बाँदा जिले में लगातार बारिश होने से किसान खुश है और इसके साथ उन्होंने खरीफ फसलों की बुवाई भी शुरू कर दी है।
जिला बांदा| जुलाई का पूरा महीना बिना बरसात के गुज़र रहा था। यह समय किसानों के खरीफ़ की फसल बुवाई और धान रोपाई के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण था। लेकिन बारिश ना होने से किसान खरीफ की फसल की बुवाई और धान रोपाई नहीं कर पा रहे थे। जिससे उनके चेहरे मुरझाए हुए थे। आखिरकार मौसम मेहरबान हुआ और जिस बारिश का जिले के लोगों को इंतजार था खासकर किसानों को वह 4 दिनों तक लगातार झमाझम हुई। जिससे किसानों के चेहरे चमक उठे और लोगों को गर्मी से भी राहत मिली।
ये भी देखें- LIVE पन्ना: बारिश न होने की वजह से कई गाँव में खरीफ की फसल नहीं बोई गयी
काम के साथ लगता है चौरा दरबार
अब किसान खरीफ की फसल बुवाई और धान की रोपाई करने के लिए जोरों से जुट पड़ा है। जहां भी निकलो लोग खेतों में ही नज़र आते हैं। कोई जोताई कर रहा है तो कोई बुआई कर रहा है तो कोई धान की रोपाई में लगा हुआ है। यह मौसम घरों में कम खेतों में ज्यादा अच्छा लगने वाला है इसलिए इस समय बहुत अच्छा लगता है। इस समय खेत बहुत सुंदर लग रहे हैं। इतना ही नहीं महिलाओं के लिए यह एक सुहाने मौके की तरह होता है। इस समय सारी महिलाएं एक साथ धान की रोपाई के लिए खेतों में होती है तो काम के साथ-साथ वहां चौरा दरबार का नज़ारा भी देखने को मिलता है।
धान रोपाई को लेकर किसानों ने जतायी खुशी
नरैनी ब्लॉक के पाली गांव के किसान मैयादीन बताते हैं कि उनकी लगभग 10 बीघे की खेती है। नरैनी से लेकर महुआ-बड़ोखर तक यह पूरा अतर्रा बेल्ट धान का क्षेत्र होता है। वह लोग इस मौसम में धान की खेती करते हैं। उन्होंने नर्सरी जून के महीने में तैयार कर ली थी जिसमें लगभग 3000 रुपये की लागत लगाई थी।
लेकिन जब पूरी जुलाई निकलने लगी और बारिश नहीं हुई तो उनकी चिंताएं दिन-रात बढ़ने लगी क्योंकि वह एक कृषक है और कृषि ही उनका मुख्य सहारा है। वह बस यही सोच रहे थे कि अब धान की नर्सरी भी सूख रही है और पैसा भी खर्च हो गया है, साल भर का गुजारा कैसे चलेगा कि अचानक मंगलवार को रात बारिश शुरू हो गई। 3 दिन की लगातार हुई बारिश ने उनको सकून दिया। वह बताते हैं कि यह बारिश हम किसानों के लिए एक का जीवनी बनकर आई है।
आगे वह कहते हैं कि जिन किसानों ने पहले खरीफ की फसल बो दी थी और बारिश ना होने से उनकी फसल सूख रही थी उस फसल को इस बारिश से अमृत मिल गया है। इसलिए वह बहुत खुश है और अब वह धान रोपाई में जोरों से जुट जाएंगे।
बारिश होने से मिला काम
धान की रोपाई कर रहीं महिला किसान केसरिया और फूला बताती हैं कि वह लोग तो मजदूर हैं। 2 बीघे उनके पास खेती है वह उसको ही करती हैं और दूसरों के खेतों में पेड़ लगाने का काम करती हैं।
