सरकार स्कूल तौ खोलवाय दिया थै लकिन वकै जिम्मेदारी केकै बाय कुछ पता नाय चलत। स्कूल मा बाउन्ड्री नाय न शौचालय न हैण्डपम्प बहुत सारी असुबिधा रहा थै। जबकि स्कूल बना थै तौ सारी सुबिधा कै बजट आवा थै। लकिन पता नाय कहां चली जा थै सारी सुबिधा। दसन साल स्कूल खुले होय जा थै तबौ नल नाय लाग रहत। लडि़कै दुपहरे खाना खाइके इधर-उधर भटका थे। कहौं स्कूल जर्जर तौ कहौं स्कूल मा पानी भरा रहा थै। लडि़कै वही मा सरक-सरक के गिरा थे। हर साल कै इहै दिक्कत रहा थै तौ वकै व्यवस्था प्रधान अउर प्रधानाध्यापक काहे नाय करते। सरकार यतना पैसा स्कूलन के ताई दिया थै तबौ स्कूलन मा असुबिधा रहा थै। चार-पांच महीना कै बनी बान्ड्ररी गिर जाय तौ यहमा केकै गल्ती बाय? अउर जब प्रधान या प्रधानाध्यापक से पता करै तौ अपने जिम्मेदारी से मुकर जा थिन कि यकै हमार जिम्मेदारी नाय न। स्कूल मा शौचालय बनि जा थै लकिन आधा अधूरा पानी कै व्यवस्थै नाय। लडि़कन का बाहर जाय का परा थै जेसे उनके पढाई मा दिक्कत अउर डर बना रहा थै। रोड के किनारे स्कूल रहा थै तौ मोटर गाड़ी से बहुत डर बना रहा थै सिर्फ स्कूल के असुबिधा के कारण?
स्कूलन कै जिम्मेदारी केकै
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