विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने हमारी जिन्दगी को कितना आसान बना दिया है? मोबाइल फोन और कम्प्यूटर के एक बटन से हम इतनी दूरी और इतने लोगों तक पहुंच सकते हैं। वाह रे तकनीकी! हमें जरा भी कष्ट नहीं और काम हो जाएं हजार इस तकनीकी ने हमें एक नया मीडिया यानी सोशल मीडिया दे दिया है। सोशल मीडिया के कई रुप ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम और वाट्सऐप आदि हैं। हम सब इनका प्रयोग कम और ज्यादा मात्रा में करते हैं। लेकिन सोशल मीडिया यानी समाज की क्रांति जो कभी समाज में समाज के हर वर्ग की आवाज़ बना था, वो आज अपने अन्दर कुछ विकृतियां लिए समाज में परेशानी पैदा कर रहा है।
इस लेख में हम सोशल मीडिया का सबसे तेज माध्यम वाट्सऐप की बात करेंगे। हम सभी इसका प्रयोग करते हैं और कई ग्रुप में चाहते और नहीं चाहते हुए सदस्य और एडमिन तक है। इस माध्यम में सिर्फ हंसी-मजाक ही नहीं हैं, बल्कि इसके द्वारा नफरत फैलाने के साथ फर्जी खबरें फैलाने का काम भी बड़ी होशियारी से किया जा रहा है। आपकी थोड़ी-सी लापरवाही और सहमति इस नफरत और फर्जी खबरों को आगे बढ़ाने के लिए काफी है।
अभी करवा चौथ का त्यौहार निकाला है। आपने भी तो कितने औरतों पर बने मजाक को आगे बढ़ाने का काम किया होगा। ये सिर्फ मजाक नहीं है , बल्कि लिंग हिंसा का एक हिस्सा है साथ ही किसी की भावनाओं का मजाक बनाने वाला अपराध भी। वाट्सऐप का प्रयोग लोग हिंसा भड़काने में कर रहे हैं, जिसके चलते ही किसी एक समुदाय को दूसरी समुदाय के धार्मिक भावनाओं से छेड़छाड़ करने का संदेश भेजा जाता हैं। पर अगर आप इसके पीछे की सच्चाई को जानने वाले इंसान हैं, तो इसतरह की खबरें सच्चाई से कोसों दूर पायेगे।
पिछले दिनों एक फोटो संदेश के रुप में वाट्सऐप में आई, जिसमें कुछ स्कूल की लड़कियां शराब की दुकान पर खड़ी थी। इस फोटो के नीचे संदेश कुछ इसतरह था, “ये हैं आज की लड़कियां, जो शराब की दुकान पर शराब खरीदती हैं। अब इन लड़कियां के साथ कुछ गलत नहीं होगा?” इस फोटो के पीछे की सच्चाई ये थी कि ये लड़कियां
शराब की दुकान के पास में साईकिल की दुकान में अपनी साईकिल सही करा रही थी।
ऐसे ही कुछ संदेश नीचे दिए हैं, देखिए कहीं आपने भी तो बिना सोचे-समझे इन्हें आगे तो नहीं बढ़ा दिया है।
“Chhapra के एक गाँव माशरख मे मुसलमानों ने मंदिर में तोर फोर कर दिया आप लोग अगर हिन्दू हो तो इस बीडीओ को इतना शेएर करो कि पूरा भारत मे यह वीडियो देख लेना चाहिए”
“ये हैं रोहिंग्या शरणार्थी के जो खाते हैं इंसान”
इस पूरे लेख को लिखने का मकसद नफरत और फर्जी संदेशों को सेंट करने से पहले उसके पीछे की सच्चाई को जांचना है। अगर आप ये करते हैं तो शायद हमारा मकसद पूरा हो जाएगा।