केन्या की राजधानी नैरोबी समेत कई शहरों में लोग महंगाई, भ्रष्टाचार और पुलिस की ज्यादती के खिलाफ सड़कों पर उतरे और इसी बीच पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच संघर्ष में अभी तक 31 लोगों की जानें जा चुकी है।
प्रदर्शनकारियों का सड़क पर उतरने का कारण
दरअसल केन्या एक देश है। केन्या में बीते दिनों 7 जुलाई 2025 ‘सबा-सबा’ (सबा-सबा का अर्थ होता है सात-सात) दिवस मनाया जाता है। 35 साल पहले इसी दिन देश में कई पार्टियों वाला लोकतंत्र (बहुदलीय) लाने के लिए एक बड़ा आंदोलन हुआ था। अब फिर लोग उसी दिन सड़कों पर उतर आए हैं। लेकिन इस बार उनकी नाराजगी पुलिस की हिंसा, भ्रष्टाचार और बढ़ती महंगाई को लेकर है। लोग देश के राष्ट्रपति विलियम रुटो से इस्तीफा देने की मांग कर रहे हैं।
इसी बीच 7 जुलाई को प्रदर्शनकारियों और पुलिस बल के बीच गंभीर हिंसक टकराव हुई। इसी प्रदर्शन के दौरान अब तक मरने वालों की संख्या 31 हो गई है जो इस साल के शुरू में प्रदर्शन शुरू होने के बाद से एक दिन में मरने वालों की संख्या सबसे अधिक है। यह जानकारी राज्य के तरफ से वित्तपोषित मानवधिकार आयोग ने दी है। मानवधिकार आयोग द्वारा यह भी जानकारी मिली कि 107 लोग घायल हुए और 500 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है। मरने वालों की संख्या में यह नहीं बताया गया कि इसमें कोई सुरक्षा बल भी शामिल है या नहीं। केन्या में कई सप्ताह से युवा और अन्य नागरिक पुलिस की बर्बरता और कथित खराब प्रशासन से तंग (परेशान) थे। कथित रूप से भ्रष्टाचार और बढ़ती महंगाई के विरोध में और इसी के साथ राष्ट्रपति विलियम रूटो के इस्तीफे के मांग को लेकर वे सड़कों पर उतर आए।
केन्या में विरोध प्रदर्शन के बीच हालात तनावपूर्ण
द हिंदू के अनुसार, राष्ट्रीय सामंजस्य और एकता आयोग ने नेताओं से जातीय तनाव न बढ़ाने की अपील की और पुलिस पर जरूरत से ज्यादा बल प्रयोग करने की आलोचना की। लेकिन गृह मंत्री किपचुम्बा मुरकोमेन ने पुलिस से कहा था कि जो भी व्यक्ति प्रदर्शन के दौरान थाने के पास आए उसे देखते ही गोली मारो।
दूसरी ओर राष्ट्रपति रुटो की नीतियों से लोगों का गुस्सा बढ़ा है। उन्होंने जनता से सरकारी कर्ज चुकाने के लिए ज्यादा टैक्स भरने को कहा था। कुछ लोग अराजकता का फायदा उठाकर लूटपाट करने लगे। मोबाइल दुकानदार नैन्सी गिचारू ने बताया कि उनकी दुकान पर हमला हुआ है जिसमें उन्होंने नकदी और फोन खो दिया है।
7 जुलाई का दिन केन्या के लिए है खास
सूत्रों के अनुसार, 7 जुलाई का दिन केन्या के लिए बहुत खास है। साल 1990 में इसी दिन देश में पहला बड़ा विरोध हुआ था जिसमें लोगों ने लोकतंत्र की मांग की थी। उस समय देश में केवल एक ही राजनीतिक पार्टी थी और लोग चाहते थे कि सभी पार्टियों को चुनाव लड़ने का मौका मिले। यह प्रदर्शन तत्कालीन राष्ट्रपति डेनियल अराप मोई के खिलाफ था जो मौजूदा राष्ट्रपति विलियम रुटो के राजनीतिक गुरु माने जाते हैं। लोगों की मांग 1992 में पूरी हुई जब देश में बहुदलीय चुनाव हुए।
लेकिन इस साल के विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत पिछले महीने उस समय हुई जब पुलिस हिरासत में एक ब्लॉगर (12 वर्षीय लड़की) की मौत हो गई। इसके बाद 17 जून 2025 को एक प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने एक व्यक्ति को करीब से गोली मार दी। इसके विरोध में 25 जून को देशभर में हज़ारों युवा सड़कों पर उतर आए।
पुलिस की कार्यवाही से और गुस्साई जनता
दरअसल पिछले महीने भी पुलिस की कार्यवाही को लेकर लोगों द्वारा काफी ग़ुस्सा देखने को मिला था। 17 जून 2025 को एक ब्लॉगर की हिरासत में मौत के बाद पूरे देश में प्रदर्शन शुरू हो गए। 25 जून 2025 को हुए विरोध प्रदर्शनों में कम से कम 16 लोग मारे गए और 400 से अधिक लोग घायल भी हुए थे। कुछ न्यूज़ के रिपोर्ट्स के अनुसार लोगों द्वारा यह आरोप है कि सरकार उनकी आवाज को दबाने की कोशिश कर रही है।
शहर के बाहर भी प्रदर्शन, पुलिस की लाठी थम नहीं रही
सूत्रों के अनुसार, राजधानी नैरोबी के बाहर किटेंगेला शहर में भी लोग सड़कों पर उतरे। वहां भी टायर जलाए गए और रास्ते बंद कर दिए गए। पुलिस ने आंसू गैस छोड़ी और प्रदर्शनकारियों पर लाठियां चलाईं। एक स्थानीय युवक ने कहा कि हम रोजी-रोटी कमाने शहर जा रहे हैं लेकिन सरकार हमें रोक रही है।
केन्या में चल रहे विरोध प्रदर्शन यह साफ दिखाता है कि जब सरकार जनता की आवाज नहीं सुनती तो लोग सड़कों पर उतरने को मजबूर हो जाते हैं। चाहे देश कोई भी हो आम लोगों को अपने हक और अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ता है। इतिहस में भी ऐसी कई युद्ध और क्रांति देखी गई है। कभी-कभी यह संघर्ष इतना मुश्किल हो जाता है कि लोगों को अपनी जान की क़ुर्बानी देनी पड़ जाती है। 7 जुलाई का दिन जो कभी लोकतंत्र की शुरुआत का प्रतीक था अब वो फिर से उसी संघर्ष का दिन बन गया है। यह घटनाएं सिर्फ केन्या के लिए नहीं बल्कि हर देश के लिए एक सबक हैं कि जब तक सरकारें लोगों की बात नहीं सुनेंगी तब तक आम जनता भी अपनी मांगो और अधिकार के लिए संघर्ष करते रहेंगे।
आख़िर में यही कहा जा सकता है कि जनता की आवाज को कभी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि जब लोग बोलते हैं तो वे सिर्फ शिकायत नहीं करते वे अपने जीवन अपने भविष्य और अपने अधिकारों की बात करते हैं और यह एक बड़ी चुनौती भी सरकार के लिए बन जाती है जो एक युद्ध या फिर क्रांति का रूप ले लेता है।
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