खबर लहरिया Blog 17 साल की ज्योति का रिक्शा चालक से घर की ज़िम्मेदारी उठाने का सफर

17 साल की ज्योति का रिक्शा चालक से घर की ज़िम्मेदारी उठाने का सफर

ज्योति बताती हैं, “जो रिक्शा है वह उनका खुद का खरीदा हुआ नहीं है। इतने पैसे नहीं है कि वह खरीद पाए। पास में ही एक व्यक्ति हैं जो रेंट (किराये) पर बैटरी रिक्शा लाते हैं, तो उन्होंने बताया कि तुम भी ला सकती हो। वहां पर मैं गई, उनसे मांगा तो हर दिन का 400 रुपए देना पड़ता है। 8 घंटे में लिए कई चक्कर लगाने पड़ते हैं तब जाकर के मैं पूरे दिन में 600-700 कमाती हूँ। कभी-कभी 1000 या 1500 रुपए भी मिल जाते हैं और फिर 400 रुपए रेंट देना पड़ता है जिससे कम पैसा बच पाता है।”

                                                                                                                                     ज्योति के घर के बाहर की तस्वीर ( फोटो साभार: सुमन/ खबर लहरिया)

रिपोर्ट – सुमन 

पटना जिले के स्टैंड रोड गली नंबर 4 के पीछे स्लम (झुग्गी) बस्ती की रहने वाली ज्योति एक रिक्शा चालक है जो बैटरी रिक्शा चलाती है जिसे ग्रामीण लोग हवा-हवाई भी कहते हैं। ऐसे तो जब भी कोई लड़की गाड़ी चलाती है तो उस पर समाज और घर दोनों ही सवाल करते हैं। महिलाओं को इस काबिल ही नहीं समझा जाता कि वो भी कोई वाहन चला सकती हैं। इस सोच को ज्योति जैसी लड़कियां चुनौती देती हैं और बाकि लड़कियों के लिए प्रेरणा बनकर उभरती हैं।

ज्योति की उम्र सिर्फ 17 साल है। उसके परिवार में दो छोटे भाई, जिनकी उम्र 10 और 7 साल है। उसकी एक छोटी बहन भी है जो 8 साल की है। जब ज्योति 14 साल की थी तब उनकी माँ की मृत्यु हो गई। वह अकेले ही अपने भाई-बहन का ख्याल रखती है। पिता की चाय की दुकान है पर वह साथ नहीं रहते हैं।

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रिक्शा चलाने की शुरुआत

ज्योति बताती हैं कि “मैं ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हूँ। मैंने सिर्फ आठवीं तक ही पढ़ाई की है। मैं एक गरीब परिवार से आती हूँ। ऐसे में अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए पैसे नहीं थे। कई तरह की दिक्कतें देखने को मिली, तब दिमाग में आया कि जैसे लड़के रिक्शा चलाते हैं तो मैं भी चला सकती हूँ। कई बार मैंने रिक्शे को थोड़ा-थोड़ा चलाने की कोशिश भी की। फिर मैं धीरे-धीरे चलाना शुरु कर दिया क्योंकि मेरे परिवार में मेरे भाई-बहन का पोषण करने की जिम्मेदारी मेरे ऊपर थी।”

किराये का बैटरी रिक्शा

वह बताती हैं कि “जो रिक्शा है वह खुद का खरीदा हुआ नहीं है। इतने पैसे नहीं है कि वह खरीद पाए। पास में ही एक व्यक्ति हैं जो रेंट (किराये) पर बैटरी रिक्शा लाते हैं, तो उन्होंने बताया कि तुम भी ला सकती हो। वहां पर मैं गई, उनसे मांगा तो हर दिन का 400 रुपए देना पड़ता है। 8 घंटे में लिए कई चक्कर लगाने पड़ते हैं तब जाकर के मैं पूरे दिन में 600-700 कमाती हूँ। कभी-कभी 1000 या 1500 रुपए भी मिल जाते हैं और फिर 400 रुपए रेंट देना पड़ता है जिससे कम पैसा बच पाता है।”

