किस्सा तौ सुनइहौ पै हंसेव न। शर्त है कि हंसिन के मारे सब लोटपोट होई जइहौ। करीब पंद्रह साल पहिले के बात आय। हमरे घर के आंगन के फर्स बनी रहै। चिकन चंदन फर्स देखके बहुतै नींक लागत रहै। मोर बाबू हमै खातिर छोट के खटोलवा बनावत रहैं। मैं और मोइसे छोटी तीन बहिनी देख के मनै-मन गुलकत रहन कि हमार बाबू हमैं खटोली बनावत हैं वा भी हमैं जइसेन छोट के।
खटोलवा के चारौ पेरूवा लगाय दिहिन अउर पाटी सिरवा भी। सुमेढ़ी से बीन भी दिहिन अउर अब बारी आई ओरचावन के। खटोलवा के एक कईती चौपरिया के डाट अउर दुसरे कईती एक गोड के डाट लगाईके ओरचावन बनावै लाग। अब खटोलवा चिकन फर्स मा सरक-सरक जाय। बाबू जो चालू करिन बरबराब कि बन्द न भें। थोई देर मा जोर-जोर से चिल्लाब शुरू कई दिहिन। हम सब जने या देख-देख के हंसी के मारे लोटपोट होई जात रहन पै आवाज न निकर जाएं के डर से मुंह दाब लेत रहन।
हमार हंसी के आवाज उनके तक पहुंचिन गै। अब लेव भइया, हमरे बाबू का पटकै देव खटोलवा का। वहिके पाटी बेरूवा मतलब अंगर-खंगर निकाल लिहेन। कतौ पाटी-पेरूवा पटकै तौ कतौ पूरा खटोलवा पटक देय। कहत रहैं कि यहिके बहुतै घमंड होइगा है। शांति से एक जगह बइठ जा अब। हम सब हंसाई के मारे लोटपोट रहन। हमार खटोलवा तौ नहीं बना पै खुल के हँसै का एक मौका जरूर मिल गा रहै। सबके आवाज बन्द होई गे रहै पै हंसाई के आगे ध्यान नहीं दीन। फेर एक आवाज आई कि किस्सा रहै बढ़ायगा।
या किस्सा मोर सहेली सुनाइस और कहिस या बनावटी न होय। वहिकर घर के कहानी आय। है न मजेदार बात।