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ट्रांसजेंडर मामले में कोर्ट का फैसला

(फोटो साभार - बीबीसी हिन्दी)

(फोटो साभार – बीबीसी हिन्दी)

22 सितंबर को दिल्ली हाई कोर्ट ने एक ट्रांसजेंडर मामले में बेहद सकारात्मक फैसला सुनाया। कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को उसे सुरक्षा देने और सुरक्षित उसे अमेरिका भेजने का आदेश दिया है। कोर्ट ने यू.पी. रेजिडेंट कमिश्नर और लड़की के पिता को एक नोटिस जारी किया है।
शिवी नाम का यह ट्रांसजेंडर व्यक्ति अमेरिका के कैलिफोर्निया शहर से उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में लाया गया था। दरअसल शिवी जन्म से एक लड़की है मगर अपनी पहचान के साथ बिल्कुल भी सहज नहीं है। वह खुद को लड़के यानी पुरुष के जेंडर के साथ ही सहज पाता है। मगर आगरा से अमेरिका में जा बसे उसके मां-बाप को जब यह पता लगा तो वे उसे भारत ले आए। इस मामले में शिवी की तरफ से अरुंधति काटजू और मेनका गोस्वामी ने याचिका दायर की थी। जिस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल ने कहा कि हम लैंगिक पहचान पर कैसे इतनी जल्दी कोई फैसला सुना सकते हैं? यह और कुछ नहीं कट्टरता है ‘जिसकी भारत में कोई जगह नहीं है। भारत एक सहनशील देश है।’ उन्होंने मां-बाप के खिलाफ भी कार्रवाई करने को कहा जिन्होंने हिंसा की और अपहरण का झूठा मामला भी दर्ज कराया।

शिवी की कहानी उसी की जुबानी

मैं जब तीन साल का था तब से अमेरिका में ही अपने परिवार के साथ रह रहा हूं। मैं न्यूरोबायलोजी का छात्र हूं। मैं अपनी जन्मजात पहचान से खुद को नहीं जोड़ पाता। मेरे भीतर एक लड़के के एहसास है। मैं अपनी इसी पहचान के साथ जीना चाहता हूं। यह पूरा मामला उस समय से ही शुरू हो गया था जब मैंने घर छोड़कर जून में अपने दोस्त के साथ रहना शुरू किया। दरअसल मैं अपने बाल कटवाना चाहता था। उनका मानना है कि लड़कियों को लंबे बाल और लड़कों को छोटे बाल रखने चाहिए। मेरे बाल कटवाने पर विवाद और बड़ा। मेरा फोन और मेरा कंप्यूटर जब्त कर लिया गया। उसी से मेरी मां को पता चला कि मेरी एक गर्लफ्रैंड है। मुझे कैद कर लिया गया। मैंने कई दिन खाना नहीं खाया। मैंने सोच लिया कि मैं घर छोड़ दूंगा। शायद इसी फैसले की वजह से वे मुझे भारत लेकर आए। मुझ पर शारीरिक और मानसिक दोनों ही तरह की हिंसा की गई।
मैं इस नवंबर को उन्नीस साल का हो जाऊंगा। मैं कोई भी फैसला लेने के लिए आजाद हूं। चार-पांच साल पहले ही मैं अपनी जेंडर की पहचान को समझ गया था। मां ने मुझे समझाने की कोशिश की। मुझे डराया कि तुम इस पहचान के साथ अपमान के सिवा कुछ नहीं पाओगे। मैं अपने दोस्त के घर रहने लगा। मेरी मां ने जुलाई में मुझे ईमेल किया कि मेरी दादी बहुत बीमार हैं। हमें आगरा जाना चाहिए। मेरे फोन, कंप्यूटर सबकुछ मां के कब्जे में थे। उन्होंने मुझ पर एक आदर्श लड़की की तरह रहने और व्यवहार करने का दबाव डाला। मेरी मां का मानना था कि भारत में मैं यह सीख पाऊंगा कि एक लड़की की तरह कैसे रहा जाता है। मैं मौका देखकर दिल्ली भाग आया और गैर सरकारी संगठन नजरिया और कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से मदद मांगी। अब मैं अमेरिका वापस लौटना चाहता हूं। मैं वहां एक स्काॅलरशिप भी लेने की कोशिश में था जिससे मैं न्यूरोबायलोजी की आगे की पढ़ाई कर सकूं।