चित्रकूट। ज़िले के कई प्राथमिक और जूनियर स्कूलों में खाना बनाने वाली रसोईयों को पिछले कई महीनों से मानदेय नहीं मिला है। महिला रसोईयों ने कहा है कि काम के हिसाब से यह मानदेय न के बराबर है। उसमें भी समय पर न मिलने की समस्या। मानदेय समय पर दिए जाने और इसे बढ़ाए जाने की मांग को लेकर 15 फरवरी 2014 को इन लोगों ने एक बैठक भी की थी।
ब्लाक मऊ, गांव गोइयाखुर्द, मजरा पतेरी। यहां के प्राथमिक स्कूलों में फूलकली, रामकन्या और राजपति तीन साल से खाना बना रही हैं। इन लोगों ने बताया कि खाना बनाते बनाते सुबह से दोपहर हो जाती है। कोई दूसरा काम करना चाहें तो नहीं कर सकते। आमदनी का ज़रिया केवल यही है। उस पर भी समय पर नहीं मिलता। काम चले तो कैसे?
ब्लाक रामनगर, कस्बा रामनगर। यहां जूनियर स्कूल में शिवकुमारी और ननकी खाना बनाती हैं। उनकी भी यही समस्या है। उनका कहना है कि एक साल हो गए अभी तक मानदेय नहीं दिया गया। इसके लिये हेडमास्टर कालीचरण से कई बार कहा है। वह कहतें है कि सरकार भेजेगी तभी मानदेय मिलेगा।
ब्लाक पहाड़ी, गांव चकजाफर। यहां के प्राथमिक स्कूल में उर्मिला और चंदा देवी ने बताया कि 2013 जुलाई अगस्त और सितम्बर का तीन हजार रुपए मानदेय मिल गया है। लेकिन पांच महीने का मानदेय अभी भी नहीं नहीं मिला। हमारी मांग है कि हर महीने मानदेय देने के साथ इसे बढ़ाया भी जाए। महंगाई में एक हजार रुपये में होता क्या है?
ब्लाक मानिकपुर, गांव सरहट का पुरवा का पटापुरवा और गांव रानीपुर। पटापुरवा के प्राथमिक स्कूल में गोबरी, प्रभादेवी और सिया ने भी बताया कि हमारा मानदेय सरकार इतना कम क्यों है। मनरेगा के हिसाब से भी हमारा मानदेय बहुत ही कम है।
जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी वी.के का कहना है कि रसोईयों को तीन महीने का रुपए दे दिया गया है। बाकी बजट आने के बाद दिया जायेगा। रही मानदेय बढ़ाने की बात तो इसके लिये सरकार ज़िम्मेदार है। वही मानदेय बढ़ायेगी तभी बढ़ सकता है।
स्कूलों की रसोईयों को समय से नहीं मिलता मानदेय
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