इतने पैसों में नहीं होता गुजारा

वह बताती हैं कि जिस दिन 1000 रुपए मिलता है, तो 400 रुपए किराए देकर 600 बचते हैं। बचे हुए रुपयों में घर का राशन आता है बाकी घर में काफी तरह की दिक्कतें होती हैं। इतने पैसों में अपने भाइयों को नहीं पढ़ा पाती हूं, वह लोग (भाई-बहन) घर पर ही रहते हैं। पहले मेरे भाई पढ़ाई करते थे लेकिन जब से मम्मी की मृत्यु हो गई है, मैं रिक्शा चलाने लगी हूं। इतना पैसा नहीं हो पाता है कि वह लोग स्कूल जा पाए।

समाज के तानों का असर भाई-बहन पर

ज्योति बताती हैं कि “भाई-बहन इस वजह से भी स्कूल नहीं जाते क्योंकि उनके पास न राशन कार्ड है और न ही बच्चों के आधार कार्ड बने हुए हैं। बिना आधार कार्ड के स्कूल में एडमिशन नहीं होता है। मैंने कोशिश की कि बच्चे स्कूल चले जाएं, पर वहां रह रहे लोगों के अंदर मेरे प्रति घृणा पैदा हो गई है जिसकी वजह से वह स्कूल नहीं जाना चाहते। वह (भाई-बहन) चाहते हैं कि वह खुद कोई काम करें और उनकी बहन यह काम ना करें।”

रिक्शा चलाने में आई चुनौतियों

उन्होंने बताया कि शुरुआत में जब उन्होंने रिक्शा चलाया तो काफी बुरा लग रहा था कि वह एक लड़की हो करके रिक्शा चला रही है। लोग उसके रिक्शे में बैठ जाते और उसे पैसे नहीं देते थे। पीछे बैठ करके गंदे-गंदे कमेंट करते थे। आसपास के लोग भी उसे ताना देते थे कि लड़की होकर रिक्शा चला रही है।

माही जोकि ज्योति के साथ ही खड़ी थी। बताती हैं कि, “यह लड़की अच्छी नहीं है इसका कोई समय नहीं है कि यह कब आती है और कब जाती है। जब इसका मन होता है तभी अपना रिक्शा उठा करके चली जाती है। जब मन होता है तो आ जाती है, इसने हमारे मोहल्ले का नाम बदनाम कर रखा है।”

समाज के तानों का दिया जवाब

ज्योति ने इस पर जवाब दिया कि, “जब आपके सामने महिला इस तरह की बातें कह रही हैं तो मुझे किस तरह की बातें सुनने को मिलेंगी, रोज ही मुझे यह सब सुनना पड़ता है। अब मुझे यह सब सुनने की आदत हो गई है। मैं किसी से नहीं डरती हूं, अब तो मैं इतनी निडर हूं कि मैं सुबह 9:00 से रात 10:00 बजे तक रिक्शा चलाती हूं। इस बीच अगर किसी भी लड़के ने मेरे साथ बदतमीजी की तो फिर मैं उसे छोड़ नहीं सकती बल्कि पीट भी सकती हूं, उससे लड़ भी सकती हूं। पुलिस का सहारा भी ले सकती हूं लेकिन ईश्वर की कृपा है जो आज तक कभी ऐसी जरूरत नहीं पड़ी। मैं डरती नहीं हूं डरना क्या है? मैं कुछ गलत काम थोड़ी कर रही हूं। रिक्शा चलाना कुछ गलत थोड़ी है, अपने परिवार का पेट पालना कुछ गलत थोड़ी है।”

ज्योति की भविष्य को लेकर इच्छा

वह सोचती हैं कि उसके पास भी एक छोटा-सा घर हो जिसमें वह अपने भाई बहनों को अच्छी सी अच्छी सुविधा दे पाए। खुद भी थोड़ा पढ़ ले ताकि उसे भी बाकी लड़कियों की तरह शिक्षा का ज्ञान हो। उसके भाई-बहन भी स्कूल जाएं लेकिन यह सिर्फ सोच है। आगे का तो उन्हें भी नहीं पता क्योंकि इससे इतना नहीं कमा पाती। वह जिस घर में रहती है। उस घर में बरसात के समय में पानी गिरना, गर्मी में धूप आना और आंधी में छत पर लगा टिन उड़ जाना आम बात है। फिर भी उनकी कोशिश जारी है ताकि वो एक दिन अपनी इच्छा को पूरा कर सके।

 

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