड़ा और अनुभवों से साफ है कि उन्हें आज भी बराबरी का अधिकार नहीं मिला है।

विभाग की प्रतिक्रिया 

इस मामले पर कर (टैक्स) पालन अधिकारी संजय कूबरी से भी बात की गई। उनके द्वारा यह कहा गया कि धुबेला मोहल्ले में पानी की समस्या काफी समय से बनी हुई है। वहां के लोगों द्वारा सप्लाई के पानी की मांग की थी लेकिन वहां पानी के स्त्रोत बहुत ही कम है। फिलहाल अधिकारी द्वारा टैंकर से मुहल्ले तक पानी पहुंचाने की व्यवस्था करने की कोशिश की जा रही है।

जहां एक ओर ‘हर घर जल’ और ‘स्वच्छ भारत’ जैसी योजनाएं चलाई जा रही है वहीं दूसरी ओर ऐसे गांव, मोहल्ले या बस्तियों में आज भी पानी के लिए लोग लड़ते दिखाई दे रहे हैं। इसी के साथ कई जगहों के लोग आज भी जाति के नाम पर अपमानित होते दिखते हैं। जिस देश ने दुनिया को समानता, अहिंसा और मानवता का पाठ पढ़ाया, वहां आज भी कुछ लोगों को इंसान नहीं समझा जाता।

अगर जाति जैसी कोई चीज नहीं होती तो शायद बासुर समाज और बाकी उंचे समाज के लोग एक साथ पानी की समस्या के लिए आवाज उठा सकते थे। वे अब आपस में ही बटे हुए हैं तो गांव की असली समस्या पर सवाल ही नहीं किया जा रहा है।

सरकार और प्रशासन को सिर्फ पानी की टंकी या टैंकर नहीं बल्कि लोगों की सोच को भी बदलने पर भी ध्यान देना चाहिए। जब तक समाज में हर व्यक्ति को बराबरी का दर्जा नहीं मिलेगा तब तक देश की आजादी अधूरी रहेगी। 

 

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