नोट: इस लेख में “आर्टिफिशियल रेन”, “कृत्रिम बारिश” और “नकली बारिश” – ये तीनों शब्द समान अर्थ में उपयोग किए गए हैं।
दिल्ली में पहली बार क्लाउड सीडिंग (cloud seeding) के माध्यम से आर्टिफीसियल रेन / artificial rain (नकली बारिश) कराई जाएगी। इसकी घोषणा पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने की। उन्होंने कहा की इसका इस्तेमाल दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को हटाने के लिए जायेगा। यह बारिश 4 से 11 जुलाई के बीच होगी।
यह आर्टिफीसियल बारिश वायु प्रदूषण से निपटने के लिए कराई जाती है और इसे क्लाउड सीडिंग द्वारा किया जाता है। आईआईटी कानपुर ने सीडिंग ऑपरेशन के लिए एक विशेष फॉर्मूलेशन तैयार किया है। इसके लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर ने पुणे में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) को उड़ान योजना प्रस्तुत की है।
क्लाउड सीडिंग क्या होती है?
क्लाउड सीडिंग से मतलब है बादलों को नकली बारिश के लिए तैयार करना। बादलों में वैज्ञानिक रूप से तैयार किया गया फार्मूला जिसमें सिल्वर आयोडाइड नैनोकणों, आयोडीन युक्त नमक और सेंधा नमक शामिल होता है बीज के रूप में हवाई जहाज, रॉकेट या ज़मीन पर मशीनों के माध्यम से डाला जाता है। इसकी वजह से बारिश होती है। इसका उद्देश्य हवा को साफ़ करना होता है।
दिल्ली में कहाँ होगी आर्टिफीसियल रेन?
लाइव मिंट की रिपोर्ट के अनुसार आर्टिफीसियल रेन को सफल बनाने के लिए दिल्ली में उत्तर-पश्चिम और बाहरी दिल्ली में कम सुरक्षा वाले हवाई क्षेत्र को चुना गया है। उत्तरी दिल्ली जैसे रोहिणी, बवाना, अलीपुर और बुराड़ी होंगे और उत्तर प्रदेश के पास वाले इलाके लोनी और बागपत होंगे जहां नकली बारिश हो सकेगी। इसके लिए पाँच विमान उड़ानें भरेंगे। ये विमान लगभग 90 मिनट तक बादलों का चक्कर लगाएंगे और इसके साथ ही लगभग 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र तक ये विमान जायेंगे।
मानसून में नकली बारिश क्यों?
दिल्ली में मानसून कदम रख चुका है तो ऐसे में नकली बारिश की क्या जरूरत है? यह सवाल मन में उठता ही है, क्योंकि वायु प्रदूषण अधिकतर सर्दियों के मौसम में ख़राब रहता है जब ज्यादा जरूरत होती है। वैसे तो पहले भी कई बार चर्चा में आया है कि प्रदूषण से राहत पाने के लिए नकली बारिश कराई जाएगी पर इस बार पहली बार दिल्ली में नकली बारिश कराई जाएगी।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर के प्रोफेसर दीपू फिल्प जो इस परियोजना का हिस्सा है। उन्होंने आज तक न्यूज़ एंजेंसी से बात करते हुए बताया कि नकली बारिश का प्रभाव जानने के लिए बादलों की आवश्यकता होती है जो मानसून में ही मिलेगी, इसलिए अभी नकली बारिश कराने का निर्णय लिया है। इसके बाद हम देखेंगे कि वायु गुणवत्ता में कितना सुधार आता है।
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