गुजरात के विभिन्न उद्योगों में काम करते हुए सिलिकोसिस (फेफड़ों की बीमारी) की जद में आए मध्य प्रदेश के मजदूरों के पक्ष में सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। इस फैसले में गुजरात सरकार को सिलिकोसिस बीमारी से मौत का शिकार बने मजदूरों के परिजनों को तीन-तीन लाख रुपये मुआवजा देने और मध्य प्रदेश सरकार को बीमारों के पुर्नवास के निर्देश दिए गए हैं।
सिलिकोसिस सांस लेते समय धूल जाने के कारण, फेफड़ों की बीमारी का एक रूप है जिसकी वजह से फेफड़ों में सूजन और जख्म हो जाते हैं। फेफड़ों में जमा हुई यह धूल धीरे-धीरे जमती जाती है और व्यक्ति मौत की ओर बढ़ता जाता है।
यही नहीं, यह बीमारी इतनी गंभीर है कि इसके इलाज के लिए अधिक पैसे ही आवश्यकता होती है। इस इलाज के लिए यह गरीब लोग अपने खेत, पशु और सम्पति बेच देते हैं। इस तरफ से इन बीमार लोगों पर दोहरी मार पड़ रही है।
अलीराजपुर, धार और झाबुआ के 105 गांवों में काम कर रहे एक स्थानीय संगठन द्वारा किए गए हाल के एक सर्वेक्षण (2015-2016) में 1,721 सिलिकोसिस रोगियों की पहचान की गयी, जिनमें अब तक 589 श्रमिकों की मौत का खुलासा हुआ है।
आंकड़ों से पता चलता है कि शायद ही 10 प्रतिशत रोगियों को राज्य पेंशन मिलती हो या उन्हें आवास योजना के तहत 6 प्रतिशत धन भी प्राप्त हुआ हो!
इससे भी अधिक चौंकाने वाला तथ्य यह है कि पिछले पांच वर्षों में शायद ही 7 प्रतिशत प्रभावित परिवारों में से किसी ने भी 2011 की मनरेगा योजना के अंतर्गत काम किया हो!
सिलिकोसिस पीड़ितों के लिए न्याय का महत्व
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