गंगा को साफ करने का समय 2020 नजदीक है। इस काम के लिए केंद्र सरकार ने स्वच्छ गंगा मिशन के तहत 2019 तक 20,000 करोड़ रुपये की राशि तय की थी, लेकिन अब तक केवल 25 % से भी कम खर्च हुआ है। 2015 में नमामि गंगे लॉन्च होने के बाद से पिछले चार वर्षों से नवंबर 2018 तक, गंगा और इसकी सहायक नदियों जैसे यमुना और चंबल को साफ करने के लिए परियोजनाओं पर 4,800 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं, जैसा कि 14 दिसंबर, 2018 को लोकसभा में प्रस्तुत आंकड़ों से पता चलता है। अक्टूबर 2018 तक, 3,700 करोड़ रुपये या 4,800 करोड़ रुपये के व्यय का लगभग 77% खर्च किया गया है। इसमें उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल सहित नदी तट वाले राज्यों में गंगा के तट पर गिरने वाले शहरों में सीवेज-उपचार के लिए बुनियादी ढांचे को बनाने पर 11 % से अधिक खर्च नहीं किया गया था।
2019 तक नदी को साफ करने के लिए भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने 20,000 करोड़ रुपये के बजट के साथ 2015 में सबसे बड़ा अभियान ‘नमामि गंगे’ लॉन्च किया। अब कार्यक्रम को 2020 तक बढ़ा दिया गया है।
नदी नहीं हुई साफ
‘केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ के अनुसार, 2013 से नदी पर बने 80 निगरानी साइटों पर प्रदूषण के स्तर बढ़े हैं। बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) पानी में गैर जरूरी कार्बनिक पदार्थों को तोड़ने के लिए जैविक जीवों द्वारा आवश्यक विघटित ऑक्सीजन की मात्रा- 2017 में, 80 साइटों में से 36 साइटों पर 3 मिलीग्राम / लीटर (मिलीग्राम / एल) से अधिक थी और अन्य 30 साइटों पर 2-3 मिलीग्राम / एल थी। 2013 में, यह 31 साइटों पर 3 मिलीग्राम / एल और 24 साइटों पर 2-3 मिलीग्राम / एल था। बीओडी 3 मिलीग्राम / एल को पार करता है, तो पीने की बात तो दूर, पानी नहाने के लिए भी उपयुक्त नहीं है।
परियोजनाओं पर देरी
गंगा में प्रदूषण का मुख्य कारण शहरों का सीवेज है। सरकार के आंकड़ों के अनुसार, गंगा में 2,900 मिलियन लीटर सीवेज का प्रवाह प्रतिदिन होता है, जिसमें से केवल 1,400 सीवेज का प्रवाह का उपचार किया जाता है। स्वच्छ गंगा मिशन के तहत केंद्र सरकार को 1,500 सीवेज उपचार की क्षमता को अतिरिक्त रूप से जोड़ना है, लेकिन 31 अक्टूबर, 2018 को केवल 172 सीवेज उपचार की आवश्यक क्षमता का 11% पूरा किया गया है।
साभार: इंडियास्पेंड