यूनिसेफ के एक शोध के अनुसार, विश्व भर में लगभग 30 करोड़ बच्चे विषैली हवा के संपर्क में हैं।
यूनिसेफ के इस शोध में बताया गया है कि दुनिया भर के सात बच्चों में से एक बच्चा ऐसी हवा में सांस लेता है जो अंतरराष्ट्रीय मानकों से कम से कम छह गुना अधिक दूषित है।
रिपोर्ट के अनुसार, ‘हर साल पांच साल से कम उम्र के 6,00,000 बच्चों की मौत की प्रमुख वजह वायु प्रदूषण है और हर दिन इससे लाखों के जीवन और भविष्य पर खतरा मंडराता जा रहा है।’
लगभग दो अरब बच्चे ऐसे इलाकों में रहते हैं जहां बाहरी वातावरण की हवा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय किए गए न्यूनतम वायु गुणवत्ता के मानकों से कहीं अधिक खराब है। इनकी संख्या लगभग 62 करोड़ है। इसके बाद अफ्रीका में 52 करोड़ और पश्चिमी एशिया तथा प्रशांत क्षेत्र में प्रदूषित इलाकों में रहने वाले बच्चों की संख्या 45 करोड़ है। बाहरी और भीतरी हवा में प्रदूषण को निमोनिया और सांस लेने संबंधी अन्य रोगों से सीधे तौर पर जोड़ा जा सकता है। पांच साल से कम उम्र के दस बच्चों में से एक बच्चे की मौत की वजह ऐसे रोग होते हैं।
बाहरी और भीतरी वायु प्रदूषण से बच्चे ज्यादा प्रभावित होते हैं क्योंकि उनके फेफड़े, मस्तिष्क और रोगप्रतिरोधक क्षमता अभी भी विकसित हो रहे होते हैं और उनका श्वसन तंत्र कमजोर होता है। गरीबी में रह रहे बच्चों के वायु प्रदूषण जनित रोगों की चपेट में आने की आशंका कहीं ज्यादा होती है।
वहीं, दिवाली के दौरान छोड़े गये पटाखों के कारण देश में प्रदूषण का स्तर गंभीर रूप से बढ़ गया है।
वैश्विक वायु प्रदूषण के आंकड़ों के अनुसार भारत में सबसे ज्यादा प्रदूषण उत्तर भारत में पाया गया। इस हवा में फेफड़ों के लिए घातक पीएम 2.5 कणों की मात्रा सामान्य स्तर के मुकाबले 10 गुणों से ऊपर जा पहुंची है।
यही नहीं, ज्यादातर इलाकों में इसका स्तर सामान्य के मुकाबले 8 गुने से लेकर 12 गुना तक पहुंचा हुआ है।
विश्व में हर सातवां बच्चा वायु प्रदूषण से प्रभावित
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