जिला चित्रकूट कस्बा सीतापुर जहां के रहने वाले आज भी लकड़ी के खिलौने के नाम से जाने जाते हैं गुलाबचंद का 8 साल का था जब से फोन लकड़ी का काम कर रहा हैकहते हैं कि हमारी जिंदगी बीत जाने के बावजूद भी आज हम लकड़ी के खिलौने बना रहे हैं कहते हैं कि मैं पहले एक फर्नीचर के दुकान में काम करता था
जब छोटा था उसके बाद मुझे लगा कि मैं अपने घर में क्यों ना लकड़ी का काम करो जो मेरा नाम हो तो मैं 8 और 10 साल की उम्र से मैंने अपने ही घर में खिलौने बनाना शुरू कर दिया मेरे मन में यह था कि मैं जिस तरह का कहीं देखा है तो रात दिन वही दिखता था और मैं उसको बनाकर ही रहता था ऐसे ही मैंने बनाया था और आज भी बना रहे हैं मेरे यहां से दूर-दराज के लोग भी आते हैं और लकड़ी के खिलौने ले जाते हैं मैं आर्डर में भी देता हूं और घर से भी भेजता हूं दूसरा दूसरा खिलौने बनाने का कलाकार जो कहते हैं
कि यह हमारा शुरू से ही धंधा था और हम शुरू से ही पहले हमारे बाप दादा बनाते थे लकड़ी के खिलौने और आज हम भी बना रहे हैं जो राज से हमें पुरस्कार सम्मानित भी हैं उनका कहना है कि जब हम कहीं बाहर जाते हैं कुछ प्रोग्राम होते हैं मेला जैसे तो हमें लोग पूछते हैं कि आप लोग कहां की है कहां के हैं तो हम अपना बताते हैं कि हम सीतापुर चित्रकूट के हैं तो हमें बहुत गर्व महसूस होता है कि शायद हमारी पहचान लकड़ी के खिलौने से ही है जो हमें लोग पूछते हैं और बहुत अच्छा लगता है कुछ दुकान वालों का कहना है कि हमारे यहां खिलौने बनते हैं तो हम लोग उन्हीं से खरीदते हैं और जब मेला होता है तो बहुत खिलौने बिकते हैं और हम यहीं से लेते हैं खिलौने जो खिलौने खरीदने वाले हैं उनसे भी बात है कि आपको यह खिलौने क्यों पसंद होते हैं उनका कहना है कि हम शुरू से ही खिलौने खरीदते थे और बहुत अच्छे खूबसूरती दार खिलाने रहते हैं तो हम खरीद के ले जाते हैं