साल 2015 में दुनिया भर में कुल 110 पत्रकार मारे गए। पत्रकार संगठन ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर’ (आरएसएफ) ने बताया है कि इनमें से कुछ तो युद्ध जैसे संकटग्रस्त इलाकों में जबकि कई शांतिपूर्ण देशों में मारे गए।
युद्ध से जूझ रहे इराक और सीरिया पत्रकारों के लिए भी खतरनाक ठिकाने रहे। इराक में 11 जबकि सीरिया में 10 जर्नलिस्ट मारे गए। इसके बाद फ्रांस का नंबर रहा जहां व्यंग्यात्मक पत्रिका शार्ली एब्दो के 8 पत्रकारों को जिहादी हमले में मार डाला गया।
पत्रकार संगठन बताता है कि इतनी बड़ी संख्या का कारण मुख्यतया पत्रकारों के विरुद्ध जानबूझ कर छेड़ी गई हिंसा और उन्हें बचा पाने में असमर्थता रही. इसके लिए संयुक्त राष्ट्र से कदम उठाने की अपील की गई है। खासतौर पर रिपोर्ट में गैर राज्य समूहों की बढ़ती भूमिका और आईएस जैसे जिहादी समूहों के पत्रकारों पर ढाए जुल्मों का भी जि़क्र है।
साल 2014 में करीब दो तिहाई पत्रकारों की हत्या के पीछे युद्ध का हाथ था जबकि 2015 में इसका ठीक उल्टा यानी दो तिहाई मौतें शांति वाले देशों में दर्ज हुई हैं।
आरएसएफ की रिपोर्ट में भारत का विशेष जि़क्र है। यहां 2015 में 9 पत्रकारों की हत्या हुई, जिनमें से कुछ संगठित अपराधिक गुटों और उनके राजनीतिक संबंधों पर रिपोर्टिंग कर रहे थे। वहीं इनमें से कुछ भारतीय पत्रकारों ने अवैध खनन के बारे में खबरें प्रकाशित की थीं। इसके अलावा 5 भारतीय पत्रकार अपनी ड्यूटी के दौरान मारे गए जबकि 4 की मौत का निश्चित कारण पता नहीं चल सका। भारत सरकार से पत्रकारों की सुरक्षा की एक राष्ट्रीय योजना बनाने के आग्रह के साथ आरएसएफ ने लिखा है कि यह मौतें मीडियाकर्मियों के लिए पूरे एशिया में भारत को सबसे खतरनाक ठिकाने के तौर पर दिखाती हैं, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से भी आगे।
शांत देशों में मारे गए सबसे ज़्यादा पत्रकार
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