सुमन गुप्ता उत्तर प्रदेश में वरिष्ठ पत्रकार हैं। वे फैज़ाबाद स्थित जन मोर्चा अखबार में काम करती हैं। इस समय वे यू.पी. स्तर पर पत्रकार हैं।
गणेश उत्सव से लेकर दुर्गाप्रतिमा विर्सजन एवं मुहर्रम के दौरान लगभग एक दर्जन जिले जिस प्रकार साम्प्रदायिक तनाव की चपेट में आये उससे सिर्फ अखिलेश सरकार ही नहीं, प्रशासनिक मशीनरी के हाथ पैर भी फूल गए। दुर्गापूजा दशहरे और मुर्हरम के अवसर पर जिस प्रकार प्रदेश के नौ जिलों में साम्प्रदायिक घटनाएं घटीं वे उत्तर प्रदेश के माथे पर कलंक हैं। ये ऐसे जिले थे जो प्रायः साम्प्रदायिकता की भेंट नहीं चढ़ते थे। इन घटनाओं ने पुलिस व प्रशासन की सख्ती की पोल भी खोली।
पुलिस विभाग के मुखिया को अब यह भी जाँच करनी पड़ रही है कि कहीं इनके कारण हमारी पुलिस व प्रशासन में ही तो नहीं है जिससे घटनाएं रूकने का नाम ही नहीं ले रही हैं। कानपुर में एक दूकान पर लगा पोस्टर का फाड़ा जाना क्या इतनी बड़ी घटना हो सकती है कि हालात बेकाबू हो जाएं। केन्द्रीय बलों को चैबीसों घंटे के लिए लगाना पडा।
एक तरफ प्रदेश के 75 जिलों में से नौ जिले साम्प्रदायिक तनाव के शिकार हुए वहीं दूसरी ओर अयोध्या-फैजाबाद जैसे जिले भी रहे जिन्होंने साम्प्रदायिक सद्भाव की एक बार फिर से मिसाल पेश की। यही कारण रहा कि जब दादरी में गौमांस रखने और खाने की अफवाह के चलते भीड़ ने उसकी हत्या कर दी। तब भी फैजाबाद में शांति थी।
कभी मंदिर आंदोलन के नाम पर कभी विर्सजन जुलूस के नाम पर, कभी लड़की छेड़ने और लव जेहाद के नाम पर लोग ऐसे उबल पड़ते हैं कि छोटी-छोटी घटनाएं हमारे जीवन के लिए संकट का कारण बन जाती हैं। अयोध्या आंदोलन से जूझ चुके अयोध्या-फैजाबाद में इस बार दुर्गापूजा मुहर्रम जुलूस एक ही दिन होने के बावजूद गंगा-जमुनी सभ्यता की जो बयार बही उसने लोगों के लिए सन्देष दिया कि ‘जियो और जीने दो’ ‘मिल-जुल कर रहो’।