मतदान का प्रतिशत बढ़ाने को लेकर सभी जिलों के जिला निर्वाचन अधिकारी (डीएम) ने चलाया। किसी ने नाम दिया अबकी बार नब्बे पार, किसी ने कहा नब्बे प्लस अभियान। मैने खुद, झांसी ललितपुर, टीकमगढ़, झांसी, चित्रकूट, बांदा मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में रिपोर्टिंग की। इस अभियान को सफल बनाने में जो जुनून था वह मैने खुद देखा है।
बांदा जिले को नाम मिला नब्बे प्लस मतदान, बांदा बने देश की शान। सरकारी रिकार्ड के हिसाब से हमारे बुंदेलखंड में सन 1984 में 84 प्रतिशत मतदान हुआ था। इस रिकार्ड को तोडने की मुहीम बांदा जिले के डीएम हीरालाल ने चलाई। हम इस प्रयासरत अभियान की सराहना करते हैं। पर यह अभिआन भी अफवाह बन गया। इसके प्रचार प्रसार में जिस तरह से काम किया गया कि स्कूल के बच्चों, रिटायर कर्मचारियों, प्रधान सचिव, विभागीय अधिकारी, मीडिया, महिला अधिकारी, कर्मचारी बहुत लोगों को शामिल किया गया। सब तन मन धन से से लगे थे। नाच गाना, मतदाता रैलियां, छोटे बच्चो के द्वारा रैली मतलब पूरी ताकत झोकी गई। कोई कोई तो बहुत नाखुश और बोझ समझते रहे।
अब तक में पांच चरन की वोटिंग हो गई है। दो चरण (छठवां 12 मई और सातवां 19 मई) में अभी शेष है। हमारे बुंदेलखंड के बांदा, महोबा, चित्रकूट, हमीरपुर में इस अभियान को सफल बनाने में इतनी मेहनत के बाद सभी जिलों में वोटिंग 60-65 प्रतिशत ही रही।
बांदा 60.79%
चित्रकूट 60.10%
और महोबा 61.69%
प्रतिशत वोट पड़े।
ये बात सिर्फ हमारे बुंदेलखंड की ही नहीं रही। पूरे देश में यह अभियान चलाया गया। इस रेश में पहला स्थान पाने वालों को सम्मानित किया जाएगा। देखिए बांदा जिले के डीएम इसके हकदार बनते हैं या नहीं।
लोगों का कहना है जब लोगों के घर मतदान पर्ची नहीं पहुंची। लोगों के नाम वोटर लिस्ट में नहीं है तो लोग वोट कैसे डालेंगे और कैसे पूरा होगा नब्बे प्रतिशत अभियान। सब झूठी बाते हैं लोगों को गुमराह करने के लिए
बहुत सारे लोगों को परदेश से वापस बुलाया गया। बहुत कम लोग आए क्योकि उनको लगता है कि किस पर भरोसा करें वोट का सही इस्तेमाल हो पाएगा।
गावों से जिले में महिलाओं को बुलाया गया था मतदान के ऐक दिन पहले आईं पर उनके रहने खाने की व्यवस्था नहीं थी। हमें रिपोर्टिंग के दौरान ये भी पता चला कि प्रधानो ने वोटरों के ऊपर दबाव था वोट डालने को लेकर, वोटर को बुलाने के लिए और यह भी कहा गया कि उनको राशन नहीं दिया जाएगा। इस डर से बहुत वोटर आए और बहुत वोटर नहीं आ पाए जो कि इस मुहीम और वोट बैक को बढ़ाने में कामगार शाबित नहीं हुई।
इस मुहिम को चलाकर ज्यादा मतदान तो नहीं हो सका पर जो इस अभियान को सही मायने में सफल बनाने के लिए जुटा वह निराश ही हुआ। जो प्लान किया गया वह हुआ नहीं। लोग जिस जोश के साथ आए थे उनका जोश ठण्डा पड गया।
लोगों की बातों और हमारी रिपोर्टिंग से निकल कर आया कि 90 प्लस अभियान को सक्सेज बनाने के लिए जागरूकता फैलाने और मुहीम चलाकर मनमाना पैसा खर्च करने की जरूरत नहीं है। अच्छा पढ़ा लिखा और जागरूक इन्सान मतदान नहीं करता। असल में जरूरत है मुद्दों में काम करने की जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार देने की। इस पर राजनीतिक ढांचा और प्रशाशनिक तंत्र काम करता है। कारण यही है कि 90 प्रतिशत मतदान सफल नही साबित हुआ। ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि 1984 का रिकार्ड आज तक क्यों नहीं टूटा। जबकि आज हमारा देश साक्षर ही नहीं डिजिटल इण्डिया की रेश में है।