वैसे तो लखनऊ की चिकनकारी वाले कपड़े हमेषा चलन में रहते हैं लेकिन गर्मियों में इसकी मांग बढ़ जाती हैं। समय के साथ इसमें बदलाव भी हुए हैं।
जिला लखनऊ। महेष चिकनकारी के दुकानदार महेष का कहना है कि जो भी लखनऊ आता है वह सौगात के रुप में चिकन के कपड़े जरुर ले जाता है। बिहार, राजस्थान मध्यप्रदेष जैसे कई अन्य राज्य ही नहीं देष-विदेष से भी लोग यहां आते हैं। लोग कपड़े खरीदने के साथ ही चिकन के कढ़ाई के बारे में भी जानना चाहते हैैं। मेरी दुकान में तीन सौ से लेकर पन्द्रह हजार रुपए तक के कपड़े हैं। कभी दिन में बीस हजार रुपए की बिक्री या कभी बिलकुल नहीं हो पाती है। गर्मियों में चिकनकारी किए हुए कपड़े लोगों कि पहली पसंद बन जाती है। क्यूंकि यह बहुत हल्का और गर्मियों में ठंडक देने वाला होता है।
फूलबाग में रहने वाली ज्यादातर्र आैरते चिकनकारी का काम करती हैं। इस बारे में यहां पर रहने वाली सुनीता और रामकली से पूछा गया तो उन्होंने बताया ‘हमें ये हुनर पुस्तैनी धरोहर के रुप में मिला हैं।’ आमदनी का यह एक बेहतर जरिया है। उन्हंे किस तरह से काम मिलता है इसके जवाब में उन्होंने बताया कि हमारे ऐजेन्ट होते हैं जो हमें कपड़े और धागे देते हैं। हम सिर्फ साड़ी ही बनाते हैं, एक भारी साड़ी पर चिकनकारी करने में लगभग छह महीने लग जाते हैं।