शुरुआत को एक साल से ज़्यादा हो गया है मगर फिर भी केन्द्र सरकार का ग्रामीण विकास कार्यक्रम कोई प्रगति नहीं कर पाया है। यहां तक कि भारतीय जनता पार्टी के अपने सांसद इसपर ज़्यादा विश्वास नहीं रखते हैं। सांसद आदर्श ग्राम योजना का दूसरा चरण अब तक शुरू हो जाना चाहिए था। मगर ज़्यादातर सांसद पहले चरण में बुरे अनुभव के बाद इससे पल्ला झाड़ देना चाहते हैं।
उत्तर प्रदेश से एक भाजपा के सांसद ने कहा कि प्रधानमंत्री का ये कार्यक्रम एक ‘खाली बर्तन’ जैसा है। यही विचार दूसरे सत्तारूढ़ सांसदों और कई विपक्ष के सांसदों द्वारा भी व्यक्त किए गए।
अक्टूबर 2014 में हरेक सांसद को एक गांव गोद लेना था। 2016 तक उसे एक आदर्श गांव में बदल देना था। लोकसभा सदस्य अपने निर्वाचन क्षेत्र से गांव चुन सकते थे और राज्यसभा सदस्य जिस राज्य का प्रतिनिधित्व करते हैं वहां से एक गांव चुन सकते थे।
उस समय केंद्रीय सरकार द्वारा जो प्रचार किया गया उसके कारण सांसदों में से ज़्यादातर ने लोकसभा के 543 सदस्यों में से 499 ने और राज्यसभा के 245 में से 198 सदस्यों ने जल्दी ही केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय को जिसे इस कार्यक्रम को लागू करना था अपना-अपना चयनित गांव बता दिया।
दूसरे चरण में 2015 के अंत तक सब सांसदों को दूसरे गांव का नाम बताना था। ताकि 2016 के शुरू में इन्हें गोद लिए जाने के लिए ज़रूरी तैयारियां की जा सकें। हालांकि अब मोदी सरकार को अपने कैंप में भी ऐसे सांसद ढूंढने में मुश्किल हो रही है।
इस महीने के शुरू में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री चैधरी बीरेन्दर सिंह ने खुद हर मंत्री को लिखा कि वे जनवरी के अंत तक दूसरे गांव का नाम बता दें। हालांकि अंतिम तारीख आने ही वाली है उनके पास ज़्यादा जवाब नहीं आए हैं। अब तक लोक सभा के 543 सदस्यों में से 28 और राज्य सभा के 245 सदस्यों में से सिर्फ सात सदस्यों ने ही जवाब दिया है।
संसद ग्राम योजना बना ‘खाली बर्तन’
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