महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारन्टी योजना (मनरेगा) के तहत सरकार करोड़न रुपइया खर्च करत हे। जीसे गांव के आदमियन खा गांव में रह के ही रोजगार मिल सके, पे गांवन में मनरेगा की हकीकत कछू ओर ही देखे खा मिलत हे।
हम बात करत हें बुन्देलखण्ड के महोबा जिला की। जिते पेहले तो मनरेगा को काम मिलत नइयां, ओर अगर कोनऊ आदमियन खा कछू दिन काम मिलो भी हे तो ऊखे मजदूरी को रुपइयां नई मिलत आय। एसी बढ़त महंगाई में एक सौ छप्पन रुपइया का होत हे? एक केती सरकार मनरेगा योजना लागू करके कहत हे कि गांव को आदमी गांव में रेहे। ईखे लाने ऊखे एक साल में सौ दिन को रोजगार दओ जेहे। दूसर केती मजदूरी को रुपइया महीनन के बाद भी नई दओ जात हे।
ईखा ताजा उदहरण जैतपुर ब्लाक को अजनर गांव हे। जिते के पचीसन आदमियन ने मनरेगा के तहत खन्ती खोदे को काम करो हतो, पे रुपइया देय खे नाम पे प्रधान ओर जे.ई. के साथे सचिव ने भी जा कह के आपन पल्ला झाड़ दओ कि गांव के आदमियन के पास बुक की खाता संख्या गलत हती। ई समस्या जिले के ओर केऊ गांवन में भी हे।
अब सवाल जा उठत हे कि आदमियन खा आधा रुपइया ओई खाता से मिल गओ, तो बाकी रुपइया खे लाने खाता संख्या केसे गलत हो गई? आदमियन के खाता सच में गलत हो जात हें जा फिर ऊखेे साथे धोखा करो जात हे। जा बात बड़े अधिकारियन खा देखे खा चाही।
सौ दिन को रोजगार, ऊमे भी उधार
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