खबर लहरिया Blog अहमदाबाद: नहीं थम रहा बुलडोज़र कांड, बांग्लादेशी के नाम पर तोड़े गए 8,000 घर

अहमदाबाद: नहीं थम रहा बुलडोज़र कांड, बांग्लादेशी के नाम पर तोड़े गए 8,000 घर

गुजरात के अहमदाबाद की चंदोला झील में देश का सबसे बड़ा “बुलडोजर कांड” है। सालों से सूखी पड़ी तालाब में बसे मुसलमानों के 8,000 घर गिराए गए।

अहमदाबाद में तोड़ी गई झुग्गियाँ (फ़ोटो साभार सोशल मीडिया)

लेखन – रचना 

बुलडोज़र राज ख़त्म होने के बजाए लगातार बढ़ते जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के बुलडोज़र कार्यवाही पर रोक लगाने के लिए आदेश आने के बावजूद, गरीब और मेहनत करने वाले मज़दूरों के घरों या हिंदू मुस्लिम के नाम पर मस्जिदों पर बुलडोज़र चलाया जा रहा है। हाल ही में दिन मंगलवार 20 मई 2025 को गुजरात, अहमदाबाद में चंदोला तालाब के पास स्थित सियासत नगर में सुबह से शाम तक बुलडोज़र चलाया गया। जिसमें 8,000 झुग्गियों को तोड़ दिया गया जिसके बाद कई लोग और परिवार बेघर हो गए। कई मीडिया चैनलों और मीडिया संस्थानों के अनुसार, अब तक का सबसे बड़ा ‘बुलडोज़र अभियान’ बताया जा रहा है।

प्रशासन और कोर्ट ने क्या कहा – 

गुजरात सरकार का दावा है कि यहाँ लोग अवैध रूप से बसे हुए थे जो बांग्लादेशी हैं। वायर के ग्राउंड रिपोर्ट के अनुसार, जब ये बुलडोज़र घरों को तबाह कर रही थी तब उसी समय क़रीब 23 निवासियों ने बुलडोज़र कार्यवाही के विरोध में गुजरात हाईकोर्ट में याचिका दायर की। ताकि इस कार्यवाही पर रोक लगाया जा सके। कोर्ट ने तत्काल सुनवाई की लेकिन याचिका ख़ारिज कर दी गई। सरकार के मुताबिक़ 22 अप्रैल में हुए जम्मू कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमले के बाद कुछ भ्रामक जानकारी मिले थे जो देश के सुरक्षा से सम्बंधित है जिसके कारण यह कार्यवाही की जा रही है।याचिका दायर करने वाले निवासियों के वकील आनंद यागनिक ने ये दलील दी कि इस कार्यवाही में सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश का पालन नहीं किया गया है। अगर किसी को बांग्लादेशी नागरिक माना भी जाए तो उन्हें वापस जाने की प्रक्रिया क़ानून के मुताबिक होनी चाहिए। यह असंवैधानिक प्रक्रिया है कहना था वकील आनंद यागनिक का।

ग़रीबों के घर पर ही बुलडोज़र क्यों ?

सवाल ये है कि क्या बिना कोई प्रक्रिया इस तरह से बिना किसी नोटिस के घर तोड़ना सही है? जबकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि बिना कोई नोटिस के किसी का घर तोड़ना, बुलडोज़र कार्यवाही करना गलत है और ऐसा हुआ तो कार्यवाही की जाएगी। यह भी बड़ा सवाल है कि ये बुलडोज़र कार्यवाही सिर्फ़ गरीब जनता और मेहनतकश लोगों के घरों या झुग्गियों पर ही क्यों चलाया जाता है?  लोगों के पास आधार कार्ड, राशन कार्ड जैसे दस्तावेज होने के बाद भी उन्हें देश के नागरिक होने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। सियासत नगर में भी लोगों के पास तमाम दस्तावेज होने के बावजूद, कुछ लोग पिछले 50 साल से यहाँ रहा रहे हैं उसके बाद भी लोगों के घरों को तोड़ा गया। द वायर नामक मीडिया चैनल की रिपोर्ट के मुताबिक़ वकील आनंद यागनिक ने बताया कि पिछले कुछ दिनों में गुजरात पुलिस ने 1200 से 1500 लोगों को उठाया गया जिनमें से 90 प्रतिशत लोगों को छोड़ दिया गया क्यों कि वे भारतीय थे।

फ़िलहाल सैकड़ों परिवार बेघर हो गए हैं। वे अपने अपने सामान के साथ बाहर खुले में बैठे हुए हैं उन्हें यह तक भी नहीं बताया गया कि उन्हें कहाँ जाना है या आगे क्या होगा। सवाल तो यही है कि अगर राष्ट्रीय सुरक्षा ख़तरे में है तो 90 प्रतिशत लोगों को उठा कर भारतीय कह कर क्यों छोड़ दिया गया और अगर वे भारतीय नागरिक थे तो उन्हें पुनर्वास का अधिकार क्यों नहीं दिया गया। देश का संविधान कहता है कि किसी को भी घर से बेघर करने से पहले प्रक्रिया का पालन करना चाहिए क्योंकि ये सवाल सिर्फ़ सियासत नगर का नहीं बल्कि देश के उन सभी जगहों का जहाँ बुलडोज़र कार्यवाही लगातार की जा रही है।

 

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