भारत के पड़ोसी देश म्यंमार में 1 फरवरी को वहां की सेना द्वारा तख्तापलट कर दिया गया है। जानकारी के अनुसार, सेना द्वारा म्यंमार की स्टेट कॉउंसलोर आंग सान सू की समेत कई वरिष्ठ नेताओं को भी सेना द्वारा बंदी बना लिया गया है। इतना ही नहीं सेना द्वारा देश मे एक साल का आपातकाल घोषित कर, देश को अपने कब्ज़े में कर लिया गया है। इसकी खबर सेना के स्वामित्व वाले चैनल ‘मयावाडी टीवी’ द्वारा सोमवार की सुबह दी गयी थी।
म्यंमार की सेना द्वारा किए गए इस कार्य की अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने कड़ी आलोचना की और देश पर नए प्रतिबंध लगाने की भी चेतावनी दी। साथ ही भारत ने भी म्यंमार में हुई राजनीतिक उठा-पटक पर अपनी चिंता व्यक्त की। सेना ने हवाला देते हुए कहा कि संविधान का एक हिस्सा उन्हें यह इज़ाज़त देता है, जिसके अनुसार राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति में देश का नियंत्रण सेना के हाथों में आ जाता है।
जो बाइडन ने कहा : जनता की इच्छा दरकिनार नहीं करनी चाहिए
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने बयान में कहा, ‘बर्मा (म्यंमार) की सेना द्वारा तख्तापलट, आंग सान सू ची एवं अन्य प्राधिकारियों को हिरासत में लिया जाना और राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा देश में सत्ता के लोकतंत्रिक हस्तांतरण पर सीधा हमला है।
उन्होंने कहा, ‘लोकतंत्र में सेना को जनता की इच्छा को दरकिनार नहीं करना चाहिए। लगभग एक दशक से बर्मा के लोग चुनाव कराने, लोकतांत्रिक सरकार स्थापित करने और शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण को लेकर लगातार काम कर रहे हैं। इस प्रगति का सम्मान किया जाना चाहिए।’
भारत ने कहा : म्यंमार पर रख रहे हैं करीब से नज़र
भारत के विदेशी मंत्रालय ने म्यंमार में हुई सैन्य घटना पर गहरी चिंता जताते हुए कहा ”भारत ने म्यंमार में लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता के हस्तांतरण की प्रक्रिया का हमेशा समर्थन किया है। हमारा मानना है कि कानून के शासन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन होना चाहिए। हम हालात पर निकटता से नजर रख रहे हैं।”
पाँच सालों से है देश में सेना का शासन
म्यंमार देश मे पिछले पांच सालों से सेना का ही शासन रहा है। लेकिन आंग सान सू की की जीत के बाद में देश में लोकतांत्रिक शासन आने की संभावना बन रही थी। 1 फरवरी को आंग सान सू की संसद के पहले सत्र के साथ अपना कार्यभार संभाल ने वाली थीं। उससे पहले ही उन्हें बंदी बना लिया गया और देश में एक बार फिर से लोकतांत्रिक शासन की स्थापना नहीं हो पाई।
देश में संचार की सेवाएं बंद
बताया जा रहा है कि सेना ने आंग सान सू की को हाउस अरेस्ट के तहत हिरासत में ले लिया है। इतना ही नहीं, म्यंमार की राजधानी नैपिटॉ में संचार के सभी माध्यमों को भी बैन कर दिया गया है। फोन और इंटरनेट सेवा को निलंबिद कर दिया गया है और आंग सान सू की की पार्टी नेशनल लीग डेमोक्रेसी पार्टी तक की पहुंच को भी खत्म कर दिया है।
सोमवार की सुबह सभी नेताओं को बनाया गया बंदी
स्टेट काउंसलर आंग सान सू की के साथ-साथ राष्ट्रपति विन म्यांत को भी हिरासत में लिया गया। नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी के प्रवक्ता मायो न्यांट ने बताया कि म्यंमार की काउंसलर आंग सान सू की और देश की सत्तारूढ़ पार्टी के अन्य वरिष्ठ लोगों को सोमवार, 1 फरवरी की सुबह हुई छापेमारी में हिरासत में लिया गया।
चुनाव में धांधलेबाजी की शंका से हुआ तख़्तापलट
पिछले साल 2020, में 8 नवंबर को म्यंमार में आम चुनाव हुए थे। जिसमें आंग सान सू की की जीत हुई थी। लेकिन चुनाव में धांधली होने को बात सामने आ रही थी। जिसके बाद से सेना द्वारा जनवरी में देश में तख़्तापलट होने की आशंका जताई जा रही थी।
म्यंमार में सेना को टेटमदॉ के नाम से जाना जाता है। सेना ने चुनाव में धोखाधड़ी का आरोप लगाया था। हालांकि वह इसके सबूत देने में नाकाम रही थी। देश के स्टेट यूनियन इलेक्शन कमिशन ने जनवरी में सेना के आरोपों को खारिज कर दिया था।
चुनाव में आंग सान सू की की हुई थी बड़ी जीत
पिछले साल 2020 के चुनाव के बाद म्यामांर के सांसद राजधानी नैपिटॉ में संसद के पहले सत्र के लिए सोमवार, 1 फरवरी को इकट्ठा होने वाले थे। सू ची की पार्टी ने संसद के निचले और ऊपरी सदन की कुल 476 सीटों में से 396 पर जीत दर्ज की थी। जो बहुमत के आंकड़े 322 से कहीं ज़्यादा थी। जानकारी के अनुसार आंग साम सू ची की 75 देशों में सबसे ज़्यादा प्रभावी नेता रही हैं। साथ ही देश में सैन्य शासन के खिलाफ सालों तक चले अहिंसक संघर्ष के बाद वह म्यांमार देश की नेता बनीं थी।
संसद में सेना के पास है 25 प्रतिशत सीटें
साल 2008 में सेना द्वारा तैयार किए गए संविधान के तहत कुल सीटों में से 25 प्रतिशत सीटें सेना को दी गयी हैं। जो संवैधानिक बदलावों को रोकने के लिए काफी हैं।
विश्वभर में हुई तख़्तापलट की आलोचना
विश्व भर की सरकारों एवं अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने म्यांमार में हुई तख्तापलट की निंदा की है और कहा कि म्यंमार में सीमित लोकतांत्रिक सुधारों को इससे झटका लगा है। ह्यूमन राइट्स वॉच की कानूनी सलाहकार लिंडा लखधीर ने कहा, लोकतंत्र के रूप में वर्तमान म्यामांर के लिए यह काफी बड़ा झटका है। मानवाधिकार संगठनों ने आशंका जताई कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और सेना की आलोचना करने वालों पर कठोर कार्यवाही करना संभव है।
देश में सेना का शासन होना, लोकतंत्र के लिए एक बहुत बड़ी हार है। म्यंमार की स्थिति अभी-भी वैसी ही बनी हुई है। साथ ही सेना की तरफ़ से तख़्तापलट को खत्म करने या स्टेट कॉउंसलोर और अन्य नेताओं को छोड़ने को लेकर कोई भी बात नहीं की गयी है। साथ ही भारत भी पड़ोसी देश होने के नाते सेना के हर कदम पर निगरानी रखे हुए है। लेकिन देश मे आपातकाल रहेगा या कब तक खत्म होगा। इसके बारे में अभी कोई जानकारी सामने नहीं आई है।