बहेलिया समुदाय एक ऐसा समुदाय है जो जंगलों से उत्पादन इकट्ठा कर अपना घर चलाते हैं। वैसे तो ये समुदाय आर्थिक रूप से कमज़ोर माना जाता है, लेकिन इस समुदाय में आज भी कुछ ऐसी प्रथाएं हैं जो पितृसत्ता और लैंगिक भेदभाव को दर्शाती हैं। इस समाज की एक प्रथा जिसका नाम अग्नि परीक्षा है वो आज भी कई जगहों पर प्रचलित है। इस प्रथा में महिलाओं को एक परीक्षा देनी होती है। यह परीक्षा उन्हें सुबह सूरज निकलने से पहले देनी होती है।
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सारे समुदाय के पुरुष एक जगह इकट्ठा होते हैं, वहां पहले से ही आग में रातभर लोहे के गोले को तपाया जा रहा होता है और उस लोहे के गोले को महिला के हाथ में रखा जाता है। सिर्फ चार पीपल के पत्त्ते महिला के हाथ में रखकर इस आग के गोले को रख दिया जाता है और फिर दहकता हुआ ये गोला पांच मिनट तक महिला को अपने हाथ मे रखना पड़ता है। अगर महिला जल गई तो वो बुरी और चरित्रहीन औरत है। अगर वो नहीं नहीं जली तो अच्छी औरत है। अगर महिला जल गई तो उसके परिवार को दंड में पूरे समाज को खाना खिलाना पड़ता है वरना उन्हें समाज से निकाल दिया जाता है।
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जहाँ एक तरफ महिलाएं आज किसी काम में असक्षम नहीं हैं और हर क्षेत्र में देश का नाम रौशन कर रही हैं, वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो “अच्छी और बुरी औरत” के चक्रव्यूह से बाहर नहीं आ पाए हैं। सोचने वाली बात यह भी है कि इस तरह की कठोर “सज़ाएं” और प्रथाएं सिर्फ महिलाओं पर ही लागू होती हैं। मर्द इन प्रथाओं के पात्र तक नहीं होते हैं, लेकिन हाँ संचालन और गवाह बनने के लिए वहां बड़ी तादाद में मौजूद ज़रूर होते हैं।
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