नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा अब समलैंगिक यानि महिला-महिला और पुरुष-पुरुष के बीच शारीरिक संबंधों के मामले पर दोबारा विचार की ज़रूरत नहीं है।
यह सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका के जवाब में कहा जिसमें सुप्रीम कोर्ट द्वारा 11 दिसंबर, 2013 को दिए गए फैसले पर दोबारा विचार करने की मांग की गई थी। फैसले में समलैंगिक संबंधों को गैरकानूनी ठहराया गया था। इसके खिलाफ एक याचिका दायर की गई थी। जिसमें सुप्रीम कोर्ट को अपने फैसले पर दोबारा विचार करने के लिए केंद्र सरकार, फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल और समलैंगिकों के लिए काम कर रही संस्था नाज़ फाउंडेशन ने एक पुर्नविचार याचिका डाली थी।े
सुप्रीम कोर्ट ने उस समय समलैंगिकों के बीच संबंध अपराध मानने वाली कानूनी धारा 377 को सही ठहराया था। जबकि दिल्ली हाई कोर्ट ने 3 जुलाई 2009 में दिए गए अपने फैसले में कहा था कि यह कानून मानवाधिकारों के खिलाफ है। धार्मिक संगठनों ने दिल्ली हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। तब फैसला धार्मिक संगठनों के पक्ष में आया था। लेकिन एक बार फिर समलैंगिकों का पक्ष रखते हुए सुप्रीम कोर्ट को अपने फैसले पर दोबारा विचार करने के लिए यह याचिका डाली गई थी।
फैसले का विरोध
नाज़ फाउंडेशन, क्रिया, व्वायसेस अगेंस्ट 377, निरंतर जैसे कई गैर सरकारी संगठनों ने दिल्ली के जंतर-मंतर में फैसले का विरोध किया। इन लोगों ने कहा कि वो चुप नहीं बैठेंगे। इसके आगे अब वो एक और याचिका डालेंगे। इस याचिका को क्यूरेटिव पेटिशन के नाम से डाला जाएगा। एक ऐसी याचिका जिसमें इस मामले पर फैसला देने वाले एक जज के साथ अन्य चार जजों की टीम बनाई जाएगी।