वह कहती हैं कि बरसात के समय उनके पास अन्य कोई काम नहीं होता इसलिए अगर कुछ दिन किसानों के खेतों में वह पेड़ लगाने का काम करती हैं तो उसमें ₹100 से डेढ़ सौ रुपए कुर्ता मिल जाता है जिससे उनके परिवार का खर्च भी चलता है। लेकिन जुलाई के महीने में बारिश ना होने से उन्हें काम नहीं मिल पा रहा था। धान की रोपाई करने से उनके घर की साग-सब्ज़ी चल जाती है पर अब बारिश हो गई है तो वह लोग खेतों में लाइन लगा रही हैं और खुश हैं कि कम से कम बारिश हुई है तो उनको काम मिला है।
जब हमने उनसे यह सवाल किया कि यहां आप खेतों में एक साथ जब धान रोपाई करते हैं तो किस तरह काम के साथ-साथ मनोरंजन होता है। उन्होंने बताया कि घर में तो काम के कारण किसी के पास बैठने का और बताने का समय नहीं मिलता लेकिन खेतों में जब वह लोग एक साथ काम कर रही होती हैं तो एक दूसरे से दरबार भी करती जाती हैं और अपना दुःख-सुख भी बांट लेती हैं। जिससे काम के साथ-साथ उनका मनोरंजन भी हो जाता है और उनको दो पैसे भी मिल जाते हैं।
चावल-गेहूं की कटाई-परछाई से मिल जाती है मज़दूरी
महिला किसान कहती हैं कि अब बारिश हुई है तो धान की रोपाई जोरों से चलेगी और यह काम उनको लगभग 1 महीने तक मिलेगा जिससे वह अपने घर खर्च के लिए पैसे जुटा पाएंगी। आगे त्यौहार भी अच्छे से मनाए जाएंगे। वह आगे कहती हैं कि वह एक मजदूर हैं और इसी के सहारे अपनी जीवका चलाती हैं चाहे कृषि कार्य में काम करें या कुछ और काम करें। वह कहती हैं कि जिस तरह अभी धान की रोपाई का काम कर रहे हैं इसी तरह आगे जब धान की कटाई का काम आएगा तो कटाई करेंगे और फिर पछराई भी करेंगी धान की। फिर जो चावल किसानों से मिलेगा उससे साल भर के खाने के लिए रख लेंगी।
इस तरह उनको यह फायदा होता है कि चावल और गेहूं खरीदने नहीं पड़ते क्योंकि चावल के समय में चावल की कटाई का काम मिल जाता है और गेहूं के समय गेहूं कटाई का काम करती हैं। उन्हें इस तरह से मज़दूरी भी मिल जाती है।
कैसे करती हैं घर और खेती का काम?
जब हमने पूछा कि आप घर के काम के साथ-साथ दूसरों के खेतों में पेड़ लगाने का काम कैसे कर लेती हैं। उन्होंने बताया कि सुबह 4:00 बजे उठकर वह अपने घर का काम 8:00 बजे तक पूरा निपटा देती हैं और इसके बाद आकर खेतों में रोपाई का काम करती हैं। दोपहर में 1 घंटे के लिए खेतों में ही पेड़ों के पास बैठकर आराम करती हैं और खाना खाती हैं। इसके बाद फिर वह पेड़ लगाना शुरू कर देती हैं और शाम को 6:00 बजे तक घर चले जाती हैं।
लेकिन इस समय उन्हें घर से ज्यादा खेतों में अच्छा लगता है। वह कहती हैं कि एक पुरानी कहावत है जो आपने सुनी ही होगी कि “जहां अन्न ही अच्छा है तो इस समय खेतों में अनाज की बुवाई और रोपाई हो रही है इसलिए सबसे अच्छा खेतों में लगता है और जब यही अनाज घर में पहुंच जाएगा तो वहां अच्छा लगने लगेगा।”
इस खबर की रिपोर्टिंग गीता देवी द्वारा की गयी है।
ये भी देखें :
चित्रकूट: धान की फसल में जितनी मेहनत उतना नहीं होता किसानों को फायदा
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)