कालाजार मरीज के सब सुविधा के साथ इलाज करे के हई। चाहे उ गांव हो सदर अस्पताल हो या पी.एच.सी.। लेकिन कही भी मरीज के सुरक्षित इलाज न हो रहल हई।
गांव में देखल जाये त कालाजार मरीज के सही समय से दवाई भी उपलब्ध न हो पवई छई। जबकि कालाजार मरीज अगर गांव के हई त आशा के द्वारा ओकरा कोर्स के अनुसार दवाई उपलब्ध करावे के हई अउर चैदह सौ रूपईया भी खान-पान के लेल देवे के हई। लेकिन बहुत के रूपईया मिलई छई, बहुत के कम मिलई छई अउर केतना के कुछो न मिल पवई छई। केतना पी.एच.सी. में त कालाजार मरीज के भर्ती भी न होई छई। जईसे बथनाहा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में जगह के अभाव के कारण दवाई देके त घर भेज देल जाई छई या सदर अस्पताल में भर्ती कयल जाई छई। सदर अस्पताल में भी गंदे बेड पर रखल जाई छई। पुरा दवाई सरकारी ही मिले के हई लेकिन सीतामढ़ी सदर अस्पताल में कालाजार मरीज अपना रूपईया से सलाईन सिरिंच खरीदई छथिन। उहां बेड पर सात दिन सात रंग के चादर देवे के हई लेकिन अस्पताल में सात दिन में एको बेर चादर न बदलाई छई। गंदे में मरीज के रहे परई छई। ऐई लापरवाही के कारण बीमारी जल्दी ठीक न हो पवई छई। ऐई पर विभाग के ध्यान देवे के होतई कि कालाजार मरीज के समय से सब सुविधा अउर पैसा मिले। काहे कि ऐकर सिर्फ सरकारी इलाज ही होई छई दोसर कोई सुविधा न हई। अगर कोई बाहर दवाई बेचतई त आकरा पर छापामारी हो जतई। लेकिन विभाग के भी ऐतना लापरवाीह न करे के चाही।
विभाग के लापरवाही
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