जिला पंचायत सदस्य के चुनाव के में राजनीतिक पार्टीयों बारे में खबर लहरिया की पत्रकार का ज़मीनी आकलन।
जि़ला पंचायत चुनावों के नतीजे आ चुके हैं। जीत की खुशी और हार का गम साफ दिखाई पड़ रहा है। इस बार की जीत बहुजन समाजवादी पार्टी यानी बसपा के लिए खुशी लेकर आई है। कांग्रेस की स्थिति सबसे खराब रही।
हालांकि इन चुनावों में पार्टी के चिह्न उम्मीदवारों के पास नहीं होते हैं। मगर पार्टी का समर्थन उन्हें मिलता है। जनता को भी पता होता है कि उम्मीदवार की पीठ पर किस पार्टी का हाथ है। कांग्रेस कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार उसके केवल इक्यासी प्रत्याशी ही जीते तो भारतीय जनता पार्टी के केवल पांच सौ छत्तीस उम्मीदवार जीते। ज़्यादातर में बसपा का बोलबाला रहा। हालांकि बसपा के लखनऊ स्थित कार्यालय ने जीतने वालों की संख्या तो नहीं बताई मगर यह ज़रूर कहा कि हमने करीब पचास प्रतिशत सीटों पर जीत दर्ज की है। कुल जि़ला पंचायत की तीन हज़ार एक सौ बारह सीटें थीं।
जि़ला पंचायत के चुनावों से जो तस्वीर बनी वह बसपा पार्टी की तैयारियों के नतीजों का ही असर दिखाती है। इस बार के लोकसभा चुनाव में बसपा एक भी सीट हासिल नहीं कर पाई थी वहीं समाजवादी पार्टी केवल परिवार तक ही सीमित रह गई थी। कांग्रेस की स्थिति भी बेहद खराब रही। भारतीय जनता पार्टी को भारी बहुमत मिला। मगर यह नतीजे तो उत्तर प्रदेश में आने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजों की लगता है उलटी कहानी लिखने वाले हैं। नतीजे देखकर तो लगता है कि भाजपा से लोगों का मन भर गया है। समाजवादी पार्टी की मौजूदा सत्ता से लोग असंतुष्ट हैं। नतीजों को 2017 में होने वाले चुनावों का आधार मानें तो बसपा का एक बेहद मशहूर स्लोगन याद आता है। चलेगा हाथी उड़ेगी धूल, न रहेगा पंजा न रहेगा फूल।