सूखा से निपटे के लाने राज्य सरकार ओर कोर्ट के आदेश से मई ओर जून के महीना में भी स्कूल में खाना बनवाये को नियम लागू करो हतो। पे बिल्कुल नाकाम साबित नजर आउत हे। मास्टर स्कूल नई जात हे। रसोइयन खा चाबी देके स्कूल खोले खा कहत हे।
सरकारी कर्मचारियन खा नियम तो बन के कागज में चढ़ गओ हे, पे ऊखे पलट के कोन देखत हे। आखिर जा जिम्मेंदारी कीखे हे।
जभे की कोर्ट को आदेश आओ हे की बच्चन खा हफ्ता में तीन दइयां खने मे दूध ओर अण्डा दओ जाये। दूध ओर अण्डा की बात तो दूर हे स्कूलन में खीर, तहरी ओर रोटी नई बनवाई जात हे। ताजा उदाहरण पनवाड़ी ब्लाक के महुआ इटौरा गांव में 12 जून खा जूनियर स्कूल में खाना नई बनो हतो, रसोइयन के अनुसार डेढ़ महीना निकरे के बाद भी एकऊ दिन मिड्डे मील नई बनो हे। हेड मास्टर छुट्टी में हतो फिर भी हेडमास्टर खाना बनवाये की बात कहत हतो।
आखिर जिले में बेठे जिम्मेदार अधिकारी एसी बातन पर काय नई ध्यान देत हे। अगर एसी सूचना जा जानकारी मिलत हे तो तुरतई जांच करे खा चाही। कोनऊ के हक के साथे जिम्मदारी अधिकार केसे खिलवाड़ कर सकत हे। अगर बच्चन को हक नई मिलत हे तो सरकार एसी योजना काय लागू कर बजट बरबाद करत हे। ई समस्या खा दूर करे के लाने सरकार खा अपने कर्मचारियन पर ठोस जिम्मेदारी देय, लापरवाही करे पे कड़ी कारवाही करे। तभई जा समस्या दूर हो सकत हे।