खेत सिर्फ किसान का नहीं बल्कि उसके पूरे परिवार का भी होता है। घर के बच्चे, बूढ़े, महिलाएं, जवान सब खेत में एक साथ काम करते हैं। एक हाथ दूसरे हाथ की मदद करता है। खेत में सिर्फ खेती ही नहीं बल्कि कहानियां भी बुनी जाती हैं। कुछ वर्तमान की बातें, कुछ भविष्य की चिंता।
किसानी का सफ़र भोर होते ही सूरज की पहली किरण के साथ ही शुरू हो जाता है। पगडंडियों से रास्ते पर चलते कदम मिट्टी पर अपने पांव के छाप छोड़ते हुए आगे बढ़ते हैं। इन क़दमों का सफ़र बेहद लंबा है पर वो अकेले नहीं हैं।
हल-बैल से खेती करना हमेशा से किसानी की पारंपरिक क्रिया रही है। हल-बैल के ज़रिये खेत जोतना, हल से जुड़े लकड़ी के तख़्त पर बैठकर सवारी का मज़ा लेना और फिर मिट्टी में लबालब सन जाना, आह! सब बचपन की यादों में शुमार है।
खेतों में लहलाती फसलों को देखने का ख़्वाब कड़ी मेहनत और पसीने के बाद देखने को मिलता है। धूप हो, बारिश हो या फिर कोई भी मौसम, किसान अपने खेत को नहीं छोड़ता। वह अपने बच्चे की तरह खेत का पालन-पोषण करता है। ठीक जैसे माँ-बाप बच्चों के लिए करते हैं।
बदलते समय ने किसानों को आधुनिकता से वाकिफ़ कराया। अब खेतों की जुताई ट्रेक्टरों से होने लगी। इसमें शरीर की ताकत लगाने की ज़रुरत नहीं। बस इंजन चालू किया और उस दिशा में मोड़ दिया जहां जुताई करनी है।
जल बिना जीवन तो किसी का नहीं। अब वह चाहें मनुष्य हो या फिर पेड़-पौधे। जनरेटर और बोरिंग की वजह से किसान अपने खेतों को भरपूर पानी दे पाता है।
हर किसान के पास आधुनिक मशीनें नहीं होती तो वह अपनी फसलों को भरपूर पानी देने के लिए बारिश पर निर्भर रहता है। यह निर्भरता आज से नहीं सदियों से है। खेत में धान की रोपाई हो चुकी है पर खेत में पड़ी ये दरारें किसान के माथे की शिकन को दर्शाती है। उसे यह चिंता की अगर जल्द बारिश न हुई तो सारी फसल सूख जायेगी। फिर उनका भविष्य क्या होगा?
एक खेत को तैयार करने में दो हाथों से ज़्यादा हाथ और लगन लगती है। खेती एक कला है। अगर इसे बिना जाने-समझे किया तो सिर्फ निराशा हाथ लगेगी। अगर सीखकर जानकारी के साथ किया तो आगे आँखों को हरी-भरी लहलहाती फसलें देखने को मिलेगी।
जैसे की हमने पहले कहा था, खेत एक व्यक्ति का नहीं बल्कि पूरे परिवार का होता है। जब खेत में काम करते-करते शरीर को थकान महसूस होने लगती है तो बच्चे-महिलाएं खेतों के बीच निकले पतले रास्तों से गुज़रते हुए, अपने हाथों में भोजन और चाय लेकर खेत तक का सफ़र नापते हैं।
यह देखकर खेत में काम करते बुज़ुर्ग किसान के चेहरे खिल उठते हैं। कुछ प्यार भरी बातों का लेन-देन होता है और फिर किसान अपनी खेती में व्यस्त हो जाता है।
ये भी पढ़ें : पानी से प्यास तक
‘यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’