नमस्कार दोस्तों, मैं मीरा देवी खबर लहरिया की प्रबन्ध सम्पादक अपने शो राजनीति रस राय में आपका बहुत बहुत स्वागत करती हूं। दोस्तों बाबाओं का कमाल अब इस कदर बढ़ गया है कि अब वह राजनीति की गद्दी को हथियाने में लम्बी रेस लगा रहे हैं। आज नहीं तो कल गद्दी मिलना तय है क्योंकि अब सरकारें राजनीतिक विशेषज्ञ से नहीं राजनीतिक बाबाओं से चलने की भागमभाग में हैं।
मध्यप्रदेश राज्य के छतरपुर के पास एक गांव है गढ़ा। यहीं पर बागेश्वर धाम है। कहा जाता है कि यहां बालाजी हनुमान जी का मंदिर है। हर मंगलवार को बालाजी हनुमान जी के दर्शन को भारी भीड़ उमड़ती है। धीरे-धीरे इस दरबार को लोग बागेश्वर धाम सरकार के नाम से पुकारने लगे। ये मंदिर सैकड़ों साल पुराना बताया जाता है। 1986 में इस मंदिर का रेनोवेशन कराया गया था। 1987 के आस-पास यहां एक संत बब्बा जी सेतु लाल जी महाराज आए। इनको भगवान दास जी महाराज के नाम से भी जाना जाता था। धाम के मौजूदा प्रमुख पंडित धीरेंद्र शास्त्री भगवान दास जी महाराज के ही पौत्र हैं।
इस समय बागेश्वर धाम का बाबा धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री खूब सुर्खियों में है। गांव से लेकर शहर तक, देश से लेकर विदेशों तक, प्रधान से लेकर सांसद तक, नेता से लेकर मीडिया तक बाबा खूब वायरल है। हर स्तर पर तरह-तरह की बातें हो रही हैं। उस बाबा को कुछ लोगों ने पाखंडी क्या कह दिया वह तो भड़क गया। मंच पर अपने चमत्कार का डेमो देने लगा। बाबा को अंधविश्वास के खिलाफ काम करने वाली संस्था ने चमत्कार को साबित करने का चैलेंज क्या दिया वह मैदान छोड़ भाग निकला। बाद में सफाई भी दिया लेकिन बाबा जी, लोग सब जानते हैं।
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महाराष्ट्र की संस्था अंध श्रद्धा उन्मूलन समिति के श्याम मानव ने धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री पर अंधविश्वास फैलाने का आरोप लगाया। उन्होंने बागेश्वर धाम सरकार को चुनौती दी थी कि वह नागपुर में उनके मंच पर आएं और अपना चमत्कार दिखाएं। संस्थान ने कहा कि अगर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ऐसा करते हैं तो उन्हें 30 लाख रुपये दिए जाएंगे लेकिन उन्होंने चुनौती स्वीकार नहीं की।
ऐसे बाबाओं को बढ़ावा देने में अंधविश्वास को मानने वाले लोग अहम रोल निभाते हैं। चाहें लोग बच्चों की पढ़ाई न करवा पाएं, इलाज न करा पाएं, सरकारी योजनाओं को लेने के लिए चार चक्कर लगाने में कतराएंगे लेकिन बाबाओं के लिए जान तक हाज़िर कर देंगे। महिलाओं का सबसे बड़ा हाथ होता है ऐसे बाबाओं के पास जाने का। भूत, प्रेत, नौकरी, शादी, दौलत जैसे तमाम दुःखड़ा लेके पहुंचती हैं और अपने आपको खुद दांव में लगाती हैं। चाहें जितने राम रहीम जैसे केस हो जाएं लेकिन ऐसी सोच को बदल पाना मतलब लोहे के चना चबाने के बराबर है।
धर्म की आड़ में राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों के लिए ऐसे बाबा सोने में सुहागा साबित होते हैं। जिसमें सबसे पहले नम्बर पर बीजेपी पार्टी है। इस पार्टी के पास हिंदुत्ववादी संगठन कम पड़ रहे हैं क्या जो अब ऐसे बाबाओं की ज़रूरत पड़ रही है। इस पार्टी से बाकी पार्टियां और राजनीतिक नेता भी धार्मिकता को बढ़ावा दे रहे हैं। उनकी नकल कर रहे हैं चाहें कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी को ले लीजिए या आप पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को। अंधविश्वास के खिलाफ वाले लोगों का कहना है कि बाबा के द्वारा बोली जाने वाली बातें भड़काऊ, धर्म विरोधी, सम्प्रदाय विरोधी होती हैं। क्या इसमें शासन, प्रशासन अंकुश लगाएगी?
जब भी ऐसे बाबाओं के लिए बात होती है तो सोशल मीडिया पर लोग आकर अपने पक्ष के बाबा को अच्छा बताने और साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। दूसरे बाबाओं की बुराई करने लगते हैं। ये सब नेता यह नहीं सोचते कि बाबा किसी भी धर्म (हिन्दू, मुश्लिम, सिक्ख, ईसाई, पारसी, जैन) या सम्प्रदाय का हो सबका काम एक ही होता है वह है अंधविश्वास फैलाना और लोगों को बेवकूफ बनाकर अपना बिज़नेस चलाना। इसलिए हम सबको एक साथ मिलकर ऐसे बाबाओं की जड़े नहीं पनपनी देनी चाहिए।
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