नई दिल्ली। प्रशासनिक यानी आई.ए.एस., पी.सी.एस और आई.पी.एस. जैसी नौकरियों की तैयारी कर रहे छात्र-छात्राएं इन दिनों सरकार के खिलाफ नारेबाजी और प्रदर्शन कर रहे हैं। इसका कारण है प्रशासनिक नौकरियों की प्रवेश परीक्षा में हुआ बदलाव है।
दरअसल पहले यह परीक्षा दो दर्जे में होती थी। एक विषय जिसे छात्र छात्राएं अपनी योग्यता के अनुसार चुनते थे। दूसरी सामान्य ज्ञान परीक्षा। लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब पहले दर्जे की परीक्षा की जगह सिविल सर्विसेज एप्टीट्यूड टेस्ट (सीसैट) होगा। यह परीक्षा अंग्रेजी में देनी होगी। हिंदी भाषी छात्र छात्राओं का कहना है कि इसमें छात्र छात्राएं अंग्रेजी कंप्रीहेंशन यानी अंग्रेजी भाषा योग्यता वाले सवालों में फंसकर रह जाएंगे। इन सवालों का हिंदी अनुवाद भी बेहद खराब होता है। छात्र छात्राओं का तर्क है कि परीक्षा में अंग्रेजी भाषा के सावलों को क्यों डाला जा रहा है, और अगर ऐसा ही करना है तो फिर इसमें कुछ सवाल हिंदी भाषा से जुड़े भी डाले जाएं जिससे जितनी दिक्कत हिंदी के परीक्षार्थियों को आए उतनी ही अंग्रेजी के छात्र छात्राओं को भी आए। उत्तर प्रदेश और बिहार के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग बड़ी संख्या में इस परीक्षा की तैयारी करते हैं।
अभी नहीं थमा विवाद
संसद में भी इस मुद्दे को लेकर हंगामा हुआ। कांग्रेस, सपा समेत अन्य पार्टी के सदस्यों ने इस बदलाव को वापस लेने की मांग की। सदस्यों ने 24 अगस्त को होने वाली प्रशासनिक नौकरियों की परीक्षा को आगे बढ़ाने की मांग भी की थी। लेकिन दोनों मांगे नहीं मानी गई। परीक्षा में बदलाव करने वाली वर्मा कमेटी ने साफ कह दिया है कि मौजूदा परीक्षा का प्रारूप बहुत सोच-समझकर तैयार किया गया है। इस मुद्दे को बेवजह तूल दिया गया है। मगर शिक्षाशास्त्री पुष्पेश पंत कहते हैं कि सिर्फ हिंदी ही नहीं सबको अपनी मातृभाषा में परीक्षा देने का अधिकार होना चाहिए।
सड़कों पर उतरे प्रशासनिक परीक्षाएं देने वाले छात्र छात्राएं
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