6 अप्रैल, 2018 को वित्त राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ला ने लोकसभा के निचले सदन में एक सवाल के जवाब में कहा, 31 मार्च, 2015 को भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पब्लिक सेक्टर बैंक) के न चुकाने वाले( डिफ़ॉलटर)ऋण 2.67 लाख करोड़ रुपये (39.99 अरब डॉलर) से 1.5 गुना बढ़कर 6.8 9 लाख करोड़ रुपये (103.21 अरब डॉलर) हो गए थे, ये वो राशी है जो भारत के आधे हिस्सों को बिजली दे सकती थी।
मंत्री द्वारा बताये आंकड़ों के अनुसार, 21 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में से 11 में गैर–निष्पादित संपत्तियां (एनपीए यानी जो राशी डूबी हुई मानी जाती है) कुल संपत्ति का 15% से अधिक थीं।
पंजाब नेशनल बैंक में 11,000 करोड़ रुपये के धोखाधड़ी के सामने आने के बाद, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 11 अप्रैल, 2018 को एक रिपोर्ट के तहत सभी 11 बैंकों को अपनी निगाह में रखा है। इसमें पांच और पब्लिक सेक्टर बैंक की रैंक में शामिल होने की उम्मीद है।
वहीँ इस बात की मांग की गई है कि इस साल फरवरी में धोखाधड़ी का पता चलने के बाद से पीएसबी का निजीकरण किया जा सकता है।
अन्य सुधारात्मक कार्रवाई के अलावा, भारतीय रिजर्व बैंक अपनी उधार गतिविधियों पर रोक लगाएगा।
मार्च 2016 तक “गैर प्राथमिकता वाले क्षेत्र” जिनमें मुख्य रूप से कॉर्पोरेट ऋण, कार ऋण, व्यक्तिगत वित्त, क्रेडिट कार्ड बकाया और गृह ऋण में अतिदेय ऋण में पीएसबी को भारतीय कंपनियों और व्यक्तियों को 4.1 लाख करोड़ रुपये (61.41 अरब रुपये) का भुगतान किया गया।
2016 के दशक में, गैर–प्राथमिकता वाले क्षेत्र में खराब ऋण 18,300 करोड़ रुपये के मूल्य से 22 गुना (2166%) से अधिक हो गया था। इसी अवधि के दौरान, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के डूबी हुई राशी का हिस्सा 44.2% से बढ़कर 76.7% हो गया। 2011 के बाद यह पांच साल में 12 गुना (1110%) बन गई।