वेनिस फिल्म समारोह प्रस्तुत 4,580 फिल्मों में से केवल 21 मुख्य श्रेणी के लिए चुनी गईं। रॉय की फिल्म ओरिज़ोंटी श्रेणी की 19 फिल्मों में से एक थी। अवॉर्ड मिलने के दौरान फ़िलिस्तीन के बारे में भी कही बातें।
भारतीय फिल्म निर्माता अनुपर्णा रॉय ने 82वें वेनिस अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार जीतकर इतिहास रच दिया। उन्होंने भारतीय सिनेमा ने एक और सुनहरा अध्याय लिख दिया है। अनुपर्णा रॉय ने वेनिस फिल्म फेस्टिवल के ऑरिज़ोंटी सेक्शन में ‘Songs of Forgotten Trees’ (सॉन्ग्स ऑफ फॉरगॉटन ट्रीज़) के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक (बेस्ट डायरेक्टर) का खिताब जीतकर इतिहास रच दिया। यह उपलब्धि और भी खास इसलिए है क्योंकि वे यह सम्मान पाने वाली पहली भारतीय महिला निर्देशक बनी हैं। सॉन्ग्स ऑफ फॉरगॉटन ट्रीज़ का हिंदी अर्थ है ‘भूले हुए पेड़ों के गीत।’ उनकी यह जीत न केवल भारतीय सिनेमा के लिए गर्व का क्षण है बल्कि दुनिया के मंच पर महिलाओं की नई पहचान गढ़ने वाली मिसाल भी है। इस पुरस्कार की घोषणा ओरिज़ोंटी जूरी की अध्यक्ष, फ्रांसीसी फिल्मकार जूलिया ड्यूकुर्नो ने समापन समारोह के दौरान की। भारतीय सिनेमा के लिए यह उपलब्धि महत्वपूर्ण मील का पत्थर मानी जा रही है।
निर्णायक मंडल को कुल 4,580 फिल्में प्राप्त हुईं जिनमें से केवल 21 फिल्में ही मुख्य प्रतियोगिता के लिए चुनी गईं। होराइज़न्स (ओरिज़ोन्टी) श्रेणी में प्रदर्शित 19 फिल्मों में भारतीय फिल्म निर्माता अनुपर्णा रॉय की फिल्म “सॉन्ग ऑफ़ फ़ॉरगॉटन ट्रीज़” भी शामिल थी।
अवॉर्ड (पुरस्कार) मिलने के बाद क्या बोलीं अनुपर्णा रॉय
अनुपर्णा रॉय ने अवॉर्ड मिलने के दौरान कहा कि यह पल “अवास्तविक” लगा और उन्होंने जूरी, कलाकारों, खासकर नाज़ शेख और सुमी बघेल को उनकी कहानी को जीवंत करने के लिए धन्यवाद दिया। फिल्म निर्माता ने अनुराग कश्यप का भी धन्यवाद किया, जिन्होंने शुरू से ही फिल्म का समर्थन किया और इसकी अपरंपरागत कहानी के बावजूद इसके महत्व पर विश्वास किया। “मैं अनुराग कश्यप, मेरे निर्माताओं, कलाकारों, क्रू और उन सभी का धन्यवाद करना चाहती हूँ जिन्होंने एक ऐसी फिल्म का साथ दिया जो आसान दायरे में नहीं आती थी। मेरे गृहनगर, मेरे देश में मौजूद हर एक व्यक्ति को मैं यह पुरस्कार समर्पित करना चाहती हूँ। मैं सेल्युलाइड फिल्म्स को धन्यवाद देना चाहती हूँ जिन्होंने फिल्म में विश्वास दिखाया। मैं अपने डीओपी, 80 वर्षीय गफ्फार देबजीत बनर्जी का भी धन्यवाद करना चाहती हूं आप सभी अद्भुत थे।”
उन्होंने फ़िलिस्तीन के बारे में भी बात कही और वहां के बच्चों की पीड़ा की ओर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा “हर बच्चा शांति, आज़ादी और मुक्ति का हक़दार है, और फ़िलिस्तीन भी इसका अपवाद नहीं है। भले ही इससे मेरे देश को तकलीफ़ हो, मुझे यही कहना है।”
प्रवासी महिलाओं की जिंदगी पर आधारित है फिल्म
अनुपर्णा रॉय की इस फिल्म से फिल्मकार अनुराग कश्यप भी जुड़े हुए हैं। खास बात ये भी रही कि इस वर्ष के ओरिज़ोंटी सेक्शन में शामिल होने वाली एकमात्र भारतीय फिल्म- ‘सॉन्ग्स ऑफ फॉरगॉटन ट्रीज़’ ही रही। मुंबई की प्रवासी महिलाओं की ज़िंदगी पर बनी इस फिल्म में महिलाओं के अकेलेपन, संघर्ष और रिश्तों की नाज़ुकता के बीच जीने की उनकी जिजीविषा (जीवन जीने की इच्छा) को दिखाया गया है।
