रेलवे ट्रैक का अत्यधिक इस्तेमाल, पिछले चार महीनों के दौरान पटरी से ट्रेन के पलटने की प्रत्येक घटना में मुख्य वजह बनी है।
फरवरी 2015 में जारी इंडियन रेलवे, लाइफलाइन ऑफ द नेशन श्वेत पत्र के अनुसार भारतीय रेल के 1,219 लाइन सेक्शन में से कम से कम 40 फीसदी का इस्तेमाल 100 फीसदी से ज्यादा हुआ है। तकनीकी रुप से किसी वर्ग का इस्तेमाल अगर अपनी क्षमता से 90 फीसदी ज्यादा होता है तो उसे संतृप्त माना जाता है।
यात्रियों की भीड़ बढ़ती जा रही है। यह भारतीय रेल नेटवर्क के 247 उच्च घनत्व वाले ट्रैक पर 65 फीसदी है। रेलवे की स्थायी समिति के सदस्य और राज्य सभा के सदस्य मुकुट मिथी कहते हैं, “आदर्श इस्तेमाल की दर लगभग 80 फीसदी होना चाहिए।”
उपलब्ध आंकड़ों पर इंडियास्पेंड के विश्लेषण से पता चलता है कि ट्रैक में अवरोध और ट्रेनों के पटरी से उतरने के दो मुख्य कारण हैं, अत्यधिक यातायात और रेल बुनियादी ढांचे में कम निवेश।
गौर करें- 15 वर्षों के दौरान पैसेंजर ट्रेनं की दैनिक संख्या में 56 फीसदी की वृद्धि हुई है। वर्ष 2000-01 में 8,520 से बढ़ कर वर्ष 2015-16 में 13,313 हुआ है।
इसी अवधि के दौरान माल गाड़ियों की संख्या में 59 फीसदी की वृद्धि हुई है। लेकिन 15 वर्षों में इन सभी ट्रेनों के लिए चल रहे ट्रैक की लंबाई में केवल 12 फीसदी का विस्तार हुआ है। ट्रैक की लंबाई 81,865 किमी से बढ़ कर 92,081 किमी हुआ है।
यदि आप वर्ष 1950 से वर्ष 2016 तक की अवधि को देखें तो रेलवे के बुनियादी ढांचे में कम निवेश साफ दिखाई देता है। रेलवे मार्ग की लंबाई में मात्र 23 फीसदी (किलोमीटर में) का विस्तार हुआ है, लेकिन यात्रियों और माल ढुलाई में क्रमश: 1,344 फीसदी और 1,642 फीसदी की वृद्धि हुई है। ये आंकड़े रेलवे की स्थायी समिति द्वारा रेलवे में सुरक्षा पर दिसंबर 2016 में जारी एक रिपोर्ट के हैं।
फिजिएका ए जर्नल जर्नल पेपर के अनुसार वर्ष 2010 में पटरी से उतारने या टकराव की वजह से हुई 11 प्रमुख दुर्घटनाओं में से आठ दिल्ली-टुंडला-कानपुर क्षेत्र में हुई हैं। यह अनुभाग भारत के सबसे जोखिम वाले एक्सप्रेस ट्रेन ट्रंक मार्ग के रूप में चिह्नित हैं।
पेपर के अनुसार, “भारतीय रेलवे अधिकारी इस स्थिति का प्रबंधन ‘सिगनल पर रेलगाड़ियों को इंतजार कराते हुए’ करते हैं। इस वजह से ही ट्रेन लगतार देरी से चलती है और मानवीय चूक की स्थिति में दुर्घटना की संभावना बढ़ जाती है।”
नई रेलगाड़ियों की घोषणा और ट्रैक विस्तार के बिना कोई वादे के साथ हर साल भारत की पटरियों पर यात्रियों की भीड़ बढ़ती है।
भारतीय रेलवे द्वारा नियुक्त उच्च स्तरीय सुरक्षा समीक्षा समिति की फरवरी 2012 की रिपोर्ट कहती है कि बुनियादी सुविधाओं के अनुरूप इनपुट के बिना नई ट्रेनें चलाने का अभ्यास बंद करना चाहिए। यह समिति भारतीय रेल की सुरक्षा की समीक्षा के लिए अनिल काकोडकर की अध्यक्षता में बनाई गई थी। समिति ने सुधार की सिफारिशें भी की हैं।
लेकिन किसी ने भी इस सलाह की ओर ध्यान नहीं दिया है। नतीजा यह है कि पिछले 15 वर्षों में यात्रियों की संख्या और उनके द्वारा तय की जाने वाली यात्रा की दूरी दोनों में 150 फीसदी की वृद्धि हुई है। माल ढुलाई भी दोगुनी हुई है।
ट्रैफिक बाधाओं को कम करने के लिए नए ट्रैक महत्वपूर्ण हैं। भारतीय रेल के माल ढुलाई परिचालनों में आमूल-चूल बदलाव के लिए डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर को लाया गया है। ये दो तरह से लागू किया जा रहा है पश्चिमी डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (डब्ल्यूडीएफसी) और पूर्वी डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर(ईडीएफसी)।
वर्ष 2005 में शुरू की गई इन दो प्रमुख परियोजनाएं में एक पश्चिमी डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर 1504 किमी लंबी है और पूर्वी डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर 1318 किलोमीटर लंबी हैं। ये परियोजनाएं मुंबई-दिल्ली और हावड़ा-दिल्ली लाइनों पर हैं, जिसका इस्तेमाल 115 फीसदी और 150 फीसदी के बीच होता है।
स्थायी समिति की दिसंबर 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक “ट्रैक या रोलिंग स्टॉक में दोष” को ठीक करने में भी रेलवे पीछे है, जो गाड़ी के पटरी से उतरने के पीछे का एक मुख्य कारण है।
फोटो और लेख साभार: इंडिया स्पेंड