नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुखपत्र पांचजन्य में दिल्ली की जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी (जेएनयू) को राष्ट्रविरोधी ताकतों का अड्डा बताया है। इस अखबार की कवर स्टोरी के अनुसार जेएनयू में समय-समय पर राष्ट्रविरोधी गतिविधियां आयोजित की जाती हैं। हालांकि सवाल यह उठ रहा है कि राष्ट्रविरोध किसे कहा जाए। कहीं ऐसा तो नहीं केंद्र सरकार का विरोध और नरेंद्र मोदी के विरोध को राष्ट्रविरोध की परिभाषा में रखा गया है।
अखबार में लिखा है कि साल 2010 में जब छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के हाथों सत्तर से ज़्यादा जवान मारे गए थे तब यहां पर जश्न मनाया गया था।
लेख पर सोशल मीडिया में काफी प्रतिक्रिया हो रही है। सोशल मीडिया पर एक टिपप्णी है कि संघ की विचारधारा से जो सहमत नहीं होता उसे संघ राष्ट्रविरोधी कहता है। जबकि कुछ लोगों की टिप्पणी है कि संघ खुद ही नफरत की राजनीति करता है तो ऐसे में वह खुद ही राष्ट्रविरोधी है। कुछ ने यह भी लिखा कि जेएनयू जैसी देश की बेहतरीन यूनिवर्सिटी के लिए संघ का यह घटिया बयान भड़काऊ है। पर दूसरी तरफ कई लोग पांचजन्य की विचारधारा से सहमत भी हैं।
सोशल मीडिया पर एक टिप्पणी है कि सच हमेशा कड़वा होता है। और यह भी एक सच है। तो एक टिप्पणी है कि एक विद्रोही और असंतुष्ट संस्थान होने में कोई दिक्कत नहीं है मगर सरकार के पैसों पर आप ऐसा नहीं कर सकते हैं।