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सूखे के बीच दबंगई के चलते दलितों से दूर हुआ पानी…

DSC01849जला चित्रकूट। जिले में पानी का संकट हर जगह पैर पसारे बैठा है। लोग दूर-दूर से पानी भर कर ला रहें हैं। कभी दिन के 8 घंटे तो कभी पूरे-पूरे दिन पानी भरने में निकल जाता है।
सूखे के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए नगर-निगम ने पानी के टैंकर भेजने शुरू कर दिए हैं। लेकिन यहाँ भी जातिवादी समस्याएं देखने को मिल रही हैं। सवर्ण जाति के परिवार दबंगई दिखा कर पानी के टैंकरों को अपने घर के सामने ही रोक लेते हैं और दलित बस्ती के लोगों को इस पानी का मोल चुकाने को कहते हैं। ऐसी स्थिति में दलित परिवारों से पानी कोसों दूर है।

ब्लाक कर्वी, गांव डिलौरा, मजरा तेजी पुरवा। इस गांव में तक़रीबन 100 घर हैं जिनके लिए दो हैंडपंप उपलब्ध हैं। जिसमें से एक हैंडपंप खराब है और दूसरे को बहुत देर तक चलाने के बाद पानी आता है।
गांव निवासी रामशरण उर्फ होरलाल ने बताया कि लगभग सौ घरों की आबादी वाला यह पुरवा गांव डीएम ऑफिस के पास होने के बाद भी पानी जैसी मौलिक समस्या से परेशान है। हम नहीं तो हमारे जानवरों का ख्याल ही हमें पानी लाने के लिए मजबूर कर देता है। इस गांव के पीछे ही विकास भवन बनाया जा रहा है जहां दिन भर पानी बहाया जा रहा है।
इसी सम्बंध में प्रधान कल्पना के पति रमेश का कहना है कि पुरे ग्राम पंचायत में कुल दो सो हैंडपंप लगे हैं। जिनमें से 75 हैंडपंप खराब हैं। कोशिश की जा रही है कि सभी हैंडपंपों को जल्द ठीक करवा लिया जाये लेकिन अभी तक बजट नहीं आया है।
ब्लाक कर्वी, गांव भंभई। बांदा इलाहबाद मार्ग से होते हुए अंदर मुख्य गांव में जाने के लिए 4 किलोमीटर चल कर जाना पड़ता है। इस बीच सभी खेत सूखे, उजाड़ और झुलसे हुए दिखाई देते हैं।
बस्ती के बीच पुल बनाने का काम चल रहा है इसलिए नगर-निगम द्वारा भेजे जाने वाला टैंकर घूम कर सवर्णों के घर के सामने आ कर रुक जाता है। यहां कच्ची ज़मीन पर  टैंकर के पानी से छिड़काव किया जा रहा है। जब आधा टैंकर खाली हो गया तब उसे बस्ती के बीच भेजा गया। जल्द-बाजी में लोग भाग-भाग कर पानी भरते रहे और फैलाते रहे।
यह दलितों की बस्ती है और यहां 300 के करीब घर हैं जो पानी की इस जटिल समस्या से जूझ रहे हैं।
गांव की लक्ष्मी का कहना है कि हम दलितों की बस्ती में हैंडपंप नहीं हैं। कुएं सूख चुके हैं और सवर्ण लोग अपने घरों के पास के हैंडपंपों से पानी नहीं भरते देते हैं। यही नहीं, गांव के प्रधान चंद्रपाल भी हमारी समस्याओं को अनसुना करते हैं।
यह गांव टैंकर भेजे गये गांवों की सूची में शामिल है। जिसके बारे में नगर-निगम अधिकारी का यह कहना था कि हर टैंकर दिन में कई चक्कर लगा कर गांव को पानी पहुंचता है। जबकि असलियत में पानी अभी भी गांव वालों की पहुँच से दूर है।
ब्लाक रामनगर, गांव हन्ना विनैका। यह गांव सांसद भैरों प्रासद मिश्र द्वारा गोद लिया गया है फिर भी यहां पानी की विकट समस्या है। इस बस्ती में ब्राहमण जाति के लोगों का बसेरा है। लगभग 200 आबादी वाली इस बस्ती में एक भी हैंडपंप नहीं है। पानी भरने के लिए 2 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। वहीं, रामनगर ब्लाक के ए.डी.ओ. चंद्रभान गुप्ता कहते हैं कि ब्लाॅक में कुल एक हजार छप्पन हैण्डपंप हैं। जिनमें से 250 रिबोर कराने हैं जबकि 50 हैंडपंप खराब पड़े हैं।
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ब्लाक मऊ, गांव अहिरी, मजरा बालापुर। लगभग 500 लोगों की आबादी वाले इस गांव में मात्र एक हैंडपंप है जो सूखा पड़ा है। लोगों ने हैंडपंप ठीक कराने के लिए मऊ ब्लॉक में 26 अप्रैल को शिकायत भी दर्ज करायी थी। लेकिन अभी तक इसकी कोई सुनवाई नहीं हुई है। मऊ ए.डी.ओ. शिवाकांत का कहना है कि 2665 हैण्डपंप है। 46 रिबोर में हैं और 255 खराब हैं।

