25 अगस्त, 2013 को केंद्र सरकार द्वारा शुरू किए गए साक्षर भारत मिशन की परीक्षा हुई। परीक्षा का आयोजन राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान द्वारा किया गया था। पर परीक्षा और कार्यक्रम के बीच क्या संबंध है, इस सवाल का जवाब जिले के अधिकारियों से लेकर ग्राम पंचायत तक किसी के पास नहीं था। राष्ट्रीय स्तर के अधिकारी भी इस बारे में स्पष्ट जवाब नहीं दे पाए। 2009 में केंद्र सरकार ने नवसाक्षरों के लिये साक्षर करने के यहा कार्यक्रम शुरु किया था। इसमें देश के सात करोड़ लोगों को साक्षर करने का लक्ष्य है। अनुसूचित और अनुसूचित जन जाति समेत औरतों पर खास जोर दिया गया है। हालांकि इसे साल 2012 में ही चित्रकूट और ललितपुर में पूरा होना था। पर अब इसकी समय अवधि बढ़ाकर 2017 कर दी गई है।
जला ललितपुर। यहां की ग्राम पंचायत मदनपुरा में तो सवा ग्यारह बजे परीक्षा खत्म हो चुकी थी। कापियों में उत्तर भी लिखे हुए थे। लेकिन जब परीक्षा देने वाले उन्नीस लोगों से मुलाकात हुई तो उसमें अधिकतर लोग अपना नाम तक नहीं लिख पाए। ऐसा कैसे हुआ? तो इसका जवाब मिला वहीं के निवासी सहरिया आबादी के व्यक्ति पर्वत से। उन्होंने बताया हमें सोते से उठाक कर ले गए थे राजेश। राजेश मदनपुरा ग्राम पंचायत के प्रेरक हैं। केवल तीन औरतों ने परीक्षा दी थी, पर वो परीक्षा केंद्र नहीं पहुंची थी, कापी घर में भेजकर भरवाई गई थी।
नीमखेड़ा में ब्लैकबोर्ड पर सवालों के जवाब खुलेआम लिखे थे। जिले के डी.एम. ओ.पी वर्मा से जब पूछा गया कि परीक्षा चल रही, पर पढ़ाने के लिए सेंटर नहीं चले तो ‘‘उनका कहना था कि हमें खुद नहीं पता कि केंद्र की इस योजना का उद्देश्य क्या है?’’ जिला संयोजक इमरान ने बताया परीक्षाएं ठीक से हुई हैं। पर, मडावरा ब्लाक के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा ‘‘इतना भीतर पड़ता है ये ब्लाक जहां अधिकारियों की गाड़ियां जा नहीं सकती तो सब मनमानी करते हैं।’’
बेसिक शिक्षा अधिकारी विनोद मिश्रा ने बताया नवसाक्षरों को चिह्नित करने के लिए सर्वे चल रहा है। सर्वे के बाद सेंटर चलेंगे। लेकिन यह परीक्षा क्यों हो रही, इसका जवाब उनके पास भी नहीं था।
जिला चित्रकूट। जिले में साक्षर भारत मिशन के तहत होने वाली परीक्षा में नवसाक्षरों और निरक्षरों से ज्यादा पढ़े लिखे लोगों ने हिस्सा लिया। यहां के मानिकपुर ब्लाक की ग्राम पंचायत ऊंचाडीह के प्रेरक अनंत द्विवेदी के परिवार के छह लोगों ने इस परीक्षा को दिया। अनंत द्विवेदी के परिवार का कोई भी व्यक्ति नवसाक्षर या कम पढ़ा लिखा नहीं था। दूसरी तरफ इसी परीक्षा को देने राजकरन भी आए थे, जिन्हें अपना नाम भी लिखना नहीं आता था।
यहीं की ऐंचवारा ग्राम पंचायत के गजटा पुरवा के प्राथमिक विद्यालय में तो 12 बजे ही परीक्षा खत्म हो चुकी थी। जबकि नियम के अनुसार ये परीक्षा तीन घंटे होनी थी। यहां के डीएम से जब पूछा गया तो उन्होंने कहा हमें ज्यादा जानकारी नहीं है, इस बारे में। ये कहने पर की कार्यक्रम का अध्यक्ष तो डी एम ही है, उनका जवाब था, ‘‘अध्यक्ष तो मैं बहुत कुछ का हूं।’’ मानिकपुर के जिला संयोजक अपनी बासठ ग्राम पंचायतों में पंजीकरण फार्म और बुकलेट नहीं पहुंचा पाए। उन्होंने कारण बताया, ‘‘केवल पांच हजार रुपए मिलते हैं, इतने में स भी ग्राम पंचायतों में पहुंचना मुश्किल है। वैसे भी मानिकपुर डकैतों का इलाका है। जान का जोखिम भी बना रहता है।’’
साक्षर भारत की असलियत
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