बुधवार 11 नवंबर की शाम को रिपब्लिक टीवी ( Rebublic TV ) के मुख्य सम्पादक और मालिक अर्नब गोस्वामी को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम ज़मानत पर रिहा कर दिया। उसके साथ ही अर्नब और अन्य दो व्यक्ति जिन्हे इंटीरियर डिज़ाइनर अन्वय नाइक के आत्महत्या में मामले में पकड़ा गया था, उन्हें 50 हज़ार रुपयों का बॉन्ड (ऋणपत्र) भरने को कहा गया। अर्नब की गिरफ़्तारी पर बीजेपी और केंद्र सरकार ने महारष्ट्र पुलिस की निंदा की और गिरफ्तारी को अमित शाह, स्मृति ईरानी आदि नेताओं द्वारा गैर–कानूनी भी कहा गया। लेकिन यह आवाज़े सिर्फ इस वक़्त ही सुनाई दे रही हैं क्यूंकि इससे पहले भी कई मामले हुए जिनमे पत्रकारों को बिना किसी सबूत के गिरफ्तार कर लिया गया था और उस वक़्त ऐसी कोई भी आवाज़ सुनने में नहीं आयी थी।
आठ दिन में मिली अर्नब को ज़मानत
4 नवंबर 2020 को महाराष्ट्र पुलिस द्वारा अर्नब गोस्वामी को उसके घर से गिरफ्तार किया गया था। गिरफ्तारी के आठ दिन बाद ही अदालत द्वारा अर्नब को रिहा कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ कहते हैं कि अभिव्यक्ति की आज़ादी की रक्षा करना अदालत का काम है। पुलिस दोष साबित हुए बिना किसी को इस तरह गिरफ्तार नहीं कर सकती। हालंकि यह बात यहां कुछ हज़म नहीं होती क्यूंकि ऐसे कई पत्रकार और लोग हैं, जिनको दोषी करार नहीं दिया गया है। इसके बावजूद भी वह लोग सालों से जेल में बंद हैं।
पूरा मामला पढ़े : अर्नब गोस्वामी को महाराष्ट्र पुलिस ने किया गिरफ्तार, मंत्रियों ने इस कदम को कहा ‘आपातकालीन जैसा दृश्य ‘
पत्रकार जिन्हें बिना सबूत के हिरासत में लिया गया, नहीं हुई सुनवाई
अदालत द्वारा यह कहना कि ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ की रक्षा करना अदालत का काम है, बात बहुत अटपटी सी लगती है। हम आपको उन पत्रकारों के बारे में बता रहे हैं जिन्हे बिना सबूत और अदालत की सुनवाई के अभी तक जले में बंद रखा गया है।
– पत्रकार सिद्दीक कप्पन
केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन की गिरफ्तारी और हिरासत को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अर्णब गोस्वामी की जमानत याचिका के संबंध में उल्लेख किया था। 5 अक्टूबर 2020 को वह यूपी हाथरस मामले में रिपोर्टिंग के लिए जा रहे थे। जिन्हे यूपी पुलिस द्वारा अनलॉफुल एक्टिविटीज़ प्रिवेंशन एक्ट ( यूपीए ) के तहत यह कहते हुए हिरासत में लिया गया कि वह गैर–क़ानूनी गतिविधियों में शामिल थे। अभी वह लगभग 40 दिनों से बिना किसी सबूत के पुलिस हिरासत में बंद है। जर्नलिस्ट यूनियन ने कप्पन की ज़मानत के लिए सुप्रीम कोर्ट में हैबीज़ कार्पस की याचिका दायर की थी। जिसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उन्हें सही अदालत में जाना चाहिए।
देश मे पत्रकारों की हत्या हो गयी है आम बात
-पत्रकार प्रशांत कनौजिया
ऐक्टिविस्ट और स्वतंत्र पत्रकार प्रशांत कनौजिया को यूपी पुलिस ने अगस्त 2020 को दिल्ली में उनके घर से गिरफ्तार किया था और फिर उसे लखनऊ लेकर जाया गया। पुलिस के मुताबिक कनौजिया ने अपने ट्विटर पर राम मंदिर से जुड़ी एक पोस्ट डाली थी, जो की धार्मिक शांति को चोट पहुंचा रही थी। जिसका स्क्रीनशॉट बहुत तेज़ी लोगों में फ़ैल गया। वहीं कनौजिया की पत्नी जगीशा अरोरा का कहना था कि पुलिस साधारण कपड़ों में उनके घर आयी थी। जब पुलिस से पूछा गया कि प्रशांत को क्यों गिफ्तार किया जा रहा है तो पुलिस का कहना था कि “ट्वीट का मामला है“। जब पूछा गया कि कौन सा ट्वीट तो पुलिस का कहना था “बहुत ट्वीट किये हैं तुमने, ऊपर से आदेश आये हैं हमें, मानना तो पड़ेगा“।
“पत्रकार प्रशांत कनौजिया को यूपी पुलिस ने उनके दिल्ली वाले आवास से गिरफ्तार किया“- जगीशा अरोरा
पत्रकार प्रशांत कनौजिया को यूपी पुलिस ने उनके दिल्ली वाले आवास से गिरफ्तार किया.
