उत्तर प्रदेश सरकार गोवंश की सुरक्षा को लेकर बड़े-बड़े दावे करती है इतना ही नहीं उन गोवंश को ‘माता’ भी कहा जाता है। इन गौवंश के खान-पान रखाव के लिए हर साल करोड़ों रुपए भी सरकार खर्च करती है। इतना ही नहीं ठंडी में गोवंश को ठंड से बचाने के लिए खास इंतजाम भी कराए जाते हैं इसके बावजूद भी इस कड़ाके की ठंड में गौशालाओं में असुविधा नज़र आ रही हैं और बेज़ुबान गोवंश ठंड से तड़प रहे हैं। ऐसी स्थिति में कई कमजोर गोवंश तो मौत का भी शिकार हो रहे हैं।
किसान यूनियन के नरैनी तहसील अध्यक्ष दिनेश पटेल ने खबर लहरिया को बताया कि गौशालाओं में गौवंश की सुरक्षा के नाम पर खिलवाड़ होता है। इसे भक्ति कहें या गोवंश के साथ ज़्यादती। पहले यही गोवंश बिक जाते थे। अन्ना जानवर नहीं घूमते थे। सीमित होते थे तो लोग अपने घरों में बांधते थे जिससे किसानों की फसलें भी सुरक्षित रहती थी और जो गोवंश आज सड़कों पर हैं या गौशालाओं में ठंड से हो या भूख से मौत के शिकार हो रहे हैं, वह भी नहीं होते थे पर आज की स्थिति ऐसी है कि गोवंश जिसको गौ माता कहते हैं वह मारी-मारी फिर रही हैं। उन्हें रखने के लिए किसी के घरों में अब जगह ही नहीं है और सरकार जो गौशाला बनवाए हुए हैं और उनके खान-पान रख-रखाव के लिए बजट दे रही है, वह सिर्फ गौशालाओं और रख-रखाव के जिम्मेदार लोगों के लिए उनकी कमाई के ज़रिये से ज़्यादा और कुछ नहीं दिखाई देता। अभी हाल ही में हफ्ते भर पहले रिसौरा गांव में लगभग पांच गौवंश की मौत हुई है।
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रिसौरा गांव के 75 वर्षीय बुजुर्ग ने अपना नाम और फोटो ना देते हुए बताया कि लगभग 2 महीने हो गए गौशाला बने, इसमें लगभग 200 गौवंश हैं और सिर्फ एक टप्परा बना हुआ है। उसमें पन्नी अभी लगाई गयी है। इस तरह की कड़ाके की ठंड में एक टप्परा में जब एक साथ इतने गौवंश रहेंगे तो एक-दूसरे के झगड़े में चोटिल हो जाते हैं और मौत भी हो जाती है। कई बार यहां पर कई जानवर मर चुके हैं। अभी 1 हफ्ते पहले तहसील के अधिकारी भी आए थे जब जानवरों के मरने के खबर मिली थी तब जाकर वहां पर पन्नी बिछाई गयी है और व्यवस्था की गई है नहीं तो पहले खाली टपरा ही बना हुआ था और तार लगाकर तालाब की जगह में गोवंश को घेरा हुआ है। इस तरह की कड़ाके की ठंड में जहां लोग रजाई के भीतर और पूरे दिन आग में बैठे रहते हैं वहां बेजुबान गोवंश खुले आसमान के नीचे घूम रहे हैं जबकि सुनने को मिला है कि इस गौशाला में ₹80000 खर्च हुआ है।
पिपरहरी गांव के किसान लल्लू सिंह कहते हैं कि उनके गांव में इसी साल बहुत भाग दौड़ और प्रयास के बाद गौशाला बना है पर ना तो गौवंश के लिए खाने को भूसा है न ही ठंड से बचने कि कोई व्यवस्था है। इस तरह कि हाड़ कंपाने वाली कड़ाके की ठंड में खुले आसमान के नीचे फिर रहे है और मौत का शिकार हो रहे हैं।
चित्रकूट धाम मंडल के अपर निदेशक, पशुपालन विभाग अधिकारी डॉ. रविन्द्र सिंह राठौर बताते हैं कि मंडल में अस्थाई गौशाला 1214 हैं, स्थाई गौशाला 53 हैं, पंजीकृत और अपंजीकृत गौशाला 16 हैं। इनमें 1 लाख 92 हजार 688 गौवंश हैं।
आगे कहा, सिर्फ भरण-पोषण का ही बजट मिलता है। पॉलिथीन, बांस का टट्टर आदि की व्यवस्थाएं नगर पालिका, नगर पंचायत और पंचायती राज विभाग को करनी होती है। सर्दी से बचाव के लिए गौशालाओं में कुछ कमियां थी उन्हें दूर किया गया है। बजट हर रोज का नहीं आता। मांग के हिसाब से भेजा जाता है। पिछले डिमांड में 5 करोड़ 70 लाख रुपए आया था बांदा जनपद का। इसी तरह हर ज़िले का अलग-अलग बजट था लेकिन पूरे मंडल का बताना मुश्किल है। हर रोज़ खान-पान के लिए लगभग ₹600000 खर्च होता है। सर्दी से बचाव के लिए खास व्यवस्था गोवंश को गुड़ और नमक खिलाने की है क्योंकि उससे गर्मी रहती है।
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