बांदा जिला, बड़ोखर ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले बड़ोखर खुर्द गांव के कोदूराम प्रजापति का कहना है कि उसका 2011 की सूची में नाम है और उसका लोहिया आवास योजना के तहत भी आवास सुची में नाम आ गया था। उस आवास में 3:30 लाख रुपये मिलने थे। उसने सूची निकाल कर खुद अपना नाम देखा था। सूची में नाम आने के बाद सर्वे हुआ, सर्वे में फोटो वगैरह भी खिंच गई इसके बावजूद भी उसे आवास नहीं दिया गया। इसकी शिकायत उसने ब्लॉक पर की और लखनऊ में भी बात की लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
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कोदूराम प्रजापति बताते हैं कि वह एक गरीब व्यक्ति हैं। पलायन करके ईंट-भट्टे में जाते हैं और ईंट की पथाई करते हैं। उसी से उसका परिवार पलता है। वह साल में 8 महीने ईट भट्ठा में ही रहकर गुजारा करते हैं। 4 महीने के लिए घर आते हैं लेकिन उन 4 महीने भी उनको उस कच्चे घर में काटना मुश्किल होता था क्योंकि घर गिरा हुआ था। कभी भी कोई भी घटना हो सकती थी। निकलने-बैठने में उनको इस चीज का डर बना रहता था। यहाँ तक कि उस घर को देखकर उनके घर में कोई रिश्तेदार भी नहीं आता था। इस स्थिति से जूझते हुए उन्होंने किसी तरह ईट भट्टों में पथाई कर कर अपना पेट काटकर जो भी पैसा बचाया था उससे उन्होंने अपना मिट्टी का घर घिरवा दिया। इसके बाद उनका आवास भी आ गया। उन्हें लगा कि अब उनका मकान अच्छे से बन जाएगा लेकिन उसकी खुशी पर पानी फिर गया।
कोदूराम बताते हैं कि गांव के प्रधान और सचिव आए सर्वे करके ले गए। फोटो खींच कर ले गए। इसके बाद ब्लॉक में जाकर यह लिखवा दिया कि उसका मकान पूरा पक्का बना हुआ है जबकि उसने दरवाजे के लेंटर तक ही अपने मकान को बनवाया था। वो भी किसी तरह से पैसा इकट्ठा करके। उसने कई बारी प्रधान से बातचीत की, पूछा उसको यही आश्वासन मिलता रहा कि आपको आवास दिलाया जाएगा। उसने अपनी पूरी परिस्थिति भी बताई कि किस परिस्थिति से वह गुजर रहा है।
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कोदूराम ने यह भी बताया कि उसे अकेले बुलाकर घर में अपने ₹30000 मांगे गए। उसके पास पैसे नहीं थे तो उसने पैसे देने से इंकार कर दिया। इसलिए उसे लगता है कि उसका आवास नहीं मिला। फिलहाल जिस व्यक्ति ने पैसे मांगे थे वह प्रधान के अंडर में था। वह व्यक्ति अब जीवित नहीं है। उसने कई जगह शिकायत की लेकिन कुछ पता नहीं चला। उसको लगता है कि उसका आवास किसी ने पैसे लेकर के किसी के नाम बेच दिया है। इसीलिए उसकी सुनवाई नहीं हुई। अगर उसका 3:30 लाख का लोहिया आवास आ जाता तो उसका अच्छा खासा मकान बन पाता फिर भी उसने किसी तरह की कर्ज लेकर अपने रहने के लिए घर बनाया ही है। जो सरकार से गरीबों के लिए योजनाएं आती हैं उसमें इस तरह की धांधली होती है इसका उसे बहुत ज्यादा अफसोस है।
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