— Jagisha Arora (@jagishaarora) August 18, 2020
2019 में भी कनौजिया को यूपी पुलिस द्वारा मुख्यमंत्री से सबंधित फेसबुक और ट्वीटर पोस्ट के लिए गिरफ्तार किया गया था। पुलिस का आरोप था की पोस्ट मुख्यमंत्री की छवि धूमिल कर रही थी। हालांकि उसके बाद सबूत न होने पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा कनौजिया को रिहा करने का आदेश दे दिया गया था।
पत्रकारों की आवाज़ ही कोई नहीं सुनता, तो आम जनता का क्या होगा?
पत्रकार आसिफ सुलतान
2018 में कश्मीरी पुलिस द्वारा पत्रकार आसिफ सुलतान को गिरफ्तार किया गया। आसिफ ने एक कहानी लिखने के लिए आतंकी बुरहान के ओवरग्राउंड वर्कर्स से बात की थी। जो उसके पिछले सभी पुलिस रिकॉर्ड, उसके दोस्तों और परिवार के सदस्यों पर आधारित थी। हालांकि पुलिस ने यह नहीं बताया कि कहानी के लिए आसिफ को गिरफ्तार किया गया था बल्कि पुलिस का कहा था कि उसके उग्रवादियों के साथ संबंध होने के सबूत हैं। जिसके बाद लोगों द्वारा इस पर विरोध भी किया गया और हैशटैग ‘जर्नलिज्म इज़ नॉट ए क्राइम‘ करके भी कई पोस्ट किये गए। आज आसिफ की गिरफ्तारी को लगभग 808 दिन हो गए हैं लेकिन अदालत द्वारा इस पर कोई भी फैसला नहीं सुनाय गया है।
पत्रकारिता की स्वतंत्रता के लिए एक अपील
कवी वरवर राव व वकील सुधा भारद्वाज
जून 2018 में पूणे पुलिस ने कवि कवी वरवर राव व वकील सुधा भारद्वाज को माओवादियों से संपर्क रखने के संदेह में गिरफ्तार किया था। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि पिछले साल 31 दिसंबर 2017 को पूणे में एल्गार परिषद नाम के एक कार्यक्रम के बाद महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा की जांच के तहत ये छापे मारे गए थे। जिसके तहत वरवर राव और सुधा भारद्वाज को गिरफ्तार किया गया था।
वकील सुधा भारद्वाज की उम्र 58 साल की है और वह लगभग ढाई साल से जेल में बंद हैं। इन्हे यूपीए के तहत गिरफ्तार किया गया था। इसी साल 24 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अंतरिम ज़मानत देने से इंकार कर दिया। वहीं कवि वरवर की उम्र 79 वर्ष है और वह दो साल से अपनी ज़मानत का इंतज़ार कर रहे हैं। वह इस वक़्त बीमार है , लेकिन फिर भी उनके लिए अदालत की तरफ से अभी तक कोई भी कार्यवाही नहीं की गयी।
यह वह सारे पत्रकार और लोग हैं जिन्हें सिर्फ संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया गया था। कुछ लोगों के इल्ज़ामों को साबित भी नहीं किया गया। न इन लोगों को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा कोई फैसला लिया गया। वहीं अर्नब गोस्वामी के मामले में अदालत ने बहुत ही फुर्ती से काम किया और अंतरिम ज़मानत भी दे दी। सालों से बंद इन पत्रकारों और लोगों के कोई भी दोष साबित नहीं हुए हैं फिर भी वह जेल में बंद है और इंतज़ार कर रहे हैं कि शायद कभी तो अदालत उनकी तरफ भी देखेगी और उन्हें लेकर कोई फैसला सुनाएगी।