इन समस्याओं पर जल निगम अधिशाषी अभियंता जे.पी सिंह का कहना है कि सरकार सूखे से निपटने के लिए तेज़ी से कार्य कर रही है। जिले मे कुल 16,636 हैण्डपंप है। 336 हैंडपंप रिबोर में हैं। 500 और नये हैण्डपंप लगने हैं। यह नये हैण्डपंप का काम 15 अप्रैल से शुरू और 15 जून तक पूरा करना है। इस समय जिलें में 62 पानी के टैंकर अलग-अलग गांव में भेजे जा रहे हैं। यह टैंकर दिन में तीन से लेकर चार चक्कर तक लगाते है। एक टैंकर में 4500 लीटर पानी आता है। जिले के मानिकपुर ब्लॉक में पानी की सबसे खराब दुर्दशा है। क्योंकि यह पथरीला इलाका है और यहां पानी का स्तर ऊपरी हैंडपंप लगाने के लिए 60 से 84 फुट तक देखा जाता है और निम्न स्तर वाले हैंडपंपों के लिए 220 से 280 फुट तक देखा जाता है।
सौलर पंप भी शुरू किया जा रहा है। यह बिना बिजली के चलेगा जिससे गांव वालों को बिजली के भरोसे नहीं बैठना पड़ेगा। यह राष्ट्रीय ग्रामीण जिला पूर्ति कार्यक्रम के अंतर्गत प्रारम्भ की जा रही है। हालांकि इसका बजट अभी तक आया नहीं है।
एसडीएम के कहने पर 28 टैंकरों को गांवों में भेजा गया है। कुछ गांव वाले शादी-ब्याह के लिए टैंकर मंगाते हैं तो उसे डी.एम. के आदेश से ही भेजा जा सकता है।
पानी की समस्या पर डी.एम. मोनिका रानी का कहना है कि जिले में पानी की समस्या से निपटने के लिए किसानों के खेतों में ‘जल बचाओ योजना’ के तहत तालाब बनवाने का काम चल रहा है। साथ ही 47 अधिकारीयों की नियुक्ति की गयी है जो सूखाग्रस्त इलाकों का दौरा करगें और पानी की दिक्कतों को दूर करने के लिए अपने स्तर से हर सम्भव प्रयास करेंगे। हालाँकि इस बीच रिबोरिंग का काम शुरू कर दिया गया है और गांवों तक टैंकर भेजना शुरू कर दिया है।

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पानी का एक मात्र सहारा है हैंडपम्प!
जिला बांदा। सूखे की मार झेल रहे बांदा और आस-पास के जिलों में पानी का एक मात्र साधन यहां के हैंडपम्प हैं। जिले में हैंडपम्पों की संख्या 32,600 है। लेकिन फिर भी सूखे से उबरने के लिए यह हैंडपम्प, जलस्तर कम होने के कारण सूख चुके हैं। जलस्तर 100 फुट तक जा चूका है। कुछ बस्तियों में टैंकर जा रहा है तो कहीं लोग कई मीलों चल कर पानी ला रहे हैं। कुछ लोग सिर्फ पानी लाने के लिए साईकिल और बैलगाड़ी का प्रयोग करते हैं। इस बिगड़ती स्थिति को सम्भालने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने बांदा जिले में 560 नये हैंडपम्प बनाने की घोषणा की है।
ब्लाक नरैनी, गांव कटरा। पहाड़ों के निचले भाग में बसे यह गांव पथरीले और सबसे सूखाग्रस्त गांवों में से एक है। इस गांव में लगभग 4000 आबादी के बीच 56 हैंडपम्प हैं। जिनमें से 17 हैंडपम्पों ने पानी देना बंद कर दिया है। पानी के लिए जो टैंकर भेजे जाते हैं वो प्राथमिक विद्यालय में खड़ा कर लिया जाता है और वहीं से लोगों को पानी देता है। इस बीच लोग भाग-दौड़ कर पानी भरते हैं। कई बार माहौल हिंसात्मक भी हो जाता है। यहां की कमला बताती हैं कि गांव में अगर टैंकर नहीं आये तो हम पहाड़ों तक पानी लेने जाते हैं। लेकिन अब यहाँ पानी के चक्कर में लड़ाईयां होने लगी हैं।
तरहटी कालिंजर ग्राम पंचायत में 8000 परिवारों के बीच 130 हैंडपम्प हैं। जिनमें से 15 बंद हो चुके हैं। मुख्य बाजार के कतकी चबूतरा मोहल्ले में लगभग 300 घर के लोग टैंकर और दूर-दराज़ के हैंडपपों से पानी भरते है।
इस संबंध में जिला विकास अधिकारी (डी.डी.ओ) कृष्ण कुमार ने बताया कि जिले में पुराने हैंडपम्प 32006 हैं जिसमें से 813 रिबोर पर दिये गये हैं। जिनकी सूची जल निगम 16वीं शाखा को भेजी जा चुकी है। नए 560 हैंडपंप लगाने हैं। इस सूची में मानक नहीं दिए गये हैं कि किस तरह से और कहां यह हैंडपम्प लगाये जायेंगे। लेकिन यह जरुर बताया गया है कि जलस्तर और अधिक सूखाग्रस्त इलाकों में नए हैंडपम्प लगाये जाने हैं।
इन इलाकों की हालत बेहद ख़राब है लेकिन जिसकी सबसे ज्यादा मार महिलाओं पर पड़ रही है। महिलाएं दिन के 18 घंटे सिर्फ पानी भरने में लगा देती हैं। कई मामलों में तो पानी भरते में महिलाओं को शारीरिक रूप से कष्ट भी झेलना पड़ रहा है। प्रशासन और अधिकारीयों के किये गये वायदों पर काम होता है या नहीं यह तो अब आने वाला वक़्त ही बताएगा।
रिपोर्ट- प्रियंका सिंह