आंचल लखनऊ के जाने माने अखबार में बतौर पत्रकार काम करती हैं। पिछले सात सालों से वे पत्रकारिता कर रही हैं।
अरे आपको पता नहीं है, वो जो लड़का है न, क्या तो भला सा नाम है, हां…सलमान खान। उसने हनुमान चालीसा पढ़ी है अपनी फिल्म में। समाजवाद का इससे बड़ा उदहारण कहीं मिलेगा क्या? उसके इस काम का कुछ तो इनाम मिलना चाहिए। एक काम करते हैं, उसकी फिल्म को टैक्स फ्री कर देते हैं। तो साहब अब अगर फिल्म में समाजवाद का थोड़ा सा तड़का लगे तो फिर उसे यूपी में टैक्स फ्री जानिए।
नियमों की बात करें तो फिल्म बंधु कहता है कि उत्तर प्रदेश में वो फिल्में टैक्स फ्री होंगी जो यहां शूट हुईं और उनमें यहां के कलाकारों ने काम किया। मगर हाल में जो कुछ हो रहा है उसमंे तो बस इतना काफी है कि फिल्म का निर्देशक या कलाकार जाकर हमारे सीएम साहब से मिल ले, उनके साथ मुस्कुरा कर फोटो खिंचवा ले और फिल्म के टैक्स फ्री होने की गारंटी पक्की। कुछ दिन पहले महेश भट्ट साहब और इमरान हाशमी ने आकर सीएम से हाथ मिलाया और हमारी अधूरी कहानी को टैक्स फ्री करवा कर चले गए। इसके पहले पीके, हवाईजादा, मर्दानी, मैरीकॉम, बुलेट राजा समेत कई फिल्में टैक्स फ्री हुईं और सबसे ताजा उदाहरण बजरंगी भाईजान और मसान।
यूपी में सिनेमा को बढ़ावा देने के लिए सरकार का यह कदम तारीफ के काबिल जरूर है लेकिन कोई भी नीति एक पक्षीय नहीं होनी चाहिए। खासकर फिल्म बंधु की नीति तो यही कहती है कि जिनके पास संसाधनों की कमी है उन्हें छूट देकर आगे बढ़ाया जाए, लेकिन यहां तो हो यह रहा है कि बड़े सितारों से सजी, नामी निर्माताओं की, करोड़ों की लागत से तैयार फिल्में टैक्स फ्री हो जाती हैं, छूट भी ले लेती हैं और जिन्हें वाकई इसकी जरूरत है, वो सरकारी दफ्तरों के चक्कर ही लगाते रह जाते हैं।
इसमें कोई शक नहीं है कि सिनेमा का आने वाला दौर यूपी, बिहार का ही है। मगर सिनेमा के इस बदलाव की जो जमीन यूपी में जमीनी कलाकारों और निर्माताओं को मौका देकर तैयार हो सकती है, उसे सिनेमा जगत के बड़े नाम और कुछ हमारी सरकार पनपने नहीं दे रही। ज्यादा कुछ नहीं करना है, बस फैसले लेते समय दोनों आंखें खोलने की जरूरत है।