इस लेख को खबर लहरिया की पत्रकार ने लिखा है।वो 8 फरवरी की रात थी। दिल्ली में दूसरी जगहों पर सर्दी धीरे-धीरे कम हो रही थी। मगर यहां, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में सर्दी और भी ज़्यादा बढ़ गई थी। छात्र, एक्टिविस्ट, और पत्रकार गर्म चाय की प्यालियां लिए यहां के खुले नाट्यग्रह में आ गए। हम सब यहां शीतल साठे का अभिनय देखने आए थे।
आप पूछेंगे, कि शीतल साठे कौन हैं? शीतल साठे कबीर कला मंच (देश की सबसे क्रांतिकारी दलित सांस्कृतिक मंडली) की अथक आवाज़ हैं। इस मंडली को 2002 में बनाया गया था, और यही एक सदस्य हैं जो अभी तक इसमें मौजूद हैं। बाकी में से कई, उनके पति सचिन माली को मिला कर, नक्सलवादी होने के झूठे इलज़ामों में जेल में हैं। कई गिरफ्तारी से बचने के लिए छिपे हुए हैं। फिर भी, कोई शीतल साठे को रोक नहीं पाया है। जहां राज्य शीतल साठे की आवाज़ को दबाने के नए तरीके खोज रहा है वहीं वे अपनी नई मंडली के साथ आगे बढ़ती जा रही हैं। उनके हाथ में ढोल है, मंुह पर दलित उत्पीड़न, अम्बेडकर क्रांति और सावित्री फुले के गीत।
उस दिन एक घंटे के इंतज़ार के बाद वे आईं, सलवार कुर्ता पहने, उनका काला दुपट्टा उनकी कमर पे बांधे। उन्होंने अपने चारों ओर जमा हुई भीड़ से कहा, ‘‘मुझे पता है यहां सर्दी है तो आप ये कल्पना करो कि यहां मेरे सामने आग जली है। सब मिलकर जय भीम गीत गाएं ये जानते हुए कि हम सबमें एक आग जल रही है।’’
अगले दो घंटे तक शीतल साठे ने गीत गाए, रैप किया, और हंसी-मज़ाक किए। उनके गाने हज़ारों सुइयों की तरह चुभ रहे थे। वे समाज की ब्राह्मणवादी ताकतों को छितरा देने के लिए हवाओं में गूंज रहे थे। उन्होंने हमारे नए पूंजीवाद और बाबाओं पर अंधविश्वास की हंसी उड़ाई। उसके लिए हमें ललकारा और डांटा। वे मनुस्मृति के प्रति हमारी वफादार भक्ति से भी निराश नज़र आईं। उन्होंने रोहित वेमुला के लिए गीत गाए, जिसने हमारे समाज के कारण आत्महत्या कर ली।
आप पूछेंगे कि शीतल साठे के लिए गाना इतना मुश्किल क्यों है? क्या उनका गीत ऐसा हथियार है जिसे हम समझ नहीं पा रहे हैं? क्या वे गाना बंद कर देंगे?
इसपर शीतल साठे कहती हैं, ‘‘कितने भी आएं द्रोणाचार्य, काल अभी नहीं डरेगा… नया एकलव्य अभी आ रहा है, दान अंगूठे का नहीं देगा।’’