कौन है अनुपर्णा रॉय
सिनेमा की तरफ अनुपर्णा का रुझान पहले से ही था। इसी जुनून को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने अभिनेता अनुपम खेर के ‘एक्टर प्रिपेयर्स इंस्टीट्यूट’ से एक्टिंग का डिप्लोमा किया और मुंबई में कई वर्कशॉप्स में भी हिस्सा लिया। इसके बाद उन्होंने बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर शॉर्ट फिल्म ‘रन टू द रिवर’ (2023) से अपने फिल्मी सफर की शुरुआत की। यह फिल्म इंटरनेशनल लेवल पर खूब सराही गई जिससे उनका आत्मविश्वास और बढ़ गया। यहीं से उन्होंने ठान लिया कि निर्देशन ही उनका रास्ता होगा। फिर उन्होंने अपनी पहली फीचर फिल्म ‘‘सॉन्ग्स ऑफ फॉरगॉटन ट्रीज़’ बनाई जिसकी मेकिंग से लेकर फंडिंग तक की पूरी जिम्मेदारी खुद संभाली। इसी फिल्म ने अब उन्हें ऐतिहासिक मुकाम तक पहुंचा दिया है।
अनुपर्णा रॉय का बैकग्राउंड
प्राप्त जानकारी के मुताबिक अनुपर्णा रॉय, नितुड़िया थाना क्षेत्र के नारायणपुर गांव की रहने वाली हैं। वह ब्रह्मानंद रॉय और मनीषा रॉय की बेटी हैं। अनुपर्णा ने अपनी शुरुआती पढ़ाई नितुड़िया थाना क्षेत्र के रानीपुर कोलियरी हाई स्कूल से की। इसके बाद नपाड़ा गांव स्थित अपने मामा के घर रहकर उच्च माध्यमिक शिक्षा पूरी की। पिता का तबादला होने पर परिवार पश्चिम वर्धमान जिले के कुलटी आ गया। वहीं से उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई की और अंग्रेज़ी में स्नातक की डिग्री हासिल की। इसके बाद अनुपर्णा मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई के लिए नई दिल्ली चली गईं। साल 2022 में वह मुंबई पहुँचीं और यहीं से फिल्म निर्देशन की शुरुआत की। यही सफर उन्हें इटली के वेनिस फिल्म फेस्टिवल तक ले गया। इस फिल्म का निर्माण भारत सरकार के राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (NFDC) ने किया है। अनुपर्णा ने ‘‘सॉन्ग्स ऑफ फॉरगॉटन ट्रीज़’ में मुंबई में रह रही दो प्रवासी महिलाओं की कहानी को पर्दे पर उतारा है। इस फिल्म ने भारतीय सिनेमा की परंपरा में महिला-केंद्रित कथाओं को एक नई दिशा दी है।
अनुपर्णा रॉय की यह उपलब्धि सिर्फ़ एक व्यक्तिगत जीत नहीं बल्कि पूरे भारतीय समाज के लिए गर्व का क्षण है। एक ओर आज भी हमारे देश में कई महिलाएं जाति-भेद, छुआछूत और रूढ़िवादी सोच की जंजीरों में बंधी हुई हैं तो दूसरी ओर अनुपर्णा जैसी महिलाएं इन बंधनों को तोड़कर दुनिया के मंच पर इतिहास लिख रही हैं और उन्हीं प्रवासी महिलाओं की ज़िंदगी की सच्चाई और संघर्ष को समाज और देश के सामने ला रही हैं। इससे यह साबित होता है कि अगर अवसर और हिम्मत मिले तो भारतीय महिलाएं किसी भी क्षेत्र में वैश्विक पहचान बना सकती हैं। अनुपर्णा की कहानी आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा है कि सपनों को सच करने के लिए साहस, मेहनत और विश्वास ही सबसे बड़ा हथियार है।
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