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हिंसा से समझौता क्यों?

hinsaऔरतों पर होने वाली हिंसा के खिलाफ सनतकदा और वनांगना संस्था ने मिलकर 21 से 23 सितंबर तक एक अभियान चलाया। मोहल्लों में जाकर नुक्कड़ नाटक के ज़रिए इस तरह की हिंसा और समझौते के बाद होने वाले नतीजों के प्रति जागरुक किया।सनतकदा की मीना सोनी ने बताया कि मायके में औरतों केा पराया धन कहा जाता है तो ससुराल में पराई जाई कहा जाता है। पुलिस के पास जाओ तो समझौता करा देती है। मायके में रह रही लड़कियों के लिए समाज का नज़रिया भी तानों भरा होता है। मीना ने बताया कि अभी उनके पास अस्सी केस हैं। हम अपनी तरफ से न्याय पाने के लिए कानूनी लड़ाई में उनके साथ शामिल होते हैं। मगर अक्सर मायके वाले पुलिस के साथ मिलकर समझौता कर लेते हैं।

लखनऊ। यहां कैम्पस रोड की रहने वाली कहकशां की हत्या उसके ससुराल वालों ने कर दी। उसकी शादी 14 फरवरी 2012 में हुई थी। लेकिन शादी के तुरंत बाद ही उस पर और दहेज लाने का दवाब बनाया जाने लगा। फिर एक साल बाद ही उसके बेटी पैदा हो गई। ससुराल वालों ने उसे बेटी समेत मायके पहुंचा दिया।
19 जुलाई 2014 को महिलाओं पर हो रही हिंसा के खिलाफ काम करने वाले यहां के एक गैर सरकारी संगठन सनतकदा-एक सामाजिक पहल से कहकशां और उसके मां-बाप ने संपर्क किया। सनतकदा के साथ मिलकर इस मामले की एफ.आई.आर. की गई। ससुराल वालों के पास जब पुलिस का नोटिस पहुंचा तो वे समझौता करने को राज़ी हो गए। कहकशां की मां ने बताया कि थाने से फोन आया। लड़की और मां-बाप को बुलाया गया। उधर से ससुराल वाले आए। इस समझौते को लड़की और लड़के को एक अलग कमरे में ले जाकर कराया गया। हमें बाहर ही रखा। समझौते के बाद लड़की अपने ससुराल चली गई। छह महीने तक तो सबकुछ ठीक चला लेकिन उसके बाद उसे दोबारा से परेशान करना शुरू कर दिया। उसका मोबाइल छीन लिया। लड़की ने हमें कई बार बताया कि मुझे यह लोग फिर परेशान कर रहे हैं। 9 सितंबर से पहले की रात मेरे पास लड़की का फोन आया कि मुझे ले जाओ। ये लोग मुझे मार डालेंगे। हमने सोचा कि कल जाकर ले आएंगे। लेकिन पहले ही लड़की को मार डाला। सनतकदा की कोआॅर्डिनेटर मीना सोनी ने बताया कि ज़्यादातर मामलों में पुलिस समझौता करा देती है। समझौता कराने के बाद दोबारा हिंसा होने और हत्या जैसे मामलों में पुलिस की जवाबदेही तय नहीं होती है।