किसानों ने आरोप लगाया कि लेखपाल गलत रिपोर्ट लगा देते हैं, इसी वजह से सैंकड़ों किसान अपना धान बेचने के लिए परेशान हैं।
बांदा के किसान अपना धान नहीं बेच पा रहे हैं। इसका आरोप उन्होंने लेखपाल पर लगाया कि उनके द्वारा गलत रिपोर्ट लगा दी जाती है जिस वजह से वे अपना धान नहीं बेच पाते।
बता दें, बांदा जिले के अंतर्गत आने वाली नरैनी बेल्ट ‘धान के कटोरा’ के नाम से जानी जाती है। यहां पर धान की पैदावार भी भारी मात्रा में होती है। लोगों ने आरोप लगाया कि लेखपाल गलत रिपोर्ट लगा देते हैं, इसी वजह से सैंकड़ों किसान अपना धान बेचने के लिए परेशान हैं।
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लेखपाल की लापरवाही बनी किसानों की परेशानी
नरैनी ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले पियार गांव के किसान अनुरुद्ध गौतम बताते हैं, उन्होंने 11 अक्टूबर 2023 को तहसील में धान बेचने के लिए कागज जमा करवाया था। सत्यापन करने के लिए पहले तो लेखपाल मिल नहीं रहा था और रिपोर्ट लगाने में आनाकानी कर रहा था। बहुत मुश्किल के बाद सत्यापन हुआ है। जब उन्होंने कागज निकलाया और देखा तो उसमें लेखपाल ने उनके नाम की जगह किसी जगप्रसाद पटेल के नाम सत्यापित कर दिया। अब वह उस कागज को सही कराने के लिए चक्कर काट रहे हैं।
उन्होंने बताया, इस समय उनका धान अतर्रा मंडी में बारिश में भीग रहा है। लेखपाल के पास जाते हैं तो वह कहता है कि उसकी गलती नहीं है, कंप्यूटर से हुआ है। कंप्यूटर ऑपरेटर के पास जाते हैं तो वह कहता है मेरी गलती नहीं है क्योंकि लेखपाल सत्यापन करता है।
अब जब तक उनका सत्यापन नहीं होता, जोकि सरकारी नियम है तब तक उनका धान मंडी में नहीं खरीदा जाएगा।
सत्यापन के नाम पर होती वसूली
एमपी की सीमा से सटे कनाय गांव के किसान जगबीर सिंह बताते हैं, करतल न्याय पंचायत के अंतर्गत आने वाले 14 ग्राम पंचायतों और 24 मजरों में लगभग दस हजार किसान हैं। ये किसान करतल मंडी में खुले खरीद केंद्र में जाकर अपना धान बेचना चाहते हैं।
मंडी प्रभारी कहते हैं कि पहले लेखपाल की सत्यापन रिपोर्ट लगवाइए और फीडिग कराइए तब धान खरीद होगी। कूपन मंडी से दिया जाएगा। धान बेचने की परमिशन के नाम पर पहले तो किसानों को अपने खसरा-खतौनी के कागजात फीड कराने पड़ते हैं। इसके बाद लेखपाल उसमें रिपोर्ट लगाता है। हल्का लेखपाल के रिपोर्ट लगाने के बाद फिर तहसील में फील्डिग होती है। इसके बाद जाकर किसान को धान खरीद केंद्रो में धान बेचने का मौका मिलता है।
यह लेखपाल द्वारा किसानों पर किया जाने वाला एक तरह का शोषण भी है जहां वह किसानों को इस तरह से बार-बार चक्कर लगवाने की शक्ति करता है। किसानों ने आरोप लगाते हुए यह भी बताया कि सत्यापन के नाम पर उनसे 500 से 1000 रूपये तक की वसूली की जा रही है जिससे गरीब किसान बहुत ज्यादा परेशान हैं।
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सत्यापन व धान बेचने की प्रक्रिया
सत्यापन से यहां मतलब जांच रिपोर्ट को लगाना होता है जो काम लेखपाल का होता है जो यह देखता है कि किसान द्वारा धान कितने बीघे में बोया गया है। इसके अलावा धान बेचने की प्रक्रिया के बारे में बात की जाए तो….इसमें सत्यापन सबसे ज़्यादा ज़रूरी होता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, जब लेखपाल की सत्यापन रिपोर्ट लगती है तभी धान खरीदा जाता है। पहले से किसानों को मंडी में बुलाकर खड़े होने का कोई नियम नहीं है। किसान जब सत्यापन करवाता है उसके बाद मंडी से कूपन मिलता है और कूपन नंबर के आधार पर किसानों को बुलाया जाता है और फिर किसान इस तरह से अपना धान बेचता है।
लेखपालों की मनमानी से किसान हो रहा प्रताड़ित
इस समस्या को लेकर हमने किसान नेता महेंद्र कुमार से बात की। उन्होंने कहा, लेखपाल अपनी मनमानी के चलते किसानों को परेशान कर रहे हैं। कहीं गलत रिपोर्ट लगाते हैं, तो कहीं पैसे के बल पर सत्यापन करते हैं। जो किसान उनको पैसे देते हैं उन किसानों का सत्यापन जल्दी हो जाता है। इतना ही नहीं अगर किसान चार बीघे में धान बोता है और वह 10 बीघे का सत्यापन कर रहा है, तो पैसे के बल से लेखपाल वो भी करते हैं। ऐसा इसलिए भी क्योंकि उनको मौके पर जाकर तो जांच करनी नहीं है। तहसील में बैठकर ही रिपोर्ट लगा देनी है। यह धांधली को बढ़ावा देती है।
कई किसानों को मज़बूरी में प्राइवेट में अपने धान बेचने पड़ते हैं जहां पर उन्हें अच्छा रेट नहीं मिलता।
लेखपाल ने मामले को कहा झूठा
खबर लहरिया ने जब इस बारे में लेखपाल उमाशंकर गुप्ता से बात की तो उन्होंने कहा, वह किसी से पैसे नहीं लेते, लोग झूठा आरोप लगा रहे हैं। इतने सारे काम होते हैं तो रिपोर्ट लगाने में भले ही थोड़ा लेट हो गया होगा। बाकी पंजीयन का काम तहसील में बाबू करता है।
किसान की जीविका में हमेशा से इस तरह से बाधा आती रही है। कभी बारिश तो कभी इस तरह से मनमानी करने वाले मामले।
इस खबर की रिपोर्टिंग गीता देवी द्वारा की गई है।
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