देश में 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। अगस्त महीने में ही आजादी पर पाबंदी लगाने वाला एक फैसला खाप पंचायत ने सुनाया तो दूसरी तरफ तमिलनाडु में भारतीय पोशाक पर रोक लगाने वाली संस्थाओं के खिलाफ एक कानून लाया गया। तमिलनाडु का फैसला जहां व्यक्तिगत आजादी को मजबूत करता है, वहीं खाप पंचायत का फैसला व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमला है।
आजादी का उत्सव मनाने से करीब एक हफ्ता पहले उत्तर प्रदेश के एक गांव में खाप पंचायत ने एक फरमान जारी किया। इसमें लड़कियों को मोबइल न रखने और जींस न पहनने का आदेश दिया गया था। पंचायत का मानना है कि मोबाइल के जरिए लड़कियां बाहर के लड़कों के संपर्क में आती हैं। जींस जैसे कपड़े भड़काऊ होते हैं। पंचायत प्रमुख ने कहा यह दोनों ही औरतों और लड़कियों के साथ हो रहे बलात्कार और छेड़छाड़ की घटनाओं का कारण हैं। व्यक्तिगत प्रशासन इन आदेशों को कभी गंभीरता से नहीं लेता। एक तरफ जहां निराशा थी तो दूसरी तरफ तमिलनाडु सरकार नेे कानून को बनाने की वजह देते हुए कहा गया कि भारत जैसे देश में धोती एक पारंपरिक पोशाक है। इसपर रोक लगाना लोगों की व्यक्तिगत आजादी को छीनने जैसा है। व्यक्तिगत आजादी पर किसी संस्था द्वारा रोक लगाना कानूनन जुर्म है। तो क्या खाप पंचायतें जो करती हैं वह कानून की नजर में अपराध नहीं है? तमिलनाडु सरकार ने जैसा ठोस कदम उठाया क्या वैसा ही कदम उत्तर प्रदेश सरकार कभी उठाएगी? लोगों की व्यक्तिगत आजादी बनाए रखने की जिम्मेदारी सरकारी तंत्र की है। ऐसे मामलों में प्रशासन की चुप्पी आजादी को सीमित करने वाली संस्थाओं के हौसले बढ़ाती है।
व्यक्तिगत आजादी पर हमला
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