शिक्षा के अधिकार कानुन के तहत हर एक किलोमीटर के दुरी पर एगों प्रथमिक विद्यालय खोले के हई। लेकिन एकर व्यवस्था केतना लचरल हई। ई त देख के हि पता चल रहल हई। कहि समय से शिक्षक न पहुँचई छथिन, त कहि शिक्षके न छथिन।
समस्या इहे न खत्म हो रहल हई। अभी केतना नवसृजित विद्यालय के प्राथमिक विद्यालय से जोड़ देल गेलई ह। जेई कारण ऐई धुप में बच्चा के लगभग दु किलोमीटर पैदल चले के होई छई। बच्चा के चेहरा ओई समय अईसन लगई छई जे शिक्षा के अधिकार कानुन के मजाक उड़ा रहल हई।
शिक्षक विद्यालय में जब मर्जी तब आ जाई छथिन अउर जब मर्जी चल जाई छथिन। एहि से बच्चा के भविष्य त बिगरई छई। एहि से लोग सरकारी विद्यालय में बच्चा न पढ़बई छथिन। शिक्षा के मंदिर के उ हाल रहतई। त बच्चा केना आगे बरतई। सरकार के सुविधा के दुरपयोग हो रहल हई। जहां बच्चा के भोजन कपड़ा अउर छात्रवृति से प्रलोभन देल जा रहल हइ उहें कारण पढ़ाई के स्तर एतना गीर गेल हई। ऐहि व्यवस्था से बच्चा के भविष्य बनतई? शिक्षक अपना कर्तव्य के पालन न करई